घाट-तटों पर आस्था का सैलाब रायगढ़ में छठ महापर्व की अद्भुत झलक

छत्तीसगढ़ का रायगढ़ जिला इस बार भी आस्था, परंपरा और लोकसंस्कृति का अनोखा संगम बन गया है। केलो नदी के तटों, जुटमिल घाट, खर्रा घाट और आसपास के अन्य जलाशयों पर हजारों श्रद्धालु महिलाओं और परिवारों ने डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर “छठ महापर्व” की भव्य शुरुआत की।
भोर की पहली किरणों के साथ जब व्रती महिलाएँ जल में उतरकर सूर्यदेव को अर्घ्य दे रही थीं, तो पूरा वातावरण “छठ मइया के जयकारों” और पारंपरिक गीतों से गूंज उठा। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो रायगढ़ की धरती स्वयं श्रद्धा में डूब गई हो।
घाट-तटों पर आस्था का सैलाब
रायगढ़ जिले के केलो नदी तट पर व्रती महिलाओं तथा अन्य श्रद्धालुओं ने शाम-के समय डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया। https://mpcg.ndtv.in/+2Public+2
छठ पूजा का धार्मिक महत्व

छठ पूजा सूर्यदेव और छठी मइया की उपासना का पर्व है, जिसमें कृतज्ञता, संयम और आत्मशुद्धि का भाव निहित होता है। मान्यता है कि सूर्यदेव जीवनदाता हैं — उनकी आराधना से ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त होती है।
चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उगते सूर्य के अर्घ्य जैसे चार मुख्य चरणों में सम्पन्न होता है। हर चरण में अनुशासन, तपस्या और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
रायगढ़ में इस पर्व का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत गहरा है। यहाँ हर वर्ग, हर समुदाय के लोग मिलकर इसकी तैयारी करते हैं, जिससे यह केवल पूजा नहीं बल्कि सामुदायिक एकता का प्रतीक बन जाता है।
रायगढ़ के घाटों की तैयारी

छठ पर्व से कई दिन पहले ही रायगढ़ नगर निगम और जिला प्रशासन ने घाटों की सफाई, मरम्मत और प्रकाश व्यवस्था शुरू कर दी थी।
केलो नदी के प्रमुख घाट — जुटमिल घाट, खर्रा घाट, बरमकेला घाट, और रायगढ़ शहर का महादेव घाट — इस बार भी सुंदर सजावट से सजे दिखाई दिए।
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घाटों पर टेंट और बैरिकेडिंग लगाई गई ताकि श्रद्धालु सुरक्षित रूप से पूजा कर सकें।
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महिलाओं के लिए विशेष चेंजिंग रूम बनाए गए।
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नगरपालिका कर्मचारियों ने लगातार सफाई अभियान चलाया, ताकि जल प्रदूषण न हो।
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बिजली विभाग ने अस्थायी लाइटों की व्यवस्था की, जिससे रात के अंधेरे में भी घाट जगमगाते रहे।
नगर निगम आयुक्त और एसडीएम ने स्वयं घाटों का निरीक्षण किया और सुरक्षा प्रबंधों का जायजा लिया। पुलिस व होमगार्ड जवानों की तैनाती से भीड़ को व्यवस्थित किया गया।
भक्तिमय वातावरण और लोक परंपराएँ
26 और 27 अक्टूबर की शाम को जब डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का समय आया, तो पूरा वातावरण एक अद्भुत दृश्य में बदल गया।
नदी तट पर दीपों की श्रृंखला जल उठी, महिलाएँ पारंपरिक साड़ी पहनकर कलश लिए खड़ी थीं। हाथों में डाला, उसमें ठेकुआ, केला, गन्ना, नारियल, फूल और दीये सजाए गए थे।
“केलवा जे फरेला घवद से, ओ धनुस खिले फूल…” जैसे पारंपरिक गीतों ने माहौल को पूरी तरह लोक-सुगंध से भर दिया।
बच्चे, पुरुष, बुजुर्ग — सभी इस महाआरती में शामिल थे।
कई जगहों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए, जहाँ स्थानीय कलाकारों ने छठ गीत और भक्ति-संगीत प्रस्तुत किया। यह सब देखकर लगा मानो पूरा रायगढ़ एक विशाल मंदिर में बदल गया हो।
डूबते सूर्य को अर्घ्य – आस्था का पहला चरण
संध्या के समय व्रती महिलाएँ नदी में उतरकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। यह क्षण सबसे भावनात्मक और आस्था से भरा होता है।
सैकड़ों दीपक जलते हुए पानी में तैरने लगते हैं, और नदी का जल सुनहरी चमक से भर जाता है।
लोगों का विश्वास है कि इस अर्घ्य से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं और परिवार को आरोग्य, सौभाग्य व समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
रायगढ़ में इस बार के अर्घ्य का नजारा इतना सुंदर था कि देखने वाले मंत्रमुग्ध रह गए।
केलो नदी के जल में सैकड़ों दीपों की लौ प्रतिबिंबित हो रही थी, मानो आकाश के सितारे धरती पर उतर आए हों।
उगते सूर्य को अर्घ्य – श्रद्धा का चरम
अगले दिन सुबह भोर होते ही श्रद्धालु घाटों पर पहुँच गए।
ठंडी हवा और हल्की धुंध के बीच जब पूर्व दिशा से सूर्य की पहली किरण फूटी, तो हर ओर “छठ मइया की जय” के स्वर गूंज उठे।
व्रती महिलाएँ जल में खड़ी होकर उगते सूर्य को अर्घ्य देती रहीं, उनके चेहरे पर संतोष और समर्पण का अद्भुत भाव था।
कई परिवारों ने इस अवसर पर सामूहिक भोग का आयोजन किया — ठेकुआ, पूड़ी, चावल-खीर, केला और नारियल जैसे प्रसाद बाँटे गए।
यह दृश्य न केवल धार्मिक उत्सव था, बल्कि पारिवारिक एकता और सामाजिक बंधन की मिसाल भी पेश कर रहा था।
सुरक्षा और प्रशासनिक पहल
इस बार प्रशासन ने सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया।
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एनडीआरएफ की टीम को कुछ संवेदनशील घाटों पर तैनात किया गया।
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मेडिकल कैंप लगाए गए जहाँ स्वास्थ्य-सहायता उपलब्ध थी।
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ट्रैफिक पुलिस ने विशेष रूट-डायवर्जन लागू किया ताकि भीड़-भाड़ के दौरान अव्यवस्था न हो।
नगर निगम ने यह भी सुनिश्चित किया कि प्लास्टिक का उपयोग घाटों पर न हो — “स्वच्छ छठ” अभियान के तहत श्रद्धालुओं को जैविक सामग्री उपयोग करने की अपील की गई।
इन प्रयासों से इस बार का आयोजन पहले से अधिक सुव्यवस्थित और पर्यावरण-अनुकूल रहा।
सांस्कृतिक एकता और सामुदायिक सहभागिता
रायगढ़ में छठ पर्व का सबसे सुंदर पहलू इसकी सामुदायिक भागीदारी है।
यहाँ केवल भोजपुरी और पूर्वांचल समाज ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ी, मराठी, ओडिया, पंजाबी, बंगाली और आदिवासी समाज के लोग भी पूरे उत्साह से भाग लेते हैं।
इससे यह पर्व अब केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बन गया है।
स्थानीय समाजसेवी संस्थाओं ने भी घाटों पर प्रसाद वितरण, जल-सहायता और सफाई-अभियान चलाया।
स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी स्वयंसेवक के रूप में कार्य करते हुए श्रद्धालुओं की सहायता कर रहे थे।
लोकसंगीत और मीडिया की भूमिका
छठ पर्व की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई है कि स्थानीय मीडिया और सोशल मीडिया दोनों पर इसकी छवियाँ छा गईं।
रायगढ़ के कई यूट्यूब चैनल्स और न्यूज़ पोर्टल्स ने लाइव कवरेज दी।
ड्रोन से ली गई घाटों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, जिनमें हजारों दीपों से सजी केलो नदी का दृश्य वाकई अद्भुत था।
इसके साथ-साथ लोकगीत और भक्ति संगीत की नई रिकॉर्डिंग्स ने भी लोगों का ध्यान खींचा।
स्थानीय कलाकारों ने पारंपरिक गीतों में आधुनिक संगीत का तड़का लगाकर इस परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुँचाने की कोशिश की।
पर्यावरण और स्वच्छता पर ध्यान
पिछले कुछ वर्षों से यह देखा गया है कि बड़े आयोजनों में प्रदूषण की समस्या बढ़ जाती है।
इस बार रायगढ़ प्रशासन और स्थानीय लोगों ने मिलकर यह सुनिश्चित किया कि नदी में कचरा, प्लास्टिक या पूजा-सामग्री का अंबार न लगे।
“छठ पूजा – स्वच्छ रायगढ़ का संदेश” अभियान के तहत घाटों पर सफाई टीम तैनात थी।
व्रतियों से अपील की गई कि पूजा के बाद सामग्री को निर्दिष्ट स्थानों पर ही डालें।
लोगों ने इस पहल को सराहा और इस बार घाट पहले से अधिक स्वच्छ और आकर्षक नजर आए।
आस्था का संदेश और भविष्य की दिशा
छठ पर्व केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन है।
यह हमें सिखाता है कि संयम, प्रकृति-सम्मान और कृतज्ञता जीवन के मूल मूल्य हैं।
रायगढ़ जैसे शहर में यह पर्व यह भी दिखाता है कि कैसे विविध संस्कृतियों में एकता बनी रह सकती है।
आने वाले वर्षों में प्रशासन और समाज यदि इसी तरह समन्वय बनाए रखे, तो यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि पर्यटन, संस्कृति और सामुदायिक सौहार्द के क्षेत्र में भी रायगढ़ को एक नया आयाम दे सकता है।
छठ पूजा के अवसर पर रायगढ़ के घाट-तटों पर उमड़ा यह “आस्था का सैलाब” केवल श्रद्धा का नहीं, बल्कि एकता, अनुशासन और संस्कृति का प्रतीक है।
हजारों दीपों की रोशनी, व्रतियों की तपस्या और समाज के सहयोग से यह पर्व एक अविस्मरणीय स्मृति बन गया।
जैसे-जैसे सूर्य की किरणें जल में प्रतिबिंबित होती रहीं, वैसे-वैसे यह संदेश भी स्पष्ट होता गया —
कि जब समाज एक साथ मिलकर श्रद्धा और स्वच्छता का संगम बनाता है, तो हर घाट, हर तट “आस्था की गंगा” में बदल जाता है।
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