आंवला नवमी आध्यात्मिक आस्था का पर्व और विष्णु देव साय द्वारा किया गया आयोजन
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्व आंवला नवमी, जिसे कभी–कभी “अक्षय नवमी” या “धात्री नवमी” के नाम से भी जाना जाता है, प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से आंवला वृक्ष (एवॉला, अमला) की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है, क्योंकि पारंपरिक मान्यताओं में इस वृक्ष को दिव्य-औषधीय गुणों से युक्त माना गया है।
इस वर्ष, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने अपनी पत्नी कौशल्या साय के साथ मुख्यमंत्री निवास में इस पर्व के अवसर पर आंवला वृक्ष की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की और प्रदेशवासियों के सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य एवं खुशहाली की कामना की।
आइए इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि आंवला नवमी का क्या धार्मिक एवं सामाजिक महत्व है, इस दिन की पूजा-विधि क्या है, मुख्यमंत्री के इस आयोजन की प्रमुख बातें क्या रहीं, और इस पर्व से हमें क्या संदेश मिलता है।
1. आंवला नवमी – पर्व का महत्व
धार्मिक-आध्यात्मिक दृष्टि से
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इस दिन को अक्षय (असंभव नष्ट होने वाला) पुण्य का दिन माना गया है, क्योंकि इस तिथि को किए गए व्रत-पूजा-दान का फल कभी नष्ट नहीं होता।
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परंपरा कहती है कि आंवला वृक्ष में देवताओं का वास होता है, विशेष रूप से विष्णु और शिव जी को आंवला वृक्ष प्रिय हैं।
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कथा अनुसार, आंवला का फल अमृत तुल्य माना गया है, और उसकी पूजा-अर्चना से जीवन में स्वास्थ्य, धन-धान्य, मानसिक शांति एवं सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
सामाजिक-प्राकृतिक दृष्टि से
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वृक्ष-पूजा का यह रूप प्रकृति के प्रति हमारी आस्था और संस्कार का प्रतिबिंब है। वृक्षों का संरक्षण, संतुलित पर्यावरण और प्राकृतिक औषधीय गुणों के प्रति जागरूकता इस पर्व के माध्यम से बढ़ती है।
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आज जब पर्यावरणीय संकट और वृक्ष-उत्पादन व कटाव जैसे मुद्दे सामने हैं, ऐसे में आंवला नवमी हमें याद दिलाती है कि हमारी पारंपरिक संस्कृति में वृक्षों को सिर्फ पृष्ठभूमि नहीं बल्कि जीवन-संरक्षण का आधार माना गया है।
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इसलिए इस पर्व में सामाजिक दायित्व के रूप में भी संदेश निहित है — वृक्ष लगाना, उनकी देखभाल करना एवं प्राकृतिक साधनों की उपेक्षा न करना।
2. पूजा-विधि और प्रचलित रीति-रिवाज
इस पर्व को विधिपूर्वक मनाने के लिए निम्नलिखित रीति-रिवाज विशेष माने गए हैं
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प्रातः स्नान करके, पूर्व दिशा की ओर मुख करके आंवला वृक्ष के नीचे बैठना।
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वृक्ष की जड़ में दूध की धारा देना, सूत से वृक्ष को लपेटना, कपूर-घी की बत्ती से आरती करना।
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वृक्ष की परिक्रमा करना; अधिकांश जगह 108 बार परिक्रमा करना शुभ माना गया है।
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पूजा पश्चात वृक्ष के नीचे भोजन करना एवं जरूरतमंदों को भोजन-दान करना।
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इस दिन गाय, भूमि, वस्त्र व अन्य रूपों में दान करना विशेष लाभदायक माना गया है।
इन विधियों का संस्कार यह दर्शाता है कि आंवला नवमी सिर्फ पूजा-व्रत तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें प्रकृति-सेवा, दान-पुण्य, सामाजिक सामंजस्य जैसे तत्व भी शामिल हैं।
3. मुख्यमंत्री विष्णु देव साय द्वारा किया गया आयोजन
छत्तीसगढ़ में इस वर्ष आंवला नवमी के अवसर पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने निम्नलिखित तरीके से आयोजन किया
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वे एवं उनकी पत्नी कौशल्या साय ने मुख्यमंत्री निवास में आंवला वृक्ष की पूजा-अर्चना की।
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उन्होंने इस अवसर पर भाषण में इस पर्व के आध्यात्मिक एवं सामाजिक अर्थों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आंवला नवमी “धन, आरोग्य और समृद्धि का संदेश देने वाला पर्व” है।
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साथ ही उन्होंने प्रदेशवासियों से अपील की कि वे प्राकृतिक एवं औषधीय वनस्पतियों—विशेष रूप से आंवले जैसे वृक्षों—के संरक्षण के लिए जागरूक हों। वृक्षों की पूजा करने के साथ उनका संरक्षण हमारा सामूहिक दायित्व है।
इस प्रकार, मुख्यमंत्री का यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं रहा, बल्कि एक सामाजिक-पर्यावरणीय संदेश के रूप में उभरा।। Navbharat Times
4. क्यों महत्वपूर्ण है यह संदेश?
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स्वास्थ्य और आयुर्वेदिक दृष्टि से आंवला (एवॉला) एक अत्यंत पोषक और औषधीय फल है, जिसे आयुर्वेद एवं अन्य प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में अमृत-सदृश माना गया है। इस वृक्ष के प्रति आदर और पूजा इस गुण के कारण भी है। इसलिए वृक्ष की पूजा का अर्थ सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि स्वास्थ्य-चेतना भी बन जाता है।
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पर्यावरण-संरक्षण का प्रतीक वृक्ष हमारी धरती के फेफड़े के समान हैं। जब एक प्रमुख नेता इस वृक्ष की पूजा करता है और संरक्षण की बात करता है, तो यह सन्देश जाता है कि हमें प्रकृति के प्रति और भी जिम्मेदार होना चाहिए।
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सामाजिक-सांस्कृतिक एकता का अवसर आंवला नवमी में चाहे समुदाय, भेद-भाव या स्थिति कुछ भी हो, सभी लोग इस वृक्ष के नीचे बैठते हैं, पूजा करते हैं, भोजन साझा करते हैं। यह एकता एवं सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है।
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आर्थिक-धार्मिक लाभ की मान्यता जैसे कि पूर्वजों ने समझा है कि इस दिन किया गया दान, व्रत-पूजा, वृक्ष-परिक्रमा आदि अक्षय पुण्य का कारण बनते हैं। इसलिए यह पर्व हमें “करो और भूल जाओ” की भावना से “करो और जीवन में स्थायित्व लाओ” की ओर ले जाता है।
5. हमारे-आपके लिए क्या प्रेरणा है?
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अगर आपके घर या आसपास आंवला वृक्ष है, तो इस नवमी के अवसर पर उसकी पूजा, सफाई और जड़ में हल्का सा जल-दूध देना एक अच्छा कदम हो सकता है।
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वृक्ष की परिक्रमा के बाद उसके नीचे बैठकर परिवार-सदस्यों के साथ भोजन करना और जरूरतमंदों को सरल दान-भोज देना इस पर्व का संदेश और भी वास्तविक बनाता है।
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यदि आपके घर में आंवला नहीं है, तो आप किसी सार्वजनिक स्थान पर वृक्ष लगाने या वृक्ष-संरक्षण कार्यक्रम से जुड़ सकते हैं — यह इसलिए क्योंकि यह पर्व वृक्ष-सेवा में भी विश्वास करता है।
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पूजा-व्रत का उद्देश्य सिर्फ अनुष्ठान तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसके माध्यम से हमें प्राकृतिक संरक्षण, स्वास्थ्य-रक्षा और सामाजिक समरसता जैसे उद्देश्य भी याद रहने चाहिए।
इस रूप में, आंवला नवमी सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति-संस्कार, स्वास्थ्य-सजगता, सामाजिक-एकता और धार्मिक आस्था का संयोजन है। जब प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर आंवला वृक्ष की पूजा करके जनता के सुख-समृद्धि की कामना की, तो उन्होंने उस पारंपरिक आस्था को आधुनिक सामाजिक संदर्भ के साथ जोड़ने का प्रयास किया।
हमें चाहिए कि हम इस पर्व से सिर्फ प्रतिमान-पूजा नहीं करें, बल्कि उस संदेश को अपनाएँ जो यह पर्व कहता है
“वृक्ष हमारा जीवन-सहयोगी है, उसकी पूजा-अर्चना करके तथा उसे संरक्षण देकर हम न केवल अपनी संस्कृति का मान बढ़ाते हैं, बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ियों की खुशहाली सुनिश्चित करते हैं।”
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