देव‑उठनी एकादशी एवं श्री श्याम महोत्सव-रायगढ़ में एक भक्तिमय आरंभ

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में इस वर्ष एक विशेष उत्सव का शुभारंभ देखा गया है — जब “देव-उठनी एकादशी” के पावन अवसर पर **श्री श्याम महोत्सव” का आरंभ हुआ, जिसमें स्थानीय भक्तों ने बड़े उत्साह, श्रद्धा तथा संयोजन के साथ भाग लिया। इस ब्लॉग में हम इस महोत्सव के पृष्ठभूमि, आयोजन, प्रमुख कर्मकांड, सामाजिक-आर्थिक प्रभाव तथा उत्सव से जुड़ी चुनौतियों-माध्यमों पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।
1. जागरण का पर्व देव-उठनी एकादशी का महत्व

देव-उठनी एकादशी का शाब्दिक अर्थ है — देवों का जागना। हिन्दू पौराणिक अनुसार, इस दिन देव (विश्णु) का वैष्णव चक्रण समाप्त होता है और वे अपनी दिव्य निद्रा से जाग जाते हैं, इस दिन से शुभ-कार्यों की शुरुआत मानी जाती है।
इस पावन तिथि को अनेक स्थानों पर विशेष पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन एवं व्रत के रूप में मनाया जाता है। रायगढ़ में यह पर्व “श्री श्याम महोत्सव” के आरंभ के तौर पर चुना गया है क्योंकि भगवान श्याम (खाटू श्यामजी की परम्परा) के प्रति श्रद्धा इस क्षेत्र में गहरी है।
2. महोत्सव का आयोजन दिनांक-कार्यक्रम एवं स्थल

रायगढ़ में इस वर्ष 47वाँ श्री श्याम महोत्सव आयोजित हो रहा है — कार्यक्रम की रूप-रेखा इस प्रकार है
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आयोजनकर्ता: श्री श्याम मण्डल, रायगढ़ (स्थान-विशिष्ट स्थानीय संस्था)
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तिथि-आधार: 29 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक मेहँदी-श्रृंखला एवं 1 नवंबर को शोभायात्रा और भजन-संध्या का आरंभ।
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मुख्य समारोह स्थान: श्री श्याम बगीची, रायगढ़ एवं आसपास का विस्तारित परिसर
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प्रमुख आयोजन
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मेहँदी (महिलाओं द्वारा) के साथ स्वागत समारोह
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निशान-यात्रा (प्रातः) — 1 नवंबर को श्रीराम मंदिर गांधीगंज से प्रारंभ होकर श्याम मंदिर तक का मार्ग तय करेगा।
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भजन-संध्या एवं संकीर्तन-कीर्तन (रात में) जिसमें कलाकार एवं भजनगायक आमंत्रित हैं।
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भंडारा (सामूहिक प्रसाद-वितरण) एवं सामाजिक-भोजन कार्यक्रम।
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अन्य सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ एवं भक्तिमय गतिविधियाँ।
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इस प्रकार इस महोत्सव ने धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक तीनों आयामों को समाहित कर रखा है।
3. शोभायात्रा एवं भंडारा उत्सव के मुख्य आकर्षण
शोभायात्रा इस महोत्सव का एक सबसे देखने-लायक हिस्सा है। इस वर्ष, 1 नवंबर को सुबह से काफिला प्रभात जैसे शुरुआत करेगा — झांकी, पांडाल, पुष्पवर्षा, ढोल-नगाड़ों के संग यात्रियों का उत्साह.
भंडारा का आयोजन भी श्रद्धालुओं एवं भक्त-समूहों के लिए विशेष है — मंदिर परिसर में प्रसाद वितरण, मुफ्त भोजन व्यवस्था, सेवा-कार्य के रूप में सदैव मनाया जाता है। इस प्रकार, इस उत्सव ने “भक्ति” के साथ “सेवा” और “सामुदायिक एकता” का संदेश भी दिया है।
शोभायात्रा में शामिल विशाल झाँकियों, ढोल-नगाड़ों, भक्त- समूहों, फूलों-इत्र की वर्षा तथा श्रद्धालुओं का हुजूम, इस आयोजन को स्थानीय जन-जीवन में एक पर्व-समान बना देता है।
4. धार्मिक-आस्था का असर भक्तों, स्थानियों एवं आयोजन समिति की भूमिका
इस महोत्सव में तीन प्रमुख हिस्सेदार हैं — भक्त-समुदाय, आयोजन समिति तथा स्थानीय प्रशासन।
भक्त-समुदाय
भक्तों की उपस्थिति इस उत्सव की जान है। मेहँदी-लगा कर महिलाएँ, झाँकी-सजावट कर युवक-किशोर, पारिवारिक समूह और बाहर से आये श्रद्धालु — सभी इस माहौल में शामिल होते हैं। लोक-भाषा में जमकर “जय श्याम” के उद्घोष सुनाई देते हैं।
आयोजन समिति
श्याम मण्डल द्वारा समय-पूर्व तैयारी की गयी है — जगह का चयन, झाँकी-सजावट, ध्वनि-व्यवस्था, पूजा-क्रम एवं सुरक्षा प्रबंध। उदाहरण के तौर पर एक समाचार में बताया गया कि महोत्सव के लिए निशान-यात्रा मार्गी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। raigarhtopnews.com
स्थानीय प्रशासन
इस तरह के बड़े धार्मिक आयोजन में प्रशासन की भागीदारी अनिवार्य होती है — यातायात व्यवस्था, सुरक्षा, सफाई-प्रबंधन, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सहायता आदि। इस साल रायगढ़ में कार्यक्रम स्थल एवं मार्ग के लिए स्थानीय जिम्मेदारियों का ब्योरा सामने आया है।
5. सामाजिक-सांस्कृतिक एवं आर्थिक पहलू
इस महोत्सव का प्रभाव सिर्फ धार्मिक तक सीमित नहीं है — इसके पीछे कई सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक लाभ भी जुड़े हैं।
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सामुदायिक एकता: विभिन्न उम्र-वर्ग, जाति-पंथ के लोग एक साथ आते हैं, भजन-कीर्तन में भाग लेते हैं, साझा प्रसाद खाते हैं — इससे सामाजिक बंधन गहराते हैं।
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स्थानीय व्यापार को बढ़ावा: झाँकी-सजावट, फूल-माल-इत्र की बिक्री, खाद्य-स्टॉल, यात्री-लॉजिंग, स्थानीय परिवहन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को मदद मिलती है।
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संस्कृति की रक्षा-प्रसार: भजन-कीर्तन, झाँकी-नृत्य, ध्वनि-व्यवस्था में स्थानीय कलाकार सक्रिय होते हैं, नए प्रतिभाओं को मंच मिलता है।
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आस्था-उत्साह का संचार: भक्तों में सकारात्मक ऊर्जा, उम्मीद और उत्साह का संचार होता है — व्यक्ति-व्यक्ति में सहयोग-भागीदारी की भावना बढ़ती है।
6. चुनौतियाँ एवं आगे की दिशा
इतने बड़े आयोजन में चुनौतियाँ भी होती हैं — कुछ प्रमुख हैं
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सुरक्षा-व्यवस्था: बड़ी भीड़ में सुरक्षा, भीड़ नियंत्रण, मेडिकल आपात स्थिति इत्यादि को संभालना जरूरी है।
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स्वच्छता एवं परिवहन: यातायात जाम, कूड़ा-कर्कट, आसपास मार्गों की उपेक्षा— इन सब पर ध्यान देना होता है।
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ध्वनि-प्रदूषण / रोशनी-प्रबंधन: रात के आयोजन में ध्वनि नियम और स्थानीय निवासियों के आराम का संतुलन बनाना पड़ेगा।
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भक्तों की सुविधा: रहने-खाने की व्यवस्था, प्राथमिक चिकित्सा, पेयजल आदि मूलभूत सुविधाएं सुनिश्चित होनी चाहिए।
आने वाले वर्षों में आयोजन को और अधिक व्यवस्थित, पर्यावरण-सुरक्षित तथा समावेशी बनाने की दिशा में यह पहल हो सकती है कि सरकारी-स्वयंसेवी संस्थाएँ मिलकर “ग्रीन महोत्सव” का स्वरूप दें — कम प्लास्टिक उपयोग, पुनरावृत्ति-सामग्री, रीसायक्लिंग आदि।
रायगढ़ में मनाए जा रहे श्री श्याम महोत्सव ने इस वर्ष “देव-उठनी एकादशी” के साथ एक सशक्त शुरुआत ली है। यह आयोजन न सिर्फ धार्मिक रूप से बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
भक्ति-उत्साह, झाँकी-शोभायात्रा, भंडारा-सेवा — इन सब ने एक खूबसूरत सामूहिक अनुभव को जन्म दिया है। लेकिन जैसे-जैसे आयोजन बड़ा होता जा रहा है, ध्यान देना होगा कि सुरक्षा-सुविधा-पर्यावरणीय संतुलन साथ-साथ बने रहें।
भक्तों को यह अवसर मिलता है कि वे अपने श्रद्धा भाव को सार्वजनिक रूप में अनुभव करें, और स्थानिय समुदाय को यह मौका मिलता है कि वह अपनी संस्कृति-परम्परा को आगे ले जाए।
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