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रायगढ़ में नौकरी के नाम पर ₹8 करोड़ की ठगी दो गिरफ्तार, छह आरोपी अब भी फरार

नौकरी के नाम पर ₹8 करोड़ की ठगी का खुलासा, 2 आरोपी गिरफ्तार, 6 की तलाश जारी

रायगढ़ जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने प्रशासन से लेकर आम जनता तक सभी को हैरान कर दिया है। यहां नौकरी दिलाने के नाम पर 8 करोड़ रुपए की ठगी का एक बड़ा रैकेट पकड़ा गया है। पुलिस ने इस मामले में 2 आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जबकि 6 अन्य की तलाश अभी भी जारी है। यह मामला न केवल आर्थिक अपराध का उदाहरण है बल्कि यह युवाओं के रोजगार से जुड़ी असुरक्षा और लालच का भी प्रतीक बनकर उभरा है।

नौकरी के नाम पर ₹8 करोड़ की ठगी का खुलासा, 2 आरोपी गिरफ्तार, 6 की तलाश जारी। Amar Ujala


मामले की शुरुआत कैसे हुई

पिछले कुछ महीनों से रायगढ़ और आस-पास के जिलों में यह चर्चा फैल रही थी कि एक निजी संस्था सरकारी और अर्धसरकारी विभागों में नौकरी दिलाने का दावा कर रही है।
लोगों को बताया जाता था कि उनके पास “ऊँचे स्तर तक पहुंच” है और वे रेलवे, कोल इंडिया, एनटीपीसी, और विभिन्न सरकारी परियोजनाओं में नौकरी दिलवा सकते हैं।

युवाओं से कहा जाता था कि यदि वे एकमुश्त “प्रोसेसिंग फीस” और “सिक्योरिटी अमाउंट” जमा कर देंगे तो 3 से 6 महीने में नियुक्ति पत्र मिल जाएगा।
शुरुआत में कुछ लोगों को फर्जी जॉइनिंग लेटर और नकली ट्रेनिंग कॉल लेटर देकर भरोसा जीत लिया गया। इसके बाद सैकड़ों लोगों से करोड़ों रुपए वसूल लिए गए।


ठगी का तरीका (Modus Operandi)

इस ठगी गिरोह ने बेहद सुनियोजित ढंग से युवाओं को जाल में फंसाया। उनके काम करने के तरीके पर नज़र डालें तो साफ़ होता है कि यह गिरोह लंबे समय से सक्रिय था।

  1. सोशल मीडिया और व्हाट्सएप ग्रुप्स का उपयोग
    – युवाओं को व्हाट्सएप ग्रुप्स में जोड़ा जाता था जहाँ “जॉब अपडेट्स” के नाम पर सरकारी भर्ती की सूचनाएँ डाली जाती थीं।
    – कुछ फर्जी वेबसाइट और ईमेल आईडी भी बनाई गई थीं जो देखने में सरकारी लगती थीं।

  2. इंटरव्यू और चयन प्रक्रिया का नाटक
    – उम्मीदवारों को “फॉर्मल इंटरव्यू” के लिए बुलाया जाता था, जहाँ तथाकथित “अधिकारी” उन्हें चयन की सूचना देते थे।
    – उन्हें “कॉल लेटर” और “डिपार्टमेंटल आईडी” भी दी जाती थी।

  3. पैसे की वसूली चरणबद्ध तरीके से
    – पहले 50,000 से ₹1 लाख “रजिस्ट्रेशन फीस” ली जाती थी।
    – चयन के बाद “सेक्योरिटी डिपॉजिट” के नाम पर 2–3 लाख रुपए और वसूले जाते थे।
    – कुछ लोगों से तो ₹10–15 लाख तक वसूले गए।

  4. फर्जी ऑफर लेटर और ट्रेनिंग कॉल
    – चयनित उम्मीदवारों को “ऑफर लेटर” भेजा जाता था, जिस पर किसी सरकारी कंपनी का लोगो और फर्जी सिग्नेचर होता था।
    – ट्रेनिंग शुरू होने से पहले अचानक संपर्क तोड़ दिया जाता था।


पुलिस की कार्रवाई

रायगढ़ पुलिस ने इस मामले की जांच तब शुरू की जब करीब 30 पीड़ितों ने सामूहिक रूप से शिकायत दर्ज कराई।
शिकायत के अनुसार, यह गिरोह पिछले एक साल से अलग-अलग जिलों में सक्रिय था।

पुलिस ने तकनीकी जांच के जरिए आरोपियों की पहचान की और रायगढ़ शहर के बाहरी इलाके में छापा मारकर दो लोगों को गिरफ्तार किया।
गिरफ्तार आरोपियों की पहचान —

  1. संदीप मिश्रा (उम्र 32 वर्ष)

  2. आकाश यादव (उम्र 29 वर्ष)
    के रूप में हुई है।

पुलिस के अनुसार, दोनों आरोपियों के पास से कई फर्जी दस्तावेज़, लैपटॉप, मोबाइल फोन, पैन कार्ड की कॉपी, और बैंक पासबुक बरामद की गई है।
उनके खातों में करोड़ों रुपये का लेन-देन हुआ है।


अब तक का वित्तीय खुलासा

प्राथमिक जांच में सामने आया है कि गिरोह ने कुल 8 करोड़ रुपये से अधिक की ठगी की है।
पुलिस ने 17 खातों को सीज़ किया है और इनमें से कई ट्रांज़ैक्शन दिल्ली, पटना, और नागपुर तक ट्रैक किए गए हैं।

जांच अधिकारी ने बताया कि यह गिरोह एक ऑल इंडिया नेटवर्क की तरह काम करता था।
रायगढ़ केवल इसका ऑपरेशन हब था, जबकि कॉल सेंटर जैसे नेटवर्क से अन्य शहरों में भी युवाओं को टारगेट किया जाता था।


पुलिस के अनुसार गिरोह के 6 सदस्य फरार

पुलिस सूत्रों ने बताया कि गिरोह के 6 मुख्य सदस्य अब भी फरार हैं।
इनमें से दो की पहचान हो चुकी है —

पुलिस ने सभी के खिलाफ धारा 420 (ठगी), 467 (फर्जी दस्तावेज बनाना), 468 (फर्जी दस्तावेज से ठगी), 120B (षड्यंत्र) के तहत मामला दर्ज किया है।


पीड़ितों की आपबीती

पीड़ित युवाओं में से कई इंजीनियरिंग और स्नातक पास हैं, जो लंबे समय से नौकरी की तलाश में थे।
कुछ ने बताया —

“हमें कहा गया था कि एनटीपीसी में ट्रेनिंग के बाद सीधी नौकरी मिलेगी। हमने अपनी जमा पूंजी लगा दी, पर कॉल सेंटर के नंबर अब बंद हैं।”

एक अन्य पीड़ित ने बताया —

“गिरोह के लोगों ने सरकारी ऑफिस का भ्रम पैदा करने के लिए हमें नकली ID कार्ड और साइनिंग लेटर दिखाए। हमें कभी शक नहीं हुआ।”

कई परिवार आर्थिक तंगी में हैं क्योंकि उन्होंने अपने गहने तक गिरवी रख दिए थे।


कैसे पकड़ा गया गिरोह

पुलिस को इस मामले में सबसे बड़ी मदद मिली बैंक ट्रांज़ैक्शन और मोबाइल लोकेशन से।
कई ट्रांज़ैक्शन एक ही बैंक खाते में जमा होते पाए गए, जिनसे आगे पेमेंट गेटवे के ज़रिए बिटकॉइन और क्रिप्टो अकाउंट्स में पैसा ट्रांसफर किया जा रहा था।

इसके बाद पुलिस ने साइबर सेल की मदद ली और फर्जी वेबसाइट का आईपी एड्रेस रायगढ़ से ट्रेस किया।
इस सूचना के आधार पर छापा मारकर दो आरोपी दबोचे गए।


कानूनी प्रक्रिया और आगे की जांच

गिरफ्तार आरोपियों को अदालत में पेश किया गया, जहाँ से उन्हें 7 दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया है।
पुलिस अब उन बचे हुए सदस्यों की तलाश कर रही है जो फिलहाल फरार हैं।
जांच एजेंसी यह भी पता लगा रही है कि क्या किसी सरकारी अधिकारी या बैंक कर्मचारी की भूमिका इसमें थी।


समाज के लिए सबक

यह मामला एक बार फिर साबित करता है कि बेरोजगारी और नौकरी की चाहत का फायदा उठाने वाले अपराधी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
युवाओं को हमेशा निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:


प्रशासन और जनता की प्रतिक्रिया

जिले के एसपी ने कहा —

“यह एक बड़ा साइबर-आर्थिक अपराध है। हमने प्राथमिक रूप से 8 करोड़ रुपये की ठगी का प्रमाण पाया है। जांच जारी है और बाकी आरोपियों को भी जल्द गिरफ्तार किया जाएगा।”

वहीं, स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह मामला युवाओं में जागरूकता बढ़ाने के लिए सरकारी स्तर पर अभियान चलाने की जरूरत को दर्शाता है।

रायगढ़ में नौकरी के नाम पर 8 करोड़ रुपये की ठगी का मामला सिर्फ आर्थिक अपराध नहीं है — यह युवाओं के सपनों, उनकी उम्मीदों और प्रशासनिक सतर्कता की परीक्षा है।
यह घटना एक बड़ी चेतावनी है कि कैसे डिजिटल युग में “नौकरी का जाल” फैलाने वाले गिरोह लोगों की मेहनत की कमाई पर हाथ साफ कर रहे हैं।

पुलिस की तत्परता से यह गिरोह अब बेनकाब हुआ है, पर इस घटना ने यह भी दिखा दिया है कि हमें रोजगार और साइबर फ्रॉड दोनों मोर्चों पर सतर्क रहना होगा।

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