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बस्तर ओलिंपिक 2025 नक्सली भी खेलेंगे, बस्तर में शांति का नया उत्सव

बस्तर ओलिंपिक 2025  नक्सल प्रभावित इलाकों में खेल के ज़रिए नई सुबह की शुरुआत

छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र, जो कभी नक्सल हिंसा के कारण भय और असुरक्षा का प्रतीक माना जाता था, अब धीरे-धीरे बदल रहा है। बंदूक की आवाज़ की जगह अब यहाँ ढोल, नगाड़े और खेलों के जयघोष सुनाई दे रहे हैं।
इसी परिवर्तन का सबसे सुंदर उदाहरण है – “बस्तर ओलिंपिक 2025”, जहाँ न केवल राज्यभर के खिलाड़ी बल्कि आत्मसमर्पित नक्सली भी खेल भावना के साथ मैदान में उतरेंगे।

यह आयोजन केवल एक खेल महोत्सव नहीं, बल्कि सामाजिक समावेशन, शांति और पुनर्वास की मिसाल बन चुका है।

 बस्तर ओलिंपिक 2025 में नक्सल आत्मसमर्पित और अन्य खिलाड़ी भी भाग लेंगे — खेल को सामाजिक समावेशन का माध्यम माना जा रहा है। Amar Ujala+1


बस्तर ओलिंपिक क्या है?

“बस्तर ओलिंपिक” छत्तीसगढ़ सरकार और जिला प्रशासन की एक अनूठी पहल है, जिसकी शुरुआत 2017 में तत्कालीन बस्तर कलेक्टर अमित कटारिया द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य था —
 ग्रामीण युवाओं को नक्सलवाद से दूर कर मुख्यधारा में लाना।
परंपरागत खेलों और स्थानीय संस्कृति को पुनर्जीवित करना।
 खेलों के माध्यम से गांव-गांव में भाईचारा और आत्मविश्वास पैदा करना।

2025 का संस्करण अब तक का सबसे बड़ा और व्यापक आयोजन बताया जा रहा है, जिसमें राज्य के सभी सात जिलों (बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, कोंडागांव, नारायणपुर, कांकेर) के खिलाड़ी भाग ले रहे हैं।


2025 में क्या है ख़ास

  • इस बार बस्तर ओलिंपिक में आत्मसमर्पित नक्सली योद्धा भी खिलाड़ियों के रूप में हिस्सा ले रहे हैं।

  • लगभग 400 से अधिक खिलाड़ी, जिनमें पूर्व नक्सली, युवा ग्रामीण, महिला खिलाड़ी और स्कूली छात्र शामिल हैं।

  • आयोजन स्थल – जगदलपुर और आसपास के जिलों के प्रमुख स्टेडियमों में आयोजित होगा।

  • खेलों की कुल संख्या – 40 से अधिक पारंपरिक और आधुनिक खेल।

  • आयोजन की अवधि – 15 दिन, जिसमें उद्घाटन परेड, सांस्कृतिक कार्यक्रम, लोकगीत और जनजातीय नृत्य होंगे।


खेलों की सूची

बस्तर ओलिंपिक में मुख्यतः स्थानीय और पारंपरिक खेलों को प्राथमिकता दी जाती है।
इनमें शामिल हैं –

  • गेंड़ी दौड़

  • रस्साकशी

  • कबड्डी

  • खो-खो

  • बेंड़ी मारना

  • तीरंदाजी

  • फुटबॉल

  • दौड़ प्रतियोगिता

  • फुगड़ी

  • भौंरा खेल

  • पारंपरिक तीरकमान प्रतियोगिता

इस बार महिला खिलाड़ियों की भागीदारी भी उल्लेखनीय है, जो बस्तर समाज में लैंगिक समानता का प्रतीक बन रही है।


नक्सलियों का आत्मसमर्पण और खेल से जुड़ाव

छत्तीसगढ़ पुलिस के “लोन वर्राटू” अभियान के तहत सैकड़ों नक्सलियों ने पिछले कुछ वर्षों में आत्मसमर्पण किया।
इनमें से कई ने बस्तर ओलिंपिक में भाग लेकर यह दिखाया कि —

“बंदूक से नहीं, गेंद-बैट और तीर-धनुष से भी जीवन बदला जा सकता है।”

राज्य सरकार द्वारा ऐसे खिलाड़ियों को नई पहचान देने के लिए रोज़गार, प्रशिक्षण और सम्मान की सुविधाएँ दी जा रही हैं।
इससे न केवल उनकी सामाजिक स्वीकृति बढ़ी है बल्कि युवाओं को भी सकारात्मक दिशा मिली है।


सामाजिक समावेशन का माध्यम

बस्तर ओलिंपिक सिर्फ़ खेल नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और मेल-मिलाप का पर्व बन चुका है।

  • यह आयोजन जनजातीय परंपराओं, संस्कृति और लोककला को भी मंच प्रदान करता है।

  • खेल मैदानों में अब पूर्व नक्सली, पुलिसकर्मी, ग्रामीण और छात्र एक साथ खेलते दिखते हैं — जो पहले एक-दूसरे के “विपरीत पक्ष” थे।

  • यह दृश्य अपने आप में नई सोच और शांति की पहचान है।


सरकार और प्रशासन की भूमिका

बस्तर ओलिंपिक को सफल बनाने के लिए राज्य सरकार, खेल विभाग, स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधि सभी मिलकर प्रयास कर रहे हैं।

मुख्य पहलें

  • ग्राम स्तर से लेकर ब्लॉक और जिला स्तर तक प्रतियोगिताएँ आयोजित करना।

  • आत्मसमर्पित युवाओं को प्रशिक्षण, स्पोर्ट्स किट और ट्रैकसूट उपलब्ध कराना।

  • महिला खिलाड़ियों के लिए विशेष सुरक्षा और आवास व्यवस्था।

  • विजेताओं को राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में आगे भेजने की योजना।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (या वर्तमान सरकार) ने भी घोषणा की है कि ऐसे आयोजनों से न केवल खेल भावना बल्कि सामाजिक स्थिरता भी मज़बूत होती है।


सांस्कृतिक और लोककला का संगम

बस्तर ओलिंपिक केवल प्रतियोगिता नहीं, बल्कि संस्कृति महोत्सव भी है।
उद्घाटन समारोह में “गौर नृत्य”, “मादिया नृत्य”, “ढोल-नगाड़ा”, “लौंडा नृत्य” जैसे कार्यक्रम होते हैं।
रात के समय लोकगीत, झांकी और हस्तशिल्प प्रदर्शनियाँ आयोजित होती हैं — जिससे स्थानीय कारीगरों को भी आर्थिक लाभ होता है।


महिला खिलाड़ियों की भागीदारी

इस बार महिला खिलाड़ियों की संख्या पहले से दोगुनी है।
गांव की बेटियाँ अब कबड्डी, खो-खो और दौड़ में अपना परचम लहरा रही हैं।
महिला समूहों को भी आयोजन प्रबंधन में शामिल किया गया है — भोजन व्यवस्था, मंच संचालन और सुरक्षा में उनकी भूमिका अहम है।


ग्रामीण विकास से जुड़ाव

खेलों के साथ-साथ इस आयोजन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बल दिया है।

  • खेल मैदानों की मरम्मत और निर्माण से रोज़गार मिला।

  • आयोजन के दौरान होटल, परिवहन, कपड़ा और हस्तशिल्प उद्योग को आय हुई।

  • स्थानीय व्यापारियों को नया बाजार मिला।


शांति और आत्मविश्वास की नई कहानी

आज बस्तर के जिन क्षेत्रों में कभी सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ होती थी, वहीं अब बच्चे और युवा खेलते, हँसते और सपने देखते दिखते हैं।
बस्तर ओलिंपिक का यह स्वरूप बताता है कि —

“बस्तर बदल रहा है, और यह बदलाव बंदूक से नहीं, गेंद-बैट और खेल भावना से आ रहा है।”


बस्तर ओलिंपिक 2025 के संभावित लाभ

  1. युवाओं को नशा-मुक्त और सकारात्मक दिशा मिल रही है।

  2. आत्मसमर्पित नक्सलियों का सामाजिक पुनर्वास तेज़ हुआ है।

  3. ग्रामीण क्षेत्रों में खेल संस्कृति का विस्तार हुआ है।

  4. पर्यटन और स्थानीय व्यवसाय को बढ़ावा मिला है।

  5. जनजातीय समाज का आत्मविश्वास और गौरव पुनः स्थापित हुआ है।

बस्तर ओलिंपिक 2025 केवल एक खेल आयोजन नहीं, बल्कि एक क्रांति का प्रतीक है —
जहाँ संघर्ष से शांति की ओर, हिंसा से विकास की ओर, और भय से उम्मीद की ओर यात्रा हो रही है।

इस आयोजन ने यह साबित कर दिया कि अगर सरकार, समाज और युवा मिलकर एक दिशा में चलें, तो कोई भी क्षेत्र — चाहे वह कितना ही नक्सल-प्रभावित क्यों न हो — खेल, शिक्षा और संस्कृति के दम पर पुनर्जीवित हो सकता है।

बस्तर अब केवल जंगलों और संघर्ष का प्रतीक नहीं, बल्कि “शांति, खेल और संस्कृति की धरती” बन चुका है।
और बस्तर ओलिंपिक इसका सबसे सुंदर परिचायक है।

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