घरेलू प्रताड़ना और समाज की चुप्पी रायगढ़ के कोटरीमाल गाँव की एक दर्दनाक कहानी
एक और महिला की मौन पुकार
रायगढ़ जिले के घरघोड़ा थाना क्षेत्र के ग्राम कोटरीमाल से एक दुखद समाचार सामने आया है।
यहाँ 28 वर्षीय एक महिला ने कथित तौर पर घरेलू प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली।
मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की और पति को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।
यह घटना न केवल एक परिवार का दुःख है, बल्कि समाज के लिए एक आईना है — जो यह दर्शाती है कि घरेलू हिंसा आज भी हमारे बीच जिंदा है।
घटना का सारांश
पुलिस के अनुसार, कोटरीमाल गाँव की रहने वाली 28 वर्षीय महिला ने अपने घर में फांसी लगाकर जीवन समाप्त कर लिया।
प्रारंभिक जांच में सामने आया कि महिला को लगातार घरेलू कलह और मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा था।
पड़ोसियों के बयान और परिजनों की शिकायत के आधार पर पति को गिरफ्तार किया गया है।
मामला घरघोड़ा थाने में धारा 306 और 498(A) IPC के तहत दर्ज किया गया है।
पुलिस ने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
यह घटना फिर से यह सवाल उठाती है —
“कब तक महिलाएँ घर की दीवारों के भीतर ही चुपचाप सहती रहेंगी?”
घरेलू प्रताड़ना — अदृश्य हिंसा का सबसे बड़ा रूप
घरेलू हिंसा केवल शारीरिक अत्याचार नहीं होती।
यह भावनात्मक, मानसिक और आर्थिक नियंत्रण के रूप में भी सामने आती है।
कई बार महिलाएँ समाज के डर, परिवार की इज्जत या बच्चों के भविष्य के कारण अपनी पीड़ा व्यक्त नहीं कर पातीं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार —
हर 5 में से 1 विवाहित महिला ने अपने जीवन में किसी न किसी रूप में घरेलू हिंसा झेली है।
ऐसी घटनाएँ हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि —
क्या हमने आधुनिकता के साथ संवेदनशीलता खो दी है?
रायगढ़ और ग्रामीण समाज की वास्तविकता
रायगढ़ जिला, जो संस्कृति और सभ्यता के लिए जाना जाता है, वहाँ भी ऐसी घटनाएँ अब बढ़ रही हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में शराब सेवन, बेरोजगारी, और सामाजिक दबाव अक्सर पारिवारिक तनाव का कारण बनते हैं।
महिलाएँ सामाजिक बंधनों में बंधी होती हैं, और अक्सर शिकायत दर्ज कराने से डरती हैं।
कोटरीमाल की यह घटना उस भय का प्रमाण है जहाँ मौन ही महिला की नियति बन जाती है।
कानूनी दृष्टि से महिला सुरक्षा
भारतीय कानून ने महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए कई प्रावधान किए हैं, जैसे —
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घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम, 2005 (PWDVA)
यह कानून महिलाओं को किसी भी प्रकार की शारीरिक, मानसिक या आर्थिक हिंसा से बचाव का अधिकार देता है। -
IPC की धारा 498(A)
पति या ससुराल पक्ष द्वारा मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न पर यह धारा लागू होती है। -
धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना)
यदि किसी व्यक्ति के उत्पीड़न या दबाव के कारण आत्महत्या होती है, तो यह गंभीर अपराध माना जाता है।
लेकिन कानून तभी प्रभावी होता है जब समाज सच बोले, और पीड़िता समय रहते न्याय माँगे।
महिला सहायता के उपलब्ध संसाधन
आज सरकार और गैर-सरकारी संगठन महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई सहायता तंत्र चला रहे हैं, जैसे —
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महिला हेल्पलाइन 181
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सखी वन-स्टॉप सेंटर (रायगढ़ में भी संचालित)
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1091 — महिला सुरक्षा हेल्पलाइन
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राष्ट्रीय महिला आयोग की ऑनलाइन शिकायत प्रणाली (ncw.nic.in)
फिर भी, ग्रामीण क्षेत्रों में इन सुविधाओं की जानकारी का अभाव है।
इसीलिए, ऐसे मामलों में जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार बन सकती है।
भारत में महिला सुरक्षा हमेशा से एक गंभीर सामाजिक और प्रशासनिक मुद्दा रहा है।
सड़क पर, कार्यस्थल पर या घर के भीतर — महिलाओं के प्रति हिंसा और उत्पीड़न की घटनाएँ समाज के लिए चिंता का विषय हैं।
इन्हीं चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने एक ऐसा कदम उठाया, जो हर महिला को “सुरक्षा का भरोसा” देता है — यह है महिला सुरक्षा हेल्पलाइन नंबर 1091।
1091 एक महिला सुरक्षा हेल्पलाइन नंबर है, जिसे किसी भी महिला द्वारा कभी भी (24×7) सहायता के लिए डायल किया जा सकता है।
यह सेवा पुलिस विभाग द्वारा संचालित होती है और इसका उद्देश्य है —
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महिलाओं को तुरंत सहायता प्रदान करना,
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किसी भी उत्पीड़न या हिंसा की स्थिति में उन्हें सुरक्षित महसूस कराना,
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और आवश्यकता होने पर पुलिस टीम को मौके पर भेजना।
यह नंबर संपूर्ण भारत में सक्रिय है और कई राज्यों में इसे महिला हेल्प डेस्क, महिला पुलिस थाने, या वन-स्टॉप सेंटर से जोड़ा गया है।
इस हेल्पलाइन का मुख्य उद्देश्य है —
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महिलाओं को आसान और त्वरित सहायता मिल सके।
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घरेलू हिंसा, छेड़खानी, स्टॉकिंग, साइबर अपराध जैसी घटनाओं की तुरंत सूचना दी जा सके।
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और सबसे महत्वपूर्ण — महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ाया जा सके कि “वे अकेली नहीं हैं।”
“1091 सिर्फ एक नंबर नहीं, बल्कि महिलाओं की आवाज़ और सुरक्षा की ढाल है।”
सामाजिक मानसिकता में बदलाव की ज़रूरत
हर ऐसी घटना के पीछे सिर्फ एक व्यक्ति दोषी नहीं होता —
कभी-कभी पूरा समाज जिम्मेदार होता है, जो चुप रहता है।
पड़ोसी जानते हैं कि घर में झगड़े होते हैं, लेकिन बोलते नहीं।
परिजन जानते हैं कि बेटी दुखी है, पर “समझौता कर लो” कहकर चुप कर देते हैं।
यही चुप्पी, धीरे-धीरे एक जीवन को समाप्त कर देती है।
हमें यह सोचने की ज़रूरत है कि संवेदनशील समाज बनना केवल सहानुभूति जताने से नहीं, बल्कि समय पर हस्तक्षेप करने से होता है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण — अवसाद और असहायता की स्थिति
ऐसे मामलों में महिलाएँ अक्सर डिप्रेशन और आत्महीनता से गुजरती हैं।
लगातार गाली-गलौज, अपमान, या आर्थिक निर्भरता से उनमें आत्मविश्वास खत्म हो जाता है।
वे सोचने लगती हैं कि उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा — और यही मानसिक स्थिति सबसे खतरनाक होती है।
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि
“यदि पीड़ित महिला को समय रहते किसी ने सुना होता, तो शायद वह जिंदा होती।”
इसलिए ज़रूरी है कि समाज सुनना सीखे।
संवेदनशीलता के साथ सत्य
ऐसी घटनाओं की रिपोर्टिंग करते समय मीडिया का दायित्व बहुत बड़ा होता है।
यह केवल एक सनसनीखेज खबर नहीं, बल्कि सामाजिक चेतावनी है।
स्थानीय पत्रकारों द्वारा इस मामले को उठाना इस बात का संकेत है कि रायगढ़ की जनता अब न्याय और संवेदना की आवाज़ उठा रही है।
परिवार और शिक्षा की भूमिका
घरेलू हिंसा की जड़ें अक्सर परिवार और परवरिश में होती हैं।
यदि बच्चों को यह सिखाया जाए कि —
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रिश्तों में सम्मान जरूरी है,
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गुस्सा कमजोरी है,
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और महिला बराबरी की हकदार है —
तो आने वाले वर्षों में ऐसी घटनाएँ कम होंगी।
शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि संवेदनशील व्यवहार सिखाने का माध्यम बननी चाहिए।
सरकार और समाज की संयुक्त जिम्मेदारी
सरकार कानून बना सकती है, लेकिन जागरूकता फैलाना समाज की जिम्मेदारी है।
पंचायत स्तर पर महिला समितियाँ, स्वयं सहायता समूह, और शिक्षकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यदि हर गाँव में “महिला सुरक्षा समिति” सक्रिय हो जाए, तो शायद कोटरीमाल जैसी घटना दोबारा न हो।
जिम्मेदारी का अर्थ केवल “कर्तव्य” नहीं, बल्कि “उत्तरदायित्व” भी है — यानी जो काम समाज या शासन को सौंपा गया है, उसका परिणाम समाज के हित में हो।
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सरकार की जिम्मेदारी: नीति बनाना, कानून लागू करना, सुरक्षा देना, और नागरिकों के लिए अवसर प्रदान करना।
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समाज की जिम्मेदारी: कानून का पालन करना, सामाजिक सौहार्द बनाए रखना, और देश के संसाधनों का संरक्षण करना।
दोनों की भूमिकाएँ अलग हैं, लेकिन लक्ष्य एक — जनकल्याण और राष्ट्रनिर्माण।
लोकतंत्र में सहभागिता का महत्व
लोकतंत्र “जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता का शासन” है।
इसका मतलब है कि नागरिक केवल वोट देकर अपनी भूमिका समाप्त नहीं करते, बल्कि वे हर स्तर पर शासन की प्रक्रिया में सहभागी होते हैं।
उदाहरण के लिए —
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स्वच्छ भारत मिशन तभी सफल हुआ जब नागरिकों ने सफाई को व्यक्तिगत जिम्मेदारी समझा।
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डिजिटल इंडिया तभी प्रभावी बना जब समाज ने तकनीक को अपनाया।
इससे स्पष्ट है कि सरकारी योजनाएँ तभी फलदायी होती हैं जब समाज उन्हें अपनाता है।
सामाजिक जिम्मेदारी — नैतिकता और सहयोग की नींव
समाज की जिम्मेदारी केवल सरकारी नीतियों का पालन भर नहीं है, बल्कि एक नैतिक कर्तव्य भी है।
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पड़ोसी की मदद करना,
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महिला और बच्चों की सुरक्षा पर ध्यान देना,
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पर्यावरण की रक्षा करना,
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भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना —
ये सब “सामाजिक जिम्मेदारी” के हिस्से हैं।
जब समाज इन जिम्मेदारियों को समझता है, तो सरकार पर बोझ घटता है और विकास स्वाभाविक रूप से होता है।
सरकार की जिम्मेदारी — पारदर्शिता और समानता की नीति
सरकार का कर्तव्य केवल कर संग्रह या नीति निर्माण तक सीमित नहीं।
उसका प्रमुख लक्ष्य न्याय, समानता और अवसरों की गारंटी देना होता है।
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शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएँ सभी को उपलब्ध कराना,
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महिलाओं और पिछड़े वर्गों को समान अवसर देना,
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भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना —
ये सब सरकार की प्रत्यक्ष जिम्मेदारियाँ हैं।
जब सरकार पारदर्शी और जवाबदेह होती है, तो समाज का भरोसा भी मज़बूत होता है।
विकास में साझेदारी की अवधारणा
आज के युग में विकास की परिभाषा केवल GDP तक सीमित नहीं रही।
यह सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण और नागरिक सुख-सुविधा से भी जुड़ी है।
इसीलिए, “पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP)” जैसी योजनाएँ और “जनभागीदारी अभियान” इस साझा जिम्मेदारी के प्रतीक हैं।
रायगढ़ जैसे जिलों में मितानिन कार्यक्रम, स्वच्छ ग्राम अभियान, और स्थानीय शिक्षा समितियाँ इसी सहयोग की मिसाल हैं।
अब और चुप नहीं
कोटरीमाल की इस घटना से हमें सीखना चाहिए कि चुप रहना भी अपराध है।
अगर समाज जागरूक और संवेदनशील होता, तो शायद आज एक 28 वर्षीय महिला जिंदा होती।
हमें यह प्रण लेना चाहिए कि —
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किसी भी प्रकार की हिंसा को “घर का मामला” नहीं कहेंगे,
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पीड़ितों की बात सुनेंगे,
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और हर महिला के सम्मान की रक्षा करेंगे।
“एक महिला की चुप्पी केवल उसकी नहीं,
पूरे समाज की हार होती है।”
रायगढ़ की यह घटना हमें याद दिलाती है कि न्याय केवल अदालतों में नहीं,
दिलों में भी होना चाहिए।
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