Guru Nanak Jayanti 2025 आज हर तरफ गूँज रहा ‘वाहे गुरु’ का नाम


‘वਾਹे गुरु’ — यह जो शब्द आज हर ओर सुनाई दे रहा है, वह सिर्फ एक अभिवादन नहीं, बल्कि एक जीवन-दर्शन, एक आध्यात्मिक गूँज है जो आज की तारीख में भी उतना ही जीवंत है जितना कि उस समय था जब Guru Nanak Dev Ji ने अपने उपदेशों के माध्यम से मानव-समाज को एक नया दिशा दी थी। 2025 में गुरु नानक जयंती का आयोजन विशेष-रूप से भी हो रहा है क्योंकि यह गुरु नानक देव जी की 556वीं जयंती का अवसर है।
1. तिथि और समय
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इस वर्ष, गुरु नानक जयंती बुधवार, 5 नवम्बर 2025 को मनाई जा रही है।
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यह पर्व हिन्दू-चंद्र कैलेंडर के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा (कृतिका माह की पूर्णिमा) के दिन आता है, जो इस अवसर को और भी पवित्र बनाता है।
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पर्खाएं समय-सूची (उदाहरण): पूर्णिमा तिथि शुरू – 4 नवम्बर 2025 की रात 10:36 PM से, समाप्ति 5 नवम्बर के शाम करीब 6:48 PM तक। भारत के कई राज्यों में इस दिन स्कूल-कॉलेज व कार्यालय बंद रहते हैं। The Times of India+1
यदि आप इस दिन कहीं जाना चाहते हैं या कोई तैयारी करनी है तो 5 नवम्बर को रखें अपने कैलेंडर में।
2. इतिहास गुरु नानक देव जी कौन थे?

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गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ईस्वी में राय भौई की तलवंडी (आज पाकिस्तान के ननकाना साहिब) में हुआ था।
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उन्होंने एक ऐसे दर्शन की स्थापना की जिसमें “एक ही ईश्वर”, “सभी मनुष्य बराबर”, “सच्चाई-सेवा-भक्ति” जैसे मूल तत्व शामिल थे।
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गुरु नानक जी ने अपने जीवन में कई व्यापक यात्राएँ कीं (भारत के विभिन्न भाग, पंजाब-पाकिस्तान सीमांत क्षेत्र, मध्य एशिया के कुछ भाग) और अपने उपदेशों से सामाजिक बुराइयों-धर्मों के कट्टर विभाजन को चुनौती दी।
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उनके शिष्यों तथा बाद के गुरुओं ने उनके उपदेशों को आगे बढ़ाया और Guru Granth Sahib में गुरु नानक देव जी के बहुत से पद सुरक्षित हैं।
इतिहास में यह विशेष है कि गुरु नानक देव जी ने सिर्फ धार्मिक गुरू नहीं बनना चाहा बल्कि मानवता के लिए एक सामाजिक-आध्यात्मिक क्रांति ले कर आए। यही कारण है कि उनकी जयंती का पर्व सिर्फ सिख समुदाय तक सीमित नहीं, बल्कि सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है।
3. महत्व और संदेश
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गुरु नानक जयंती का पर्व इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें याद दिलाता है कि सिद्धांत सिर्फ विचार नहीं, बल्कि जीवन में क्रिया बनकर उतरना चाहिए।
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उनके प्रमुख संदेशों में शामिल हैं: सद्कर्म (अच्छे काम), समता (समानता), निःस्वार्थ सेवा (सेवा भाव) और इक ओंकार (ईश्वर की एकता)।
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सामाजिक दृष्टि से यह पर्व हमें यह सीख देता है कि चाहे धर्म कोई भी हो, जात-पात या सामाजिक पद कोई भी हो — सब इंसान एक हैं।
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आध्यात्मिक दृष्टि से यह पर्व हमें ‘स्वयं का उद्धार’ और ‘दूसरों की भलाई’ दोनों को महत्व देने की प्रेरणा देता है।
“All human beings are equal; there is no difference between high and low.” — गुरु नानक देव जी
इसलिए, आज जब “वाहे गुरु” का नाम चारों ओर गूंज रहा है, तो यह सिर्फ उत्सव की ध्वनि नहीं — यह मानव-भावना की पुकार है: सचाई से जीना, प्रेम बाँटना, और सेवा करना।
4. कैसे मनाया जाता है – परंपराएँ और उत्सव
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प्रभात फेरी – सुबह-सुबह गुरुद्वारों से निकलती है शबद कीर्तन एवं भजन-सवाली के रूप में। जनसमूह साथ चलता है और भक्ति-भाव में हिस्सा लेता है।
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नागर कीर्तन – गुरुद्वाराओं से शहरों में, बैंड-बाजे के साथ, झंडे-शस्यकों के साथ एक शांतिपूर्ण शोभायात्रा निकाली जाती है।
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अखंड पाठ – 48 घंटे तक चलता शास्त्र-पाठ जिसमें पूरी तरह निरंतर श्रवण और ध्यान होता है।
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लंगर सेवा – हर गुरुद्वारा उस दिन मुफ्त भोजन (लंगर) का आयोजन करता है जहाँ सभी जात-पात के लोग साथ बैठकर भोजन करते हैं। यह गुरु नानक जी के सामाजिक संदेश का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
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दीप-प्रदीप एवं सजावट – गुरुद्वारों और आसपास की जगहों को फूल, दीप, रंगोली आदि से सजाया जाता है। रात में भव्य रोशनी में जगह का माहौल भक्तिभाव से भर जाता है।
इन परंपराओं के माध्यम से न केवल धार्मिक भावना जागृत होती है बल्कि सामाजिक-स्थानीय समुदाय भी एक साथ जुड़ता है।
5. इस वर्ष 2025 के विशेष पहलू
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जैसे कि उपरोक्त जानकारी में बताया गया है, इस बार यह जयंती 556वीं है।
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इस वर्ष कई-कई स्थानों पर विशेष शोभायात्राएं व सामाजिक-सेवा कार्य आयोजित किए जा रहे हैं — जैसे नगर कीर्तन, शिक्षण-कार्य, चिकित्सा शिविर आदि। (उदाहरण के लिए कानपुर में कार्यक्रम)
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विद्यालय-कॉलेज में छुट्टी तथा सार्वजनिक अवकाशों के संदर्भ में राज्यों द्वारा व्यवस्थाएँ की गई हैं।
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यह पर्व आज के समय में भी प्रासंगिक है — सामाजिक दूरी, तकनीकी बदलाव, वैश्विक-समुदायों की उपस्थिति के बीच भी यह हमें जोड़ता है।
6. भारत एवं विश्व में उत्सव का स्वरूप
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भारत के पंजाब-हरियाणा-उत्तरप्रदेश आदि राज्यों में गुरुद्वाराएँ और समुदाय बड़े उत्साह से तैयार होते हैं।
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विदेशों में भी सिख-समुदाय बड़ी मात्रा में इस पर्व को मनाते हैं — लंगर सेवाएँ, संगत-भेंट, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि।
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सार्वजनिक छुट्टियाँ एवं छुट्टी-सूचियाँ इस पर्व को सामाजिक-महत्व प्रदान करती हैं। Time and
7. हमारे लिए क्या संदेश है?
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व्यक्तिगत जीवन में गुरु नानक देव जी के उपदेशों को अपनाना — सत्य बोलना, निःस्वार्थ सेवा करना, सबको समान समझना।
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सामाजिक जीवन में आज जब दुनिया में विभाजन, असमानता व अन्याय बढ़ रहा है, तो यह पर्व हमें याद दिलाता है कि समानता और भाईचारे के मूल्यों को मजबूत करना कितना आवश्यक है।
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आध्यात्मिक रूप से यह पर्व हमें एक-ईश्वर-विचार की ओर मोड़ता है — “इक ओंकार” — मतलब सभी जीवों में ईश्वर का एक तत्व है।
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व्यावहारिक रूप से लंगर सेवा-भोजन, कीर्तन-शबद सुनना, गुरुद्वारा जाना — ये सिर्फ रस्में नहीं, बल्कि अनुभव-क्षेत्र हैं जहाँ हम इन उपदेशों को जीवन में उतार सकते हैं।
आज जब ‘वाहे गुरु’ का नाम गूंज रहा है — यह सिर्फ उत्सव नहीं, यह प्रेरणा-ध्वनि है। एक ऐसे गुरु का जन्म-दिवस जिसे लाखों-करोड़ों लोगों ने उनके उपदेशों और जीवन-चरित्र के माध्यम से जाना है। 2025 में, इस पर्व का अवसर हमें याद दिलाता है कि समय बदल सकता है, तकनीक बदल सकती है, मगर इंसानियत-सेवा-भाव, सत्य-भक्ति और प्रेम का संदेश शाश्वत है।
इसलिए इस जयंती पर — आइए हम सिर्फ उत्सव मनाएँ नहीं, बल्कि गुरु नानक देव जी के बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लें। दूसरों के लिए कुछ करें, आत्म-निरीक्षण करें, और इस दिन को केवल एक दिन ना बना-बल्कि जीवन की-राह बना लें।
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