Site icon City Times Raigarh

तमनार वन परिक्षेत्र में करंट से हाथी की मौत 1 दर्दनाक हादसा

तमनार वन परिक्षेत्र में करंट से हाथी की मौत प्रकृति के साथ बढ़ता असंतुलन


छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के तमनार वन परिक्षेत्र से एक दर्दनाक खबर सामने आई है। यहां करंट लगने से एक जंगली हाथी की मौत हो गई। यह घटना न केवल वन विभाग के लिए चिंता का विषय है, बल्कि यह इंसान और वन्यजीवों के बीच बढ़ते टकराव की एक और त्रासद मिसाल भी है।

वन अधिकारियों के अनुसार, मृत हाथी लगभग 20 वर्ष का था और पिछले कुछ दिनों से अपने झुंड के साथ तमनार के जंगलों में विचरण कर रहा था। प्रारंभिक जांच में पाया गया कि जिस स्थान पर हाथी की मौत हुई, वहां खेत की सुरक्षा के लिए बिछाई गई ग़ैर-कानूनी विद्युत तार से यह हादसा हुआ।

The Times of India

कैसे हुआ हादसा?

स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि बीती रात हाथियों का झुंड गांव के पास स्थित धान के खेतों में घुस आया था। किसानों ने फसलों को बचाने के लिए खेत की मेड़ पर 230 वोल्ट का बिजली तार लगा रखा था। इसी दौरान एक हाथी तार की चपेट में आ गया और घटनास्थल पर ही उसकी मौत हो गई।

जब सुबह ग्रामीण खेतों की ओर गए, तो उन्होंने हाथी का शव देखा और तुरंत वन विभाग को सूचना दी। मौके पर पहुंची वन विभाग की टीम ने बिजली लाइन को हटाया और शव का पंचनामा तैयार किया।

वन विभाग की कार्रवाई

घटना की जानकारी मिलते ही डीएफओ (वनमंडल अधिकारी) ने टीम को मौके पर भेजा। पशु चिकित्सक की उपस्थिति में शव का पोस्टमार्टम किया गया। प्रारंभिक रिपोर्ट में करंट लगने से मौत की पुष्टि हुई है।

वन विभाग ने खेत मालिक के खिलाफ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 9, 39, और 51 के तहत मामला दर्ज किया है। जांच में यह भी सामने आया कि बिजली लाइन को बिना अनुमति के खेत में खींचा गया था।

तमनार क्षेत्र — हाथियों का प्राकृतिक मार्ग

तमनार वन परिक्षेत्र रायगढ़ जिले का एक ऐसा इलाका है जहां हाथियों का पारंपरिक आवागमन मार्ग (Elephant Corridor) स्थित है। यह क्षेत्र ओडिशा सीमा से सटा हुआ है, जहां से हाथियों के झुंड अक्सर भोजन और पानी की तलाश में छत्तीसगढ़ की ओर आते हैं।

पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में खनन गतिविधियां, सड़क निर्माण और ग्रामीण विस्तार ने जंगलों को खंडित कर दिया है। इससे हाथियों के पारंपरिक रास्ते बाधित हो गए हैं, और वे गांवों की ओर रुख करने लगे हैं।

मानव-हाथी संघर्ष के बढ़ते मामले

छत्तीसगढ़ में हर साल औसतन 60 से 70 हाथियों की मौत होती है। इनमें से कई की जान बिजली करंट, अवैध फेंसिंग या ट्रेन से टकराने जैसी घटनाओं में जाती है।

वहीं दूसरी ओर, ग्रामीण इलाकों में फसलों को नुकसान, घरों के टूटने और कभी-कभी मानव मौतों के कारण लोगों में भी नाराजगी बढ़ती जा रही है।
तमनार, धरमजयगढ़, लैलूंगा, सराईपाली और महasamund जैसे इलाकों में यह संघर्ष लगातार बढ़ रहा है।

हाथियों की घटती संख्या एक गंभीर संकेत

वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, रायगढ़ जिले में लगभग 140–160 जंगली हाथी विचरण करते हैं। लेकिन पिछले एक दशक में करंट, शिकार और भूख-प्यास के कारण दर्जनों हाथियों की मौत हो चुकी है।
हाथी पर्यावरणीय संतुलन के लिए बेहद आवश्यक प्राणी हैं। वे जंगल में बीजों के प्रसार से लेकर जल स्रोतों की सुरक्षा तक कई पारिस्थितिक कार्य करते हैं।

कानूनी पहलू क्या कहते हैं नियम?

भारत में हाथी को ‘Schedule-I’ (अत्यंत संरक्षित) पशु के रूप में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में शामिल किया गया है।
इस अधिनियम के अनुसार —

फिर भी ग्रामीण इलाकों में कई बार जानकारी के अभाव और तत्काल फसलों की रक्षा के लिए लोग यह कानून तोड़ बैठते हैं।

स्थानीय लोगों की स्थिति और डर

ग्रामीणों का कहना है कि हर साल फसलों को हाथी नुकसान पहुंचाते हैं। रातों को हाथियों के झुंड गांवों के पास आ जाते हैं, जिससे जान-माल दोनों का खतरा रहता है।
“हम भी क्या करें? खेत बचाने के लिए बिजली लगाई थी, किसी की जान लेने का इरादा नहीं था,” — एक ग्रामीण ने कहा।

यह बयान उस संवेदनशील स्थिति की ओर इशारा करता है जहां ग्रामीण अपनी सुरक्षा और आजीविका के बीच फंसे हुए हैं।

विशेषज्ञों की राय

वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए दीर्घकालिक नीति और समुदाय आधारित समाधान जरूरी हैं।

पर्यावरणविद् डॉ. रविशंकर पटेल के अनुसार —

“हाथी सिर्फ जंगल का नहीं, पूरे पारिस्थितिक तंत्र का हिस्सा है। जब हम उसके घर में अतिक्रमण करते हैं, तो संघर्ष स्वाभाविक है। सरकार को हाथी गलियारे (Elephant Corridor) को कानूनी सुरक्षा देनी चाहिए।”

क्या हैं संभावित समाधान?

  1. सुरक्षित बिजली प्रबंधन:
    ग्रामीण इलाकों में बिजली के तारों की नियमित जांच और सुरक्षा कवर लगाना आवश्यक है।

  2. हाथी चेतावनी प्रणाली:
    सेंसर आधारित अलर्ट सिस्टम और सोलर फेंसिंग के जरिए हाथियों की गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सकती है।

  3. समुदाय आधारित वन प्रबंधन:
    स्थानीय लोगों को संरक्षण गतिविधियों में शामिल किया जाए और उन्हें वैकल्पिक आजीविका प्रदान की जाए।

  4. मानव-हाथी संवाद अभियान:
    गांवों में जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं ताकि लोग अवैध बिजली फेंसिंग जैसी गतिविधियों से बचें।

  5. हाथी गलियारे का संरक्षण:
    सरकार को हाथियों के पारंपरिक मार्गों को “संरक्षित कॉरिडोर” घोषित कर विकास परियोजनाओं से मुक्त रखना चाहिए।

घटना का प्रभाव और प्रतिक्रिया

इस घटना ने स्थानीय और सोशल मीडिया पर भी काफी ध्यान खींचा है।
लोगों ने इसे “मानव लोभ की मार” बताया है।
वन विभाग ने मृत हाथी का अंतिम संस्कार वन्यजीव सम्मान रीति से किया, जिसमें स्थानीय लोग और अधिकारी भी शामिल हुए।

 इंसान और प्रकृति के बीच संतुलन की जरूरत

तमनार की यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा हमेशा विनाशकारी होता है।
जंगल सिर्फ पेड़ों का समूह नहीं, बल्कि एक जीवित तंत्र (Living System) है — जिसमें हर जीव का एक अहम रोल है।

हाथी जैसे विशालकाय जीव यदि असुरक्षित महसूस करने लगें, तो यह हमारे पर्यावरणीय दृष्टिकोण पर सवाल उठाता है।

1. इंसान और प्रकृति का गहरा रिश्ता

प्रकृति ही मनुष्य के अस्तित्व की जड़ है —
हवा, पानी, जंगल, मिट्टी, पशु-पक्षी — सब कुछ हमारी जीवन-रेखा हैं।
लेकिन जैसे-जैसे औद्योगीकरण और शहरीकरण बढ़ा, इंसान ने विकास के नाम पर प्रकृति का दोहन शुरू कर दिया।

रायगढ़ जैसे जिलों में कोयला खनन, बिजली संयंत्र और फैक्टरियों ने आर्थिक विकास तो दिया,
लेकिन साथ ही जंगलों का विनाश, प्रदूषण और वन्यजीव विस्थापन जैसी समस्याएं भी पैदा कीं।

2. विकास और विनाश — दोधारी तलवार

विकास ज़रूरी है, लेकिन अगर वह प्रकृति की कीमत पर हो, तो वह स्थायी (sustainable) नहीं कहा जा सकता।
जंगल काटने से —

कोयला खनन जैसे प्रोजेक्ट से रोजगार तो मिलते हैं, लेकिन दीर्घकालिक पर्यावरणीय नुकसान कहीं अधिक गहरे होते हैं।

इसलिए ज़रूरी है कि विकास की हर परियोजना के साथ पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment) और जवाबदेही तय हो।

3. वन्यजीवों पर असर

जंगल केवल पेड़ों का समूह नहीं हैं — यह लाखों जीवों का घर हैं।
जब बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जाते हैं, तो हाथी, बाघ, हिरण, भालू जैसे जीवों के आवास नष्ट हो जाते हैं।
रायगढ़ और आसपास के क्षेत्रों में अक्सर देखा गया है कि हाथी अब गांवों तक आ जाते हैं, जिससे मानव-हाथी संघर्ष बढ़ता है।

यह संघर्ष इस बात का संकेत है कि हमने उनके घरों पर अतिक्रमण कर लिया है।

4. स्थानीय समुदायों का जीवन संकट

प्रकृति के साथ सबसे गहरा संबंध आदिवासी और ग्रामीण समुदायों का होता है।
वे जंगल से जल, लकड़ी, औषधि और रोज़गार सब कुछ पाते हैं।
जब जंगल खत्म होते हैं, तो उनकी आजीविका, संस्कृति और पहचान भी खतरे में पड़ जाती है।

इसलिए विकास योजनाओं में उनकी सहमति, भागीदारी और पुनर्वास अनिवार्य होना चाहिए।

5. संतुलन का अर्थ क्या है?

प्रकृति और विकास के बीच संतुलन का मतलब यह नहीं कि हम प्रगति रोक दें —
बल्कि इसका अर्थ है “सतत विकास” (Sustainable Development)
यानी ऐसा विकास जिससे आज की जरूरतें पूरी हों,
पर भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतें बाधित न हों।

इसके लिए हमें अपनाना होगा —

6. सरकार और समाज की भूमिका

सिर्फ सरकारी नीतियाँ काफी नहीं —
संतुलन तभी संभव है जब समाज भी इसमें सक्रिय भागीदार बने।
हर व्यक्ति को यह समझना होगा कि प्रकृति कोई “विकल्प” नहीं, बल्कि “आधार” है।

 सबक और संवेदनशीलता

तमनार वन परिक्षेत्र में करंट से हुई हाथी की मौत केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक चेतावनी है।
अगर हम अब भी नहीं चेते, तो आने वाले वर्षों में न केवल हाथियों की संख्या घटेगी बल्कि हमारे जंगलों का संतुलन भी बिगड़ जाएगा।

सरकार, वन विभाग, स्थानीय प्रशासन और नागरिक — सभी को मिलकर ऐसे हादसों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
हाथियों के साथ हमारा रिश्ता भय का नहीं, सह-अस्तित्व का होना चाहिए।

Next-

छत्तीसगढ़ नक्सल विरोधी अभियान 2025 जंगल में हथियार निर्माण इकाई का खुलासा, सुरक्षा की नई दिशा

Exit mobile version