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वृक्षों की बड़े पैमाने पर कटाई कारण, प्रभाव और समाधान✅


 वृक्षों की बड़े पैमाने पर कटाई पर्यावरणीय संकट और हमारे कर्तव्य

वृक्ष हमारे जीवन के लिए उतने ही आवश्यक हैं जितनी हवा, पानी और भोजन। वे हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं, वर्षा को संतुलित करते हैं, तापमान को नियंत्रित करते हैं और अनगिनत जीवों का घर हैं। लेकिन दुख की बात है कि आज विकास और औद्योगिकीकरण की अंधी दौड़ में हम इन्हीं वृक्षों को बड़े पैमाने पर काट रहे हैं।
वृक्षों की इस अंधाधुंध कटाई (Deforestation) ने पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र को गहराई से प्रभावित किया है। तापमान बढ़ रहा है, जैव विविधता घट रही है, और जलवायु परिवर्तन जैसी विनाशकारी घटनाएँ सामान्य होती जा रही हैं।

वृक्षों की बड़े पैमाने पर कटाई — ‘कोयला खदान’ के लिए — इलाके में कोयला खदान परियोजना के चलते हजारों पेड़ों की कटाई और विरोध-प्रदर्शन सामने आए। Amar Ujala


 वृक्षों की कटाई क्या है?

वृक्षों की कटाई यानी जंगलों या हरित क्षेत्रों से पेड़ों को हटाना ताकि भूमि का उपयोग किसी और कार्य के लिए किया जा सके — जैसे खेती, निर्माण, खनन, उद्योग, सड़क या शहरों का विस्तार।
जब यह प्रक्रिया नियंत्रित रूप से नहीं बल्कि बड़े पैमाने पर (mass deforestation) होती है, तो इसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ता है।

मुख्य कारण

  1. कृषि विस्तार – अधिक उपज के लिए खेतों का क्षेत्र बढ़ाना।

  2. शहरीकरण – बढ़ती आबादी के कारण शहरों का फैलाव।

  3. खनन और उद्योग – प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए वनभूमि की सफाई।

  4. सड़क और रेल परियोजनाएँ – कनेक्टिविटी के नाम पर पेड़ों की बलि।

  5. लकड़ी उद्योग – फर्नीचर, कागज़ और ईंधन के लिए वृक्षों की कटाई।


 विश्व स्तर पर स्थिति

संयुक्त राष्ट्र के “ग्लोबल फॉरेस्ट रिपोर्ट” के अनुसार, हर साल लगभग 1 करोड़ हेक्टेयर जंगल दुनिया से गायब हो रहे हैं।


 भारत की स्थिति

भारत में वन क्षेत्र का प्रतिशत 1950 के दशक में लगभग 33% था, जो अब घटकर 21.7% रह गया है।
छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, और मध्यप्रदेश जैसे राज्य जिनके पास देश के बड़े वनक्षेत्र हैं, वहाँ खनन, सड़क निर्माण और औद्योगिक प्रोजेक्ट्स के कारण वन विनाश तेजी से हो रहा है।

उदाहरण


 पर्यावरण पर प्रभाव

वृक्षों की बड़े पैमाने पर कटाई केवल हरियाली को खत्म नहीं करती, बल्कि यह हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है।

1. जलवायु परिवर्तन

पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर वातावरण को संतुलित रखते हैं। जब वृक्ष कटते हैं, तो यह गैस सीधे वातावरण में बढ़ती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग होती है।
इसका परिणाम —

2. मिट्टी का क्षरण

पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बाँधकर रखती हैं। जब पेड़ नहीं रहते, तो मिट्टी बह जाती है, जिससे भूमि बंजर हो जाती है।

3. जैव विविधता का विनाश

जंगलों में रहने वाले अनगिनत पशु-पक्षी और जीव-जंतु अपने घर खो देते हैं। इससे पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है और कई प्रजातियाँ विलुप्त हो जाती हैं।

4. जल संकट

वृक्ष वर्षा को आकर्षित करते हैं और भूजल स्तर को संतुलित रखते हैं। वृक्षों की कमी से जलस्तर घटता है और सूखा-स्थिति बढ़ती है।

5. वायु गुणवत्ता में गिरावट

पेड़ ऑक्सीजन देते हैं और प्रदूषक तत्वों को सोखते हैं। वृक्षों के बिना, वायु प्रदूषण बढ़ता है और सांस संबंधी बीमारियाँ फैलती हैं।


 सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

वृक्षों की कटाई का असर सिर्फ पर्यावरण पर नहीं, बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है।


 कानूनी प्रावधान और नीतियाँ

भारत सरकार ने वृक्ष संरक्षण के लिए कई कानून बनाए हैं, जैसे –

  1. Indian Forest Act, 1927 – वनों की सुरक्षा और नियंत्रण के लिए।

  2. Forest Conservation Act, 1980 – किसी भी वन भूमि को गैर-वन उपयोग में लाने से पहले अनुमति आवश्यक।

  3. Environment Protection Act, 1986 – प्रदूषण और पर्यावरणीय क्षति पर निगरानी।

  4. Compensatory Afforestation Fund Act, 2016 (CAMPA) – विकास परियोजनाओं में कटे पेड़ों की भरपाई के लिए नए वृक्ष लगाने का प्रावधान।

इसके बावजूद, इन कानूनों का पालन कई बार ढीला पाया गया है। कई कंपनियाँ जुर्माना देकर भी पेड़ों की कटाई जारी रखती हैं।


 पुनर्वनीकरण और समाधान

वृक्षों की कटाई के इस संकट से निपटने के लिए केवल कानून ही नहीं, बल्कि समाज की जागरूकता और भागीदारी जरूरी है।

1. अफॉरेस्टेशन (पुनर्वनीकरण)

कटे हुए वनों की जगह नए पेड़ लगाना जरूरी है। प्रत्येक उद्योग परियोजना को “एक-के-बदले पाँच पेड़” लगाने का नियम कड़ाई से लागू होना चाहिए।

2. स्मार्ट अर्बन प्लानिंग

शहरों में विकास कार्यों को हरित-संतुलन के साथ किया जाए। सड़क, भवन या मॉल निर्माण से पहले “ग्रीन इम्पैक्ट रिपोर्ट” आवश्यक हो।

3. सामुदायिक पहल

ग्राम पंचायत और स्थानीय समुदायों को वृक्षारोपण कार्यक्रमों से जोड़ना चाहिए।
“एक परिवार – एक वृक्ष” जैसी पहल को राज्य-स्तर पर बढ़ावा दिया जा सकता है।

4. पर्यावरण शिक्षा

स्कूलों और कॉलेजों में पर्यावरण शिक्षा को अनिवार्य किया जाए ताकि युवा पीढ़ी प्रकृति के महत्व को समझे।

5. टेक्नोलॉजी का उपयोग

ड्रोन और सैटेलाइट के माध्यम से वनों की निगरानी की जा सकती है। इससे अवैध कटाई पर तुरंत कार्रवाई संभव है।


 जनभागीदारी का महत्व

सरकार और नीतियाँ तब तक सफल नहीं होंगी जब तक आम लोग इसमें शामिल नहीं होंगे।
हम सभी निम्न तरीकों से योगदान दे सकते हैं:


 छत्तीसगढ़ में सकारात्मक पहलें

छत्तीसगढ़ सरकार ने “हरियर छत्तीसगढ़” अभियान के तहत पिछले कुछ वर्षों में करोड़ों पौधे लगाए हैं।


 यदि कटाई जारी रही तो क्या होगा?

यदि हम इसी तरह जंगलों को नष्ट करते रहे, तो अगले 30 वर्षों में

वृक्षों की बड़े पैमाने पर कटाई आज सिर्फ पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि मानव अस्तित्व का प्रश्न बन चुकी है।
पेड़ केवल ऑक्सीजन देने वाले जीव नहीं हैं — वे हमारी पृथ्वी के रक्षक हैं।
यदि हमें आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित और स्वस्थ धरती देनी है, तो हमें आज से ही यह संकल्प लेना होगा —

“जितने पेड़ काटें, उससे अधिक पेड़ लगाएँ।
प्रकृति के साथ नहीं, प्रकृति के लिए जिएँ।”

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