उत्तर-पूर्व संस्कृति का उत्सव 2025 विविधता में एकता का रंगीन संगम

भारत विविधता से भरा देश है — जहाँ हर राज्य, हर क्षेत्र की अपनी एक अलग भाषा, कला, संगीत और संस्कृति है। लेकिन इस विविधता में जो क्षेत्र सबसे अधिक रंगीन और अनूठा है, वह है उत्तर-पूर्व भारत।
इसी सांस्कृतिक विरासत को देशभर में प्रदर्शित करने के लिए भारत सरकार ने “Octave 2025” नामक उत्सव का आयोजन किया है, जो इस वर्ष नागपुर में शुरू हुआ।
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नागपुर में “Octave 2025” नामक उत्तर-पूर्व भारत की सांस्कृतिक महोत्सव शुरू हुआ है, जिसमें कला, नृत्य, हस्तशिल्प आदि प्रदर्शित किए जाएंगे। The Times of India
यह आयोजन संस्कृति मंत्रालय और उत्तर-पूर्व क्षेत्र विकास मंत्रालय की संयुक्त पहल है। इसका उद्देश्य उत्तर-पूर्व भारत की कला, नृत्य, हस्तशिल्प, परिधान, संगीत और लोक परंपराओं को पूरे भारत के सामने लाना है।
उत्तर-पूर्व संस्कृति की झलक

भारत के आठ उत्तर-पूर्वी राज्य —
अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम — अपनी सांस्कृतिक विशिष्टता के लिए प्रसिद्ध हैं।
इन राज्यों की लोक कलाएँ, त्योहार, नृत्य और संगीत भारतीय संस्कृति में एक अलग पहचान रखते हैं।
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असम का बिहू नृत्य,
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मणिपुर का रासलीला,
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नागालैंड का हॉर्नबिल फेस्टिवल,
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मेघालय का शद सुक मैनसेम,
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मिज़ोरम का चेरेव नृत्य,
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त्रिपुरा के झूम नृत्य,
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और सिक्किम के भूटिया लोकनृत्य
— ये सभी उत्तर-पूर्व की आत्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
“उत्तर-पूर्व संस्कृति का उत्सव” इन्हीं विविध रंगों को एक मंच पर लाता है।
आयोजन का उद्देश्य
Octave 2025 का मुख्य उद्देश्य है —
“उत्तर-पूर्व भारत की सांस्कृतिक पहचान को मुख्यधारा भारत से जोड़ना और परस्पर समझ को बढ़ावा देना।”
इस उत्सव के माध्यम से लोगों को उत्तर-पूर्व के हस्तशिल्प, परिधान, नृत्य, लोककथाएँ, संगीत और खान-पान से परिचित कराया जा रहा है।
साथ ही, यह कार्यक्रम स्थानीय कलाकारों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का भी माध्यम बन रहा है।
आयोजन स्थल और अवधि
यह आयोजन इस वर्ष नागपुर (महाराष्ट्र) में किया जा रहा है, जहाँ देशभर से लोग भाग ले रहे हैं।
कार्यक्रम का उद्घाटन केंद्रीय संस्कृति मंत्री और राज्य के प्रमुख जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति में हुआ।
उत्सव लगभग सात दिनों तक चलेगा, जिसमें प्रतिदिन उत्तर-पूर्व के विभिन्न राज्यों की झलक प्रस्तुत की जाएगी।
हर दिन का एक थीम आधारित प्रदर्शन रखा गया है —
जैसे “नृत्य दिवस”, “लोक संगीत दिवस”, “हस्तशिल्प दिवस” आदि।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ
इस उत्सव का सबसे आकर्षक हिस्सा हैं — सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।
नृत्य और संगीत
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असम के बिहू कलाकारों ने पारंपरिक ढोल, पेपा और झांझ के साथ अद्भुत प्रस्तुति दी।
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मणिपुर की रासलीला में कृष्ण और गोपियों के भक्ति नृत्य ने दर्शकों का मन मोह लिया।
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नागालैंड के हॉर्नबिल योद्धा नर्तक पारंपरिक परिधानों में अपनी वीरता और लोकगाथाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
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मिज़ोरम की चेरेव (बांस नृत्य) ने ताल और सामंजस्य की अद्भुत मिसाल पेश की।
संगीत और लोक वाद्य
उत्तर-पूर्वी राज्यों के लोक वाद्य जैसे —
पेंग (मिज़ोरम), पेपा (असम), धोल, ढापी, पनथा और खोंग — उत्सव की रौनक बढ़ा रहे हैं।
इन संगीतों में प्रकृति, पहाड़ों और जीवन का सहज चित्रण दिखाई देता है।
हस्तशिल्प और पारंपरिक परिधान
उत्सव में लगाए गए “हस्तशिल्प मेला” में उत्तर-पूर्व के कारीगर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं।
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असम की मूंगा और एरी सिल्क की साड़ियाँ,
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मणिपुर के फाइबर्स से बने बैग और टोपी,
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नागालैंड की बांस और बेंत की बुनाई,
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त्रिपुरा के लकड़ी के खिलौने,
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और मिज़ोरम के रंगीन परिधान
यह सब उत्सव में आने वाले आगंतुकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
हर स्टॉल पर स्थानीय कारीगर अपनी परंपरा और तकनीक को बताते हुए गर्व महसूस कर रहे हैं।
उत्तर-पूर्व का स्वाद
“उत्तर-पूर्व संस्कृति का उत्सव” में भोजन का विशेष कोना भी है, जहाँ आगंतुक सात बहनों के स्वाद का आनंद ले रहे हैं।
कुछ लोकप्रिय व्यंजन —
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असम का खार और पिथा,
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मणिपुर का एरॉम्बा,
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मेघालय का जदोह,
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नागालैंड का पोर्क करी,
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मिज़ोरम का बंबू शूट चटनी,
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सिक्किम का मोमो और ठुकपा।
इन व्यंजनों से न केवल स्वाद मिलता है बल्कि यह वहां की जीवनशैली और संस्कृति का परिचय भी देते हैं।

कला प्रदर्शनियाँ और कार्यशालाएँ
उत्सव में कई कला प्रदर्शनियाँ और वर्कशॉप्स भी आयोजित की जा रही हैं —
जहाँ पेंटिंग, बुनाई, टेराकोटा, बांस शिल्प और पारंपरिक गहनों के निर्माण की तकनीकें सिखाई जा रही हैं।
छात्रों और युवाओं को स्थानीय कलाकारों से सीखने का अवसर मिल रहा है, जिससे पारंपरिक कलाओं को नई पीढ़ी में पुनर्जीवित किया जा सके।
पर्यटन को बढ़ावा
उत्तर-पूर्व भारत अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है —
चाय के बागान, बर्फ से ढके पर्वत, झरने और जनजातीय गांवों की शांति यहाँ की पहचान हैं।
इस उत्सव में पर्यटन मंत्रालय ने भी एक विशेष प्रदर्शनी लगाई है, जिसमें अरुणाचल के तवांग मठ, मेघालय के लिविंग रूट ब्रिज, असम के काज़ीरंगा नेशनल पार्क और सिक्किम के गुरुडोंगमर झील जैसे स्थलों की तस्वीरें प्रदर्शित की गई हैं।
उद्देश्य है — देशभर के लोगों को उत्तर-पूर्व पर्यटन से जोड़ना।
“एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की भावना

(AI generate)
यह उत्सव केवल सांस्कृतिक प्रदर्शन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और भाईचारे का संदेश देता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” अभियान के तहत ऐसे आयोजन पूरे देश में किए जा रहे हैं, ताकि हर भारतीय को दूसरे क्षेत्र की संस्कृति को समझने का मौका मिले।
Octave 2025 इसी दिशा में एक ठोस कदम है —
यह दिखाता है कि भारत की ताकत उसकी विविधता में है।
कलाकारों और दर्शकों की प्रतिक्रियाएँ
असम से आई नर्तकी रूपज्योति बोरदोलोई ने कहा —
“हम खुश हैं कि नागपुर जैसे शहर में हमें अपने बिहू नृत्य को प्रस्तुत करने का अवसर मिला। यह हमारी संस्कृति को जोड़ने का मंच है।”
नागपुर के स्थानीय दर्शक प्रशांत जोशी ने कहा —
“मैंने पहली बार मिज़ोरम का नृत्य देखा, और यह अद्भुत था। हमें देश के हर कोने की संस्कृति को जानने का मौका मिलना चाहिए।”
सामाजिक और आर्थिक महत्व
इस आयोजन का एक बड़ा प्रभाव यह है कि इससे स्थानीय कलाकारों और शिल्पकारों को रोजगार और बाजार मिल रहा है।
कई शिल्पकारों को अब देश के विभिन्न राज्यों से ऑर्डर मिलने लगे हैं।
साथ ही, यह आयोजन पर्यटन, होटल उद्योग और स्थानीय व्यवसायों के लिए भी फायदेमंद साबित हो रहा है।
शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान
कई विश्वविद्यालयों और सांस्कृतिक संस्थानों ने इस उत्सव को एक लाइव कल्चरल स्टडी प्रोजेक्ट के रूप में अपनाया है।
छात्र उत्तर-पूर्व की लोक परंपराओं, कला शैलियों और सामाजिक संरचनाओं पर शोध कर रहे हैं।
भविष्य की दिशा
सरकार की योजना है कि Octave उत्सव को हर साल किसी नए शहर में आयोजित किया जाए — ताकि उत्तर-पूर्व की संस्कृति पूरे देश में पहुंचे।
अगले वर्ष यह आयोजन जयपुर या लखनऊ में होने की संभावना है।
इससे न केवल सांस्कृतिक संवाद बढ़ेगा बल्कि कलाकारों को नए दर्शक भी मिलेंगे।
“उत्तर-पूर्व संस्कृति का उत्सव” सिर्फ एक कला-महोत्सव नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का उत्सव है।
यह दिखाता है कि भले ही हम भाषा, वेशभूषा या परंपराओं में अलग हैं, लेकिन हमारी जड़ें एक ही मिट्टी से जुड़ी हैं।
भारत की ताकत उसकी सांस्कृतिक एकता में है — और Octave 2025 ने इस एकता को रंगों, संगीत और नृत्य के माध्यम से पूरे देश तक पहुँचाया है।
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