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“Raigarh Elephant Death 2025 रायगढ़ में करंट से हाथी की मौत,


“Raigarh Elephant Death 2025 करंट लगने से हाथी की मौत बिजली के फंदे से जुड़ी 5 बड़ी बातें”

आज हम एक बेहद चिंताजनक घटना पर चर्चा करेंगे — जिसमे एक जंगली हाथी की मौत करंट लगने से हो गई। मामला Raigarh (छत्तीसगढ़) या उसके आसपास के किसी क्षेत्र से है, जहाँ हाथी–मानव संघर्ष और वन्यजीव सुरक्षा की चुनौतियाँ लगातार देखने को मिल रही हैं। अगर सही जानकारी मिले तो घटना क्षेत्र एवं कारण थोड़े भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, लेकिन यहाँ हम उपलब्ध स्रोतों के आधार पर इस घटना, इसके कारण, प्रभाव, चुनौतियों और आगे की राह पर विचार करेंगे।

घटना का स्वरूप

विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, छत्तीसगढ़ में हाथियों की मौत का एक स्तम्भ बन गया है — इलेक्ट्रोक्यूशन, यानी बिजली लगने से मृत्यु। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि तीन हाथियों — जिनमें एक बछड़ा (calf) भी शामिल था — को एक 11 KV बिजली के तार से करंट लगने के कारण मारा गया। The 

वहीं दूसरी रिपोर्ट बता रही है कि 8-10 वर्ष के लगभग एक हाथी को खेत में लगाए गए एक लाइव वायर से करंट लग गया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई।

हालाँकि आपके वर्णन में घटना क्षेत्र “रायगढ़” और “हाथी को करंट लगने से मौत, जंगली सूअर के लिए लगाया गया था बिजली का फंदा” कहा गया है — इस विशिष्ट विवरण का इंटरनेट पर मुझे भरोसेमंद स्रोत नहीं मिल पाया है कि सूअर-रोधी बिजली फेंस (electric fencing) हाथी को क्यों और कैसे प्रभावित हुआ। इसलिए नीचे विश्लेषण में हम उपलब्ध जानकारी के आधार पर सामान्य और संभावित कारणों-परिदृश्यों की चर्चा करेंगे।


संभावित कारण – क्यों हुआ ऐसा?

  1. बिजली की निम्न उँचाई वाले तार/फेंस
    – उदाहरण के लिये, छत्तीसगढ़ के मामले में 11 KV की तार 3-4 मीटर की ऊँचाई पर लटक रही थी, जिससे हाथियों के पहुँचने की संभावना बढ़ गई। 
    – हाथी जब अपने सूँड़ या बड़ा शरीर उठा कर उँची चीजों को छूने की कोशिश करता है — तार की उँचाई कम होना ख़तरे का कारण बनता है।
    – केंद्रीय तथा राज्य स्तर पर दिशा-निर्देश हैं कि जंगलों व हाथी गलियारों (corridors) में तारों की ऊँचाई, इन्सुलेशन आदि विशेष हों, पर उनका अनुपालन अक्सर सही नहीं होता।

  2. अवैध/अनुचित बिजली फेंसिंग
    – किसानों द्वारा जंगली सूअरों (wild boars) आदि को खेतों से रोकने के लिए बिजली से चार्ज किये गए तार/फेंस लगाने की प्रवृत्ति है। यदि ऐसा फेंस हाथियों के मार्ग में या वनभूमि से लगा हो, तो हाथी को करंट लगने का रास्ता खुल जाता है।
    – ऐसे फेंस अक्सर इन्सुलेटेड नहीं होते, सही मानकों के अनुसार लगाये नहीं जाते।

  3. हाथी–मानव संघर्ष एवं दबाव में बढ़ती आवाजाही
    – हाथियों के पारंपरिक आवागमन मार्ग (migration corridors) अब भी मौजूद हैं, लेकिन उनके चारों ओर विकास, बिजली-लाइन, खेत-घर बन जाने से मार्ग बाधित हो रहे हैं।
    – जैसे रायगढ़ जिले वाले क्षेत्र में हाथियों की संख्या व उनके निकलने-वाले मार्ग सक्रिय हैं। 
    – इससे हाथी अक्सर खेतों ओर रात में निकल आते हैं, जहां बिजली-विद्युत व्यवस्था व तारों की स्थिति जोखिम बने रहती है।

  4. जांच-निगरानी में कमी
    – कई मामलों में वन विभाग और बिजली वितरण कंपनी (power distribution) की ओर से तारों की नियमित निगरानी, ऊँचाई व स्थिति का परीक्षण नहीं किया गया। छत्तीसगढ़ मामले में इस कमी के चलते संबंधित ड्यूटी­पर बालू रही।


घटना का प्रभाव और महत्व


आपके बताये “जंगली सूअर के लिए लगाया गया बिजली का फंदा” — विश्लेषण

आपकी जानकारी में कुछ दिलचस्प बिंदु हैं: “सुँअरों के लिए बिजली का फंदा” — यह बताता है कि शायद खेत या घर की रक्षा हेतु या सूअरों के तांडव को रोकने हेतु बिजली फेंस डिजाइन किया गया होगा। लेकिन समस्या तब होती है जब:

इस तरह यदि एक फेंस सूअरों को रोकने हेतु था, पर उसमें सुरक्षा मानदंड पूरी न हुए हों, तो हाथी उसके संपर्क में आकर करंट की चपेट में आ सकते हैं। यह घटना केवल व्यक्तिगत स्तर पर दुर्भाग्य नहीं है— यह इंफ्रास्ट्रक्चर डिजाइन, नियमन-पालना, इलाके की सामाजिक-वन्यजीव इंटरफेस जैसी बड़ी चुनौतियों को दर्शाती है।


क्या किया गया/क्या करना चाहिए

कदम उठाये जा चुके हैं

आगे क्या किया जाना चाहिए

हाथी की मृत्यु करंट लगने से सिर्फ एक घटना नहीं है — यह संकेत है कि इंसानी विकास, कृषि-रक्षा और वन्यजीव सुरक्षा के बीच संतुलन बिगड़ रहा है। उस खेत में जो सुँअरों के लिए बनाया गया बिजली-फेंस था, उसने शायद अपना अभिप्राय पूरा किया हो, लेकिन उसके कारण एक हाथी की जान चली गई, और ये हमारे लिए चिंताजनक वक्तव्य है कि कहीं-कहीं संरचना-डिजाइन, निगरानी और नैतिक-नियामक जिम्मेदारी ध्यान से नहीं देखी जा रही।

हमें यह याद रखना होगा कि हाथी सिर्फ जंगल का जीव नहीं बल्कि पारिस्थितिकी-चक्र का एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। उनका सुरक्षित आवागमन, उनका जीवन न्यूनतम बाधाओं में सुनिश्चित करना सिर्फ वन्यजीव प्रेमियों का विषय नहीं बल्कि सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी भी है।

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