Site icon City Times Raigarh

आंवला नवमी पूजा 2025 सीएम विष्णु देव साय ने पत्नी संग की आंवला वृक्ष की पूजा, प्रदेशवासियों के सुख-समृद्धि की कामना की

आंवला नवमी  आध्यात्मिक आस्था का पर्व और विष्णु देव साय द्वारा किया गया आयोजन

आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्व आंवला नवमी, जिसे कभी–कभी “अक्षय नवमी” या “धात्री नवमी” के नाम से भी जाना जाता है, प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से आंवला वृक्ष (एवॉला, अमला) की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है, क्योंकि पारंपरिक मान्यताओं में इस वृक्ष को दिव्य-औषधीय गुणों से युक्त माना गया है।

इस वर्ष, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने अपनी पत्नी कौशल्या साय के साथ मुख्यमंत्री निवास में इस पर्व के अवसर पर आंवला वृक्ष की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की और प्रदेशवासियों के सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य एवं खुशहाली की कामना की।

आइए इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि आंवला नवमी का क्या धार्मिक एवं सामाजिक महत्व है, इस दिन की पूजा-विधि क्या है, मुख्यमंत्री के इस आयोजन की प्रमुख बातें क्या रहीं, और इस पर्व से हमें क्या संदेश मिलता है।


1. आंवला नवमी – पर्व का महत्व

धार्मिक-आध्यात्मिक दृष्टि से

सामाजिक-प्राकृतिक दृष्टि से


2. पूजा-विधि और प्रचलित रीति-रिवाज

इस पर्व को विधिपूर्वक मनाने के लिए निम्नलिखित रीति-रिवाज विशेष माने गए हैं

इन विधियों का संस्कार यह दर्शाता है कि आंवला नवमी सिर्फ पूजा-व्रत तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें प्रकृति-सेवा, दान-पुण्य, सामाजिक सामंजस्य जैसे तत्व भी शामिल हैं।


3. मुख्यमंत्री विष्णु देव साय द्वारा किया गया आयोजन

छत्तीसगढ़ में इस वर्ष आंवला नवमी के अवसर पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने निम्नलिखित तरीके से आयोजन किया

इस प्रकार, मुख्यमंत्री का यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं रहा, बल्कि एक सामाजिक-पर्यावरणीय संदेश के रूप में उभरा।। Navbharat Times


4. क्यों महत्वपूर्ण है यह संदेश?


5. हमारे-आपके लिए क्या प्रेरणा है?

इस रूप में, आंवला नवमी सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति-संस्कार, स्वास्थ्य-सजगता, सामाजिक-एकता और धार्मिक आस्था का संयोजन है। जब प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर आंवला वृक्ष की पूजा करके जनता के सुख-समृद्धि की कामना की, तो उन्होंने उस पारंपरिक आस्था को आधुनिक सामाजिक संदर्भ के साथ जोड़ने का प्रयास किया।

हमें चाहिए कि हम इस पर्व से सिर्फ प्रतिमान-पूजा नहीं करें, बल्कि उस संदेश को अपनाएँ जो यह पर्व कहता है
“वृक्ष हमारा जीवन-सहयोगी है, उसकी पूजा-अर्चना करके तथा उसे संरक्षण देकर हम न केवल अपनी संस्कृति का मान बढ़ाते हैं, बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ियों की खुशहाली सुनिश्चित करते हैं।”

Next –

Exit mobile version