छत्तीसगढ़ में नक्सल-विरोधी अभियान जंगल में हथियार निर्माण इकाई का खुलासा 
बढ़ती सुरक्षा सतर्कता की नई दिशा
छत्तीसगढ़ राज्य दशकों से नक्सलवाद की चुनौती का सामना करता आ रहा है। जंगलों से घिरे बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा और नारायणपुर जैसे जिले नक्सली गतिविधियों के गढ़ माने जाते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा बलों और राज्य सरकार की योजनाबद्ध रणनीतियों ने नक्सली संगठनों की जड़ें कमजोर कर दी हैं। हाल ही में सामने आया मामला — जंगल क्षेत्र में हथियार निर्माण इकाई का खुलासा — इस बात का संकेत है कि नक्सलियों की पुरानी रणनीतियों में बदलाव हो रहा है और अब सुरक्षा बलों का फोकस भी नई तकनीक और खुफिया जानकारी पर अधिक केंद्रित हो गया है।
राज्य में नक्सल-विरोधी अभियान: जंगल क्षेत्र में हथियार उत्पादन इकाई का खुलासा, यह विकास छत्तीसगढ़ में सुरक्षा-परिस्थितियों को दिखाता है। The Times of India
घटना का खुलासा जंगल में हथियार निर्माण इकाई का पर्दाफाश
नवंबर 2025 के पहले सप्ताह में छत्तीसगढ़ पुलिस और सीआरपीएफ की संयुक्त टीम ने दंतेवाड़ा और सुकमा की सीमा पर स्थित एक घने जंगल में अभियान चलाया। इस अभियान में नक्सलियों द्वारा संचालित एक गुप्त हथियार निर्माण इकाई का खुलासा हुआ।
सूत्रों के अनुसार, इस इकाई में स्थानीय सामग्री से रॉकेट लॉन्चर, देसी बम, माइंस और ऑटोमेटिक बंदूकों के हिस्से तैयार किए जा रहे थे। जांच में यह भी सामने आया कि यह इकाई पिछले 6 महीनों से सक्रिय थी और नक्सलियों द्वारा यहां ग्रामीणों को धमकाकर श्रम करवाया जा रहा था।
जब सुरक्षा बलों ने क्षेत्र की घेराबंदी की, तो कई नक्सली जंगल के भीतर भाग निकले। मौके से कई अधूरे हथियार, बारूद, डेटोनेटर, मशीनरी उपकरण और मैन्युअल डिजाइन नोट्स बरामद किए गए।
जांच में क्या मिला?
फॉरेंसिक और इंटेलिजेंस टीमों द्वारा की गई शुरुआती जांच में निम्न बातें सामने आईं —
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स्थानीय स्तर पर हथियार निर्माण की कोशिशें नक्सलियों की नई रणनीति का हिस्सा हैं ताकि बाहरी सप्लाई पर निर्भरता कम की जा सके।
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कई हथियारों के डिजाइन ब्लूप्रिंट दक्षिण भारत और झारखंड में पकड़े गए नक्सली समूहों से मेल खाते हैं।
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इकाई में कुछ आधुनिक टूल्स और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट भी मिले हैं, जिससे यह साबित होता है कि नक्सल तकनीकी रूप से भी विकसित होने की कोशिश कर रहे हैं।
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बरामद हथियारों का उपयोग मुख्य रूप से IED (Improvised Explosive Device) और एंबुश अटैक में किया जाना था।
नक्सलियों की रणनीति में बदलाव
नक्सली संगठन पहले मुख्य रूप से बाहरी माध्यमों — जैसे तस्करों, ब्लैक मार्केट और सीमावर्ती राज्यों के माध्यम से हथियार प्राप्त करते थे। लेकिन सुरक्षा एजेंसियों की कड़ी निगरानी और बढ़ते समर्पण अभियानों के कारण उनकी सप्लाई लाइन प्रभावित हो गई है।
इस स्थिति में, उन्होंने स्थानीय निर्माण इकाइयों की स्थापना शुरू कर दी है। यह न केवल संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाता है, बल्कि सुरक्षा एजेंसियों के लिए खतरा भी बनता है, क्योंकि ये इकाइयाँ गहरे जंगलों में छिपी होती हैं जहाँ पहुँचना मुश्किल होता है।
सुरक्षा बलों की भूमिका और रणनीति
छत्तीसगढ़ पुलिस, CRPF, और DRG (District Reserve Guard) ने पिछले दो वर्षों में कई बड़ी कार्रवाई की है। इस दौरान उन्होंने न केवल कई नक्सलियों को मार गिराया बल्कि 2000 से अधिक नक्सली समर्थकों ने आत्मसमर्पण भी किया।
इस अभियान की सफलता का श्रेय बेहतर खुफिया नेटवर्क, ड्रोन सर्विलांस और स्थानीय जनजातियों के सहयोग को जाता है।
हालिया अभियान में भी ड्रोन और थर्मल इमेजिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया, जिससे जंगल के भीतर छिपी इस फैक्ट्री का पता लगाया जा सका।
स्थानीय जनजीवन पर प्रभाव
जहाँ एक ओर नक्सल विरोधी अभियान से सुरक्षा मजबूत हुई है, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों में भय और अविश्वास का माहौल भी बना हुआ है।
कई बार निर्दोष ग्रामीणों को नक्सलियों और पुलिस दोनों के बीच संदेह के घेरे में आना पड़ता है।
राज्य सरकार ने इस स्थिति को सुधारने के लिए “विकास ही सुरक्षा” नीति अपनाई है। इसके तहत सड़कें, स्कूल, अस्पताल और मोबाइल नेटवर्क जैसी सुविधाएँ जंगल क्षेत्रों तक पहुँचाई जा रही हैं।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने हाल ही में बयान दिया —
“छत्तीसगढ़ में अब नक्सलवाद अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है। हमने विकास और संवाद दोनों को हथियार बनाया है।”
आंकड़े बताते हैं बदलता छत्तीसगढ़
| वर्ष | नक्सली घटनाएँ | सुरक्षा बलों की कार्रवाई | आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली |
|---|---|---|---|
| 2022 | 391 | 72 | 525 |
| 2023 | 280 | 95 | 1,230 |
| 2024 | 210 | 110 | 1,950 |
| 2025 (अब तक) | 130 | 87 | 1,100 |
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि राज्य में नक्सली घटनाओं में लगातार गिरावट हो रही है और आत्मसमर्पण की संख्या बढ़ रही है।
तकनीकी और सामाजिक उपाय
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ड्रोन निगरानी गहरे जंगलों में निगरानी के लिए ड्रोन कैमरों का उपयोग किया जा रहा है।
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विकास परियोजनाएँ सड़कें, जलस्रोत और शिक्षा केंद्रों से स्थानीय युवाओं को रोजगार मिल रहा है।
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जनसंपर्क अभियाननक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ‘जन संवाद’ कार्यक्रमों के माध्यम से विश्वास बहाली।
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महिला सुरक्षा बलों की भागीदारी Bastariya Battalion जैसी पहल से स्थानीय युवतियों को सुरक्षा बलों में शामिल किया गया है।
नक्सलवाद का घटता प्रभाव और भविष्य की चुनौती
छत्तीसगढ़ में नक्सली गतिविधियों की पकड़ धीरे-धीरे कमजोर पड़ रही है।
हालांकि, सुरक्षा एजेंसियाँ यह मानती हैं कि पूरी तरह से सफाया अभी संभव नहीं है, क्योंकि कुछ सीमावर्ती इलाके — जैसे गढ़चिरौली (महाराष्ट्र) और मलकानगिरी (ओडिशा) — अब भी नक्सलियों के ठिकाने बने हुए हैं।
भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि विकास की रफ्तार को बनाए रखा जाए और जनजातीय समुदायों का विश्वास कायम रखा जाए।
विकास और शांति का नया अध्याय
राज्य सरकार अब “नया छत्तीसगढ़” की परिकल्पना पर काम कर रही है —
जहाँ जंगल, जल, जमीन के साथ जनजीवन में शांति और समृद्धि का वातावरण बने।
नक्सलियों के खिलाफ यह हालिया अभियान न केवल सुरक्षा दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि यह भी दर्शाता है कि राज्य अब डर से आगे बढ़कर आत्मनिर्भरता और सुरक्षा के युग की ओर बढ़ रहा है।
छत्तीसगढ़ का यह नक्सल-विरोधी अभियान सिर्फ एक सैन्य सफलता नहीं बल्कि सामाजिक बदलाव की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है।
जंगलों में हथियार निर्माण इकाई का खुलासा इस बात का प्रतीक है कि अब नक्सलवाद अपने अंतिम दौर में है, और सुरक्षा बलों की मुस्तैदी के साथ राज्य के नागरिक भी इस परिवर्तन में भागीदार बन रहे हैं।
छत्तीसगढ़ अब उस दिशा में बढ़ रहा है जहाँ विकास और सुरक्षा एक साथ चलते हैं —
“विकास ही सबसे बड़ा हथियार है।”Next –
