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छत्तीसगढ़ में महिला और पर्यावरण विरोध की अनोखी कहानी 85 वर्षीय महिला की पुकार बनी जन आवाज़

 छत्तीसगढ़ में महिला और पर्यावरण विरोध की अनोखी कहानी — 85 वर्षीय महिला की पुकार बनी जनआवाज़

16 अक्टूबर 2025 को छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ जिले में हुई एक घटना ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया।
एक 85 वर्षीय बुजुर्ग महिला, जिसने बीते 20 वर्षों तक एक पीपल के पेड़ की देखभाल अपने बच्चे की तरह की थी, उस पेड़ को अवैध रूप से काट दिए जाने के बाद फूट-फूटकर रो पड़ी। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और कुछ ही घंटों में यह “महिला और पर्यावरण विरोध” का प्रतीक बन गया।

यह सिर्फ एक पेड़ काटे जाने की घटना नहीं थी — यह उस समाज की पुकार थी जो प्रकृति, संवेदना और पर्यावरण संतुलन के महत्व को भूलता जा रहा है।

महिला और पर्यावरण विरोध — खैरागढ़ जिले के एक गाँव में 20 साल से देखभाल की जा रही पीपल वृक्ष को अवैध रूप से काट दिया गया। 85 वर्षीय महिला के आंसुओं का वीडियो वायरल हुआ। The Economic Times


 घटना की पृष्ठभूमि

घटना छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ जिले के कोटमी गांव की है। गांव के बीचोंबीच एक पुराना पीपल का पेड़ था, जिसे माया देवी नामक 85 वर्षीय महिला ने बीते दो दशकों से पानी देकर, साफ़ रखकर और पूजा करके बड़ा किया था।

ग्रामीण बताते हैं कि माया देवी रोज़ सुबह उस पेड़ के नीचे दीपक जलाती थीं और बच्चों को छाया में खेलने देती थीं। लेकिन 15 अक्टूबर की रात को कुछ लोगों ने कथित रूप से बिना अनुमति के उस पेड़ को काट दिया।

सुबह जब माया देवी ने देखा कि पेड़ ज़मीन पर पड़ा है, तो उन्होंने ज़ोर-ज़ोर से रोना शुरू कर दिया। किसी ने उनका यह वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया — और यही वीडियो छत्तीसगढ़ से लेकर दिल्ली तक चर्चा का विषय बन गया।


 सोशल मीडिया पर हुआ ज़बरदस्त विरोध

माया देवी का रोता हुआ वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स — X (Twitter), Instagram और Facebook पर वायरल हुआ। लाखों लोगों ने इसे साझा करते हुए #SaveTrees #ChhattisgarhGreenMovement जैसे हैशटैग चलाए।

यह वीडियो इतना प्रभावशाली था कि केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने भी इसे रीट्वीट किया और लिखा —

“यह दृश्य हमारे समाज को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम विकास के नाम पर संवेदनाओं को कुचल रहे हैं।”

पर्यावरण कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और स्थानीय पंचायतों ने भी इस घटना की निंदा करते हुए जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।


 माया देवी की कहानी — एक महिला, एक पेड़, एक जीवन

माया देवी ने अपने पति की मृत्यु के बाद अकेलेपन में उस पीपल के पेड़ को अपनी ज़िंदगी का साथी बना लिया था। उन्होंने पेड़ को “गोपाल” नाम दिया था और रोज़ सुबह उसकी पूजा करती थीं।

उनके शब्दों में:

“मैंने इस पेड़ को अपने बच्चे की तरह पाला है, इससे बात की है, इसे पानी दिया है… और अब इसे ऐसे काट दिया, जैसे किसी ने मेरा दिल निकाल लिया हो।”

यह वाक्य लोगों के दिलों में उतर गया। यह सिर्फ एक वृद्धा की वेदना नहीं थी, बल्कि प्रकृति के साथ इंसान के रिश्ते की मार्मिक व्याख्या थी।


 प्रशासन की प्रतिक्रिया

घटना सामने आने के बाद खैरागढ़ प्रशासन ने तत्काल जांच के आदेश दिए।

हालांकि अधिकारियों ने कहा कि आगे से किसी भी निर्माण परियोजना में पहले पर्यावरणीय मूल्यांकन किया जाएगा।


 पर्यावरण कार्यकर्ताओं का दृष्टिकोण

छत्तीसगढ़ में काम कर रहे पर्यावरणविदों का कहना है कि यह घटना केवल “पेड़ काटने” का मुद्दा नहीं है — यह एक व्यवस्था की संवेदनहीनता को दर्शाती है।

पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. अर्चना दुबे ने कहा:

“छत्तीसगढ़ में हर साल हजारों पेड़ विकास परियोजनाओं के नाम पर काटे जा रहे हैं, लेकिन उनका पुनरोपण बेहद कम हो रहा है। माया देवी की घटना ने इस गंभीर समस्या को उजागर किया है।”


 महिला और पर्यावरण का रिश्ता

महिलाएँ सदियों से पर्यावरण संरक्षण की रीढ़ रही हैं। चाहे वह चिपको आंदोलन की गौरा देवी हों या छत्तीसगढ़ की माया देवी — दोनों की संवेदना एक जैसी है।

 प्रमुख बिंदु

  1. महिलाएँ घर और प्रकृति दोनों की संरक्षक होती हैं।

  2. ग्रामीण इलाकों में महिलाएँ जल, जंगल और जमीन की असली प्रहरी हैं।

  3. पर्यावरण विनाश का सबसे गहरा असर महिलाओं पर ही पड़ता है — जैसे जल संकट, ईंधन की कमी आदि।

इसलिए जब कोई महिला पर्यावरण के लिए खड़ी होती है, तो वह पूरे समाज की आवाज़ बन जाती है।


 जन आंदोलन में बदला विरोध

घटना के बाद स्थानीय युवाओं और महिलाओं ने “माया बचाओ, पर्यावरण बचाओ” नामक अभियान शुरू किया।

राज्य के अन्य जिलों में भी यह अभियान फैल गया, और यह आंदोलन छत्तीसगढ़ की हरित चेतना का प्रतीक बन गया।


 छत्तीसगढ़ में पेड़ कटाई की स्थिति

वर्ष काटे गए पेड़ पुनरोपण किए गए पेड़ पुनरोपण दर (%)
2021 45,000 27,000 60%
2022 58,000 31,500 54%
2023 62,000 36,000 58%
2024 70,000 40,000 57%

2025 में स्थिति और भी चिंताजनक बताई जा रही है। इसीलिए माया देवी की यह घटना नीतिगत बदलाव की दिशा में एक प्रेरक बिंदु बन सकती है।


 समाज पर प्रभाव

  1. संवेदनशीलता में वृद्धि: आम लोगों में पर्यावरण के प्रति भावनात्मक जुड़ाव बढ़ा।

  2. सरकारी सतर्कता: अब नई परियोजनाओं में ‘ग्रीन क्लीयरेंस’ को प्राथमिकता दी जा रही है।

  3. शिक्षा में संदेश: स्कूलों और कॉलेजों में इस घटना को “जीवंत केस स्टडी” के रूप में पढ़ाया जा रहा है।

  4. महिला नेतृत्व का उदय: ग्रामीण महिलाएँ अब स्वयं अपने गांवों में वृक्षारोपण समितियाँ बना रही हैं।


 पर्यावरण और महिला सशक्तिकरण का मिलन

यह घटना बताती है कि महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण दो अलग विषय नहीं हैं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।
जब महिलाएँ अपने आसपास की प्रकृति को सुरक्षित रखती हैं, तो वे समाज के लिए टिकाऊ विकास (Sustainable Development) की नींव रखती हैं।

“अगर हर गांव में एक माया देवी होती, तो पृथ्वी हरी-भरी रहती।”
पर्यावरण लेखक सुभाष बक्शी


 सरकार की नई पहलें

इस घटना के बाद राज्य सरकार ने तीन प्रमुख घोषणाएँ कीं

  1. ‘हर घर एक पेड़’ योजना: हर घर के सामने एक पेड़ लगाने का संकल्प।

  2. ‘वन सखी समूह’: ग्रामीण महिलाओं द्वारा जंगलों की सुरक्षा के लिए समिति का गठन।

  3. ‘माया देवी सम्मान’: पर्यावरण संरक्षण में योगदान देने वाली महिलाओं को वार्षिक राज्य पुरस्कार।

इन योजनाओं का उद्देश्य है — पर्यावरण संरक्षण को भावनात्मक और सामाजिक जिम्मेदारी बनाना।


 वैश्विक संदर्भ

माया देवी का विरोध स्थानीय होते हुए भी वैश्विक महत्व रखता है। विश्वभर में कई आंदोलन हुए हैं जहां महिलाओं ने पर्यावरण के लिए आवाज़ उठाई —

इन सभी आंदोलनों का सार यही था — प्रकृति को बचाना, यानी जीवन को बचाना।


 माया देवी का संदेश

घटन के बाद जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि क्या वह सरकार से कुछ कहना चाहती हैं, तो उन्होंने धीरे से कहा —

“बस इतना चाहती हूं कि कोई और पेड़ इस तरह न काटा जाए। पेड़ भी हमारी तरह जीते हैं, बस बोल नहीं पाते।”

यह वाक्य पूरे छत्तीसगढ़ की चेतना को झकझोर गया। यह एक वृद्धा का दर्द नहीं, बल्कि धरती माता की आवाज़ थी।

खैरागढ़ की यह घटना एक जागरूकता की ज्वाला बन चुकी है। एक महिला का दर्द पूरे प्रदेश की चेतना को हिला गया और लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि —
क्या विकास की कीमत प्रकृति को देकर चुकानी चाहिए?

छत्तीसगढ़ की यह कहानी दिखाती है कि महिलाएँ न सिर्फ घर की, बल्कि धरती की भी संरक्षक हैं।

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