छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने “चाइनीज़ मांझा” के निर्माण-बिक्री-उपयोग पर सख्त आदेश दिए
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने शुक्रवार को राज्यभर में “चाइनीज़ मांझा” — यानी सिंथेटिक, नायलॉन या ग्लास कोटेड पतंग डोर — के निर्माण, बिक्री और उपयोग पर सख्त प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया है। अदालत ने यह फैसला एक स्वप्रेरित जनहित याचिका (Suo Motu PIL) पर सुनवाई करते हुए दिया, जिसमें राज्य में बढ़ती दुर्घटनाओं, जानवरों की मौत और पर्यावरणीय नुकसान को लेकर चिंता जताई गई थी।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने “चाइनीज़ मांझा” (सिंथेटिक पतंग डोर) के निर्माण-बिक्री-उपयोग पर सख्त आदेश दिए: राज्य भर में यह आदेश लागू हुआ है। The Times of India
पृष्ठभूमि चाइनीज़ मांझा क्या है?
चाइनीज़ मांझा असल में एक प्रकार की सिंथेटिक डोर होती है, जिसे पतंग उड़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह डोर नायलॉन या प्लास्टिक से बनी होती है और उस पर शीशे या धातु का बारीक पाउडर कोट किया जाता है ताकि यह तेज़ और काटने में सक्षम हो।
परंतु यही तीक्ष्णता इसे जानलेवा बना देती है।
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यह बिजली की तारों में फँसने पर शॉर्ट सर्किट कर देती है।
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सड़क पर दोपहिया चालकों के गले और हाथ काटने की कई घटनाएं सामने आई हैं।
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पक्षियों और पशुओं की गर्दन इस मांझे से कट जाने की घटनाएँ भी आम हैं।
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और सबसे गंभीर बात — यह नॉन-बायोडिग्रेडेबल होती है, यानी मिट्टी में गलती नहीं, जिससे पर्यावरण को स्थायी नुकसान होता है।
कोर्ट में मामला कैसे पहुंचा?
राज्य के विभिन्न जिलों से आई खबरों में कई दर्दनाक हादसे दर्ज हुए थे —
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रायपुर और बिलासपुर में बाइक चालकों की गर्दन कटने की घटनाएँ,
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रायगढ़ और दुर्ग में पेड़ों और बिजली के तारों में फँसी डोर से पक्षियों की मौत,
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और नालों-नदियों में फेंके गए मांझे से जल-जीवों को नुकसान।
इन घटनाओं पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने स्वत संज्ञान (Suo Motu Cognizance) लिया और राज्य सरकार, नगर निगमों, पुलिस और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस जारी किया था।
कोर्ट का फैसला “Zero Tolerance Policy”
सुनवाई के बाद, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि —
“चाइनीज़ मांझा मानव और पशु जीवन दोनों के लिए खतरनाक है। यह पर्यावरण को भी हानि पहुँचाता है। इसलिए इसका निर्माण, बिक्री, भंडारण, आयात और उपयोग पूर्णतः वर्जित रहेगा।”
अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि
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सभी जिलों के कलेक्टर यह सुनिश्चित करें कि कोई व्यापारी या दुकान इस डोर की बिक्री न करे।
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पुलिस विभाग बाजारों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर निगरानी रखे।
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नगर निगम और नगर पंचायतें पतंग के त्योहारों (जैसे मकर संक्रांति) से पहले जागरूकता अभियान चलाएं।
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छत्तीसगढ़ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) इस पर हर तीन महीने में रिपोर्ट कोर्ट को सौंपे।
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जो व्यक्ति इस नियम का उल्लंघन करेगा, उस पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत जुर्माना और दंडात्मक कार्रवाई होगी।
कानूनी पृष्ठभूमि पहले से ही राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंध
दरअसल, चाइनीज़ मांझा पर पहले से ही राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) द्वारा 2017 में प्रतिबंध लगाया गया था। NGT ने इसे देशभर में “खतरनाक और पर्यावरण के लिए हानिकारक उत्पाद” माना था।
इसके बावजूद, देश के कई राज्यों में — खासकर त्योहारों के समय — इसकी गुप्त बिक्री जारी रहती है।
छत्तीसगढ़ में भी यही स्थिति थी, जिस पर अब कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है।
क्यों है यह डोर इतनी खतरनाक?
1. मानव जीवन के लिए खतरा
हर साल पतंगबाज़ी के मौसम में देशभर में 30 से अधिक जानें मांझे से कटकर चली जाती हैं।
दोपहिया वाहन चालकों के गले में यह डोर फँसने से तुरंत गहरी चोट या मृत्यु तक हो जाती है।
2. पक्षियों का दुश्मन
मांझे में उलझकर पक्षी उड़ नहीं पाते, और अक्सर उनकी पंख व गर्दन कट जाती है।
रायगढ़, रायपुर और बिलासपुर में पक्षी बचाव संस्थाओं ने सैकड़ों मामलों में घायल पक्षी बचाए हैं।
3. पर्यावरणीय प्रदूषण
यह डोर प्लास्टिक या नायलॉन से बनी होती है, जो न तो गलती है और न ही जलती।
नालों, खेतों और पेड़ों में फँसी डोर लंबे समय तक पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती है।
4. बिजली आपूर्ति पर असर
चाइनीज़ मांझा बिजली के तारों में फँसकर शॉर्ट सर्किट कर देता है, जिससे बार-बार बिजली गुल होने की घटनाएँ बढ़ती हैं।
सरकार की ओर से उठाए गए कदम
छत्तीसगढ़ सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के बाद तुरंत कार्रवाई की घोषणा की है।
मुख्य सचिव ने सभी जिलों को निर्देश दिए हैं कि
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थोक व खुदरा दुकानों पर छापा मारा जाएगा।
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ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स (जैसे Amazon, Flipkart) से इस उत्पाद को हटाने के लिए केंद्र सरकार को सिफारिश की जाएगी।
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स्कूलों, कॉलेजों और समुदायिक संस्थाओं में जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे।
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मकर संक्रांति से पहले “सेफ काइटिंग ड्राइव” चलाई जाएगी।
पक्षी प्रेमियों की खुशी
“छत्तीसगढ़ बर्ड रेस्क्यू फाउंडेशन” और “ग्रीन अर्थ सोसाइटी” जैसी संस्थाओं ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।
फाउंडेशन के संस्थापक रमेश ठाकुर ने कहा:
“हर साल मकर संक्रांति के बाद हम सैकड़ों घायल पक्षियों को अस्पताल पहुँचाते हैं। यह फैसला पक्षियों के लिए वरदान है।”
आम जनता की प्रतिक्रिया
रायगढ़ के मोटरसाइकिल चालक संघ ने भी कोर्ट के फैसले की सराहना की है।
एक सदस्य ने कहा,
“हमारे कई साथी सड़क पर चलने के दौरान मांझे से घायल हुए हैं। अब अगर यह डोर पूरी तरह बंद हो जाती है, तो हादसे कम होंगे।”
हालांकि, पतंग व्यापारी संघ ने मांग की है कि सरकार “सेफ मांझा” (कॉटन या बायोडिग्रेडेबल डोर) के निर्माण को प्रोत्साहित करे, ताकि बाजार पूरी तरह ठप्प न हो।
भविष्य की दिशा
विशेषज्ञों का मानना है कि इस आदेश से
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पर्यावरणीय नुकसान कम होगा,
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वन्यजीवों की सुरक्षा बढ़ेगी,
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और त्योहारों को अधिक “सुरक्षित” बनाया जा सकेगा।
साथ ही, राज्य सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि विकल्प के रूप में “इको-फ्रेंडली मांझा” उपलब्ध कराया जाए, जिससे लोगों की परंपराएं भी बनी रहें और पर्यावरण की सुरक्षा भी।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का यह आदेश सिर्फ एक प्रतिबंध नहीं, बल्कि जीवन और पर्यावरण की सुरक्षा का संदेश है।
जब कानून, प्रशासन और जनता मिलकर जिम्मेदारी निभाएंगे, तभी यह कदम प्रभावी साबित होगा।
पतंग उड़ाना आनंद और उत्सव का प्रतीक है, लेकिन यदि इससे किसी की जान पर खतरा हो, तो यह उत्सव नहीं — दुर्घटना बन जाता है।
कोर्ट का यह फैसला उस दिशा में एक सकारात्मक और आवश्यक कदम है।
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