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देवउठनी एकादशी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि

देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) 2025

देवउठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन का अर्थ होता है – देव­उठना, अर्थात् देवताओं का जागरण। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार-महीने की योगनिद्रा से जागते हैं और पृथ्वी-लोक में पुनः धार्मिक, सामाजिक एवं शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।

यह व्रत विशेष रूप से कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है, जो कि पर्वत, मंडल, वृंदावन, गृह-स्थ आदि में श्रद्धा एवं भक्ति के साथ निभाई जाती है।  


2. तिथि, मुहूर्त एवं पारण समय (2025)

इन समयों का ध्यान रखने से व्रत का फल और पूजा-उपक्रम अधिक प्रभावी माना जाता है।


3. महत्त्व एवं पौराणिक कथा

3.1 महत्त्व

3.2 कथा (संक्षिप्त)

बहुती प्रचलित कथा के अनुसार, एक राजा या व्यक्ति ने व्रत नहीं रखा था, लेकिन एकादशी तिथि पर व्रत रखने का संकल्प लिया। व्रत एवं पूजा-उपक्रम के बाद उसे अद्भुत फल मिला, जिससे यह सिख मिलता है कि एकादशी-व्रत, ईमानदारी एवं श्रद्धा के साथ किया जाए।


4. पूजा-विधि, मंत्र एवं सामग्री

4.1 पूजा-विधि

  1. व्रत-दिन प्रातः जल्दी उठ जाएँ, स्वच्छ स्नान करें और पीला या वस्त्र पहनें। मंदिर/घर का पूजा स्थल साफ करें।

  2. पूजा-स्थल में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करें।

  3. तुलसी माता का ध्यान करें – तुलसी का पौधा यदि संभव हो तो पूजा में शामिल करें।

  4. पंचामृत स्नान, गंगाजल छिड़काव, दीपक-धूप-कपूर आदि द्वारा आराधना करें। पुष्प (पीले/सफेद), चावल, अक्षत, हल्दी-रोली अर्पित करें।

  5. “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” जैसे मंत्रों का जप करें।

  6. अंत में भोग अर्पित करें — खीर, मिश्री, फल-फूल, तुलसी-पत्र आदि। फिर आरती करें।

  7. व्रतपूर्व संकल्प लें एवं अगले दिन पारण समय में व्रत खोलें।

4.2 आवश्यक सामग्री


5. व्रत नियम एवं संयम


6. सामाजिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि


7. तुलसी विवाह का संबंध


8. स्थानीय-समयानुसार (भारत) सुझाव

देवउठनी एकादशी एक ऐसा पवित्र अवसर है, जिसमें हम न केवल भगवान विष्णु के जागरण का आनंद लेते हैं, बल्कि स्वयं के भीतर जागृति-स्थिति का अनुभव भी कर सकते हैं। यह दिन हमें बताता है कि हर थके-मांदे समय के बाद पुनरुत्थान संभव है।

पूरे मन, शुद्ध इरादे और श्रद्धा के साथ इस दिन का व्रत, पूजा-अर्चना करना हमारे जीवन में नए अध्याय का आरंभ कर सकता है – चाहे वह आध्यात्मिक हो, सामाजिक हो या व्यक्तिगत सुधार का।

इसलिए, आज के दिन सही समय पर पूजा करें, व्रत रखें, कथा सुनें, और विश्व-स्थिरता, परिवार-समृद्धि, आत्म-शुद्धि की कामना करें। भगवान विष्णु आपकी भक्ति-भाव से प्रसन्न होंगे और आपके जीवन में शुभ उत्थान लाएँगे।

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