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दंतेवाड़ा में दर्दनाक घटना “सुनील” ने हॉस्टल में फांसी क्यों लगाई?

 छठी कक्षा के छात्र सुनील ने हॉस्टल में फांसी लगाई दर्दनाक खबर 

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले से आई एक दर्दनाक खबर ने पूरे क्षेत्र को झकझोर दिया है।
यहां कक्षा छठी के छात्र सुनील पोड़ियामी ने अपने हॉस्टल के कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। यह घटना 30 अक्टूबर 2025 की सुबह सामने आई, जब अन्य छात्रों ने सुनील को कमरे में फांसी के फंदे पर लटका देखा।

तुरंत सूचना स्कूल प्रशासन और पुलिस को दी गई। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शव को नीचे उतारा और जांच शुरू कर दी।

यह हादसा न केवल परिवार बल्कि पूरे शिक्षा-तंत्र पर सवाल उठाता है — आखिर 11 साल का बच्चा इतना कठोर कदम क्यों उठाएगा?


 सुबह का भयावह दृश्य

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, घटना सुबह करीब 7:30 बजे की है। हॉस्टल में रह रहे कुछ छात्रों ने जब कमरे का दरवाजा खुला देखा तो सुनील फांसी के फंदे पर लटका हुआ मिला।

घबराए बच्चों ने तुरंत वार्डन और स्टाफ को बुलाया। हॉस्टल स्टाफ ने तत्काल पुलिस को सूचना दी।
पुलिस ने मौके पर पहुंचकर पंचनामा किया और शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया।

अब फॉरेंसिक जांच और बयान रिकॉर्डिंग की प्रक्रिया जारी है।


 पुलिस और प्रशासन की प्रतिक्रिया

दंतेवाड़ा पुलिस ने प्रारंभिक जांच में आत्महत्या की पुष्टि की है, लेकिन कारण अभी स्पष्ट नहीं है
एसडीओपी और शिक्षा विभाग के अधिकारी हॉस्टल पहुंचे और छात्रों व स्टाफ से पूछताछ की।

पुलिस ने यह भी बताया कि —

“मामले की हर कोण से जांच की जा रही है। किसी तरह का उत्पीड़न या दबाव सामने आता है तो कार्रवाई की जाएगी।”


 आखिर सुनील ने आत्महत्या क्यों की?

किसी मासूम के ऐसे कदम के पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं। चलिए विस्तार से समझते हैं—

 मानसिक तनाव और अकेलापन

गांवों से दूर पढ़ने आने वाले छोटे छात्र कई बार घर की याद, भाषाई कठिनाई और भावनात्मक सपोर्ट की कमी झेलते हैं।
यदि हॉस्टल में कोई उन्हें सही से समझने वाला न हो, तो यह अकेलापन गहरा असर डाल सकता है।

 शैक्षणिक दबाव

आज के दौर में कम उम्र में ही परीक्षा और प्रदर्शन का बोझ बढ़ता जा रहा है।
कई बार छात्र अपने अंक या टीचर की डांट से डर जाते हैं और यह डर धीरे-धीरे मानसिक तनाव में बदल जाता है।

 हॉस्टल में रैगिंग या अनुशासन का भय

हाल के वर्षों में कई हॉस्टलों में रैगिंग या शारीरिक दंड की शिकायतें आई हैं।
यदि किसी बच्चे को बार-बार डांटा गया हो या उसके साथ कोई अनुचित व्यवहार हुआ हो, तो यह गहरी चोट छोड़ सकता है।

 पारिवारिक या व्यक्तिगत कारण

बच्चे कभी-कभी पारिवारिक समस्याओं, माता-पिता के झगड़ों या आर्थिक तंगी से भी प्रभावित होते हैं।
वो इन बातों को व्यक्त नहीं कर पाते और धीरे-धीरे अंदर से टूट जाते हैं।

 मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी

भारत में अब भी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से नहीं लिया जाता।
काउंसलर या मनोवैज्ञानिक सहयोग की कमी ऐसी घटनाओं का बड़ा कारण बन रही है।


 शिक्षा व्यवस्था पर सवाल

यह घटना सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरी शिक्षा प्रणाली की विफलता का संकेत है।

इन सवालों के जवाब ना में मिलते हैं तो समझना होगा कि व्यवस्था में कहीं न कहीं गंभीर खामी है।


 प्रशासनिक लापरवाही?

स्थानीय लोगों का कहना है कि हॉस्टल में बच्चों की निगरानी के लिए पर्याप्त स्टाफ नहीं था।
कई बार वार्डन या शिक्षकों की अनुपस्थिति में बच्चे देर रात तक बिना पर्यवेक्षण के रहते हैं।

कई अभिभावकों ने यह भी आरोप लगाया कि —

“हॉस्टल में पहले भी अनुशासन और देखरेख की शिकायतें दी गईं थीं, लेकिन अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया।”

अगर यह बात सच है, तो यह मामला सिर्फ आत्महत्या का नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही का भी है।


 जांच में क्या-क्या होना चाहिए

  1. सुनील के मोबाइल, नोट्स, और दोस्तों से बातचीत की जांच।

  2. हॉस्टल के CCTV फुटेज की समीक्षा।

  3. साथी छात्रों और वार्डन के बयान।

  4. मनोवैज्ञानिक टीम द्वारा अन्य छात्रों से बातचीत।

  5. स्कूल प्रबंधन पर निगरानी रिपोर्ट तैयार करना।


 परिवार का दर्द

सुनील का परिवार, जो एक साधारण ग्रामीण पृष्ठभूमि से आता है, इस हादसे के बाद सदमे में है।
उनका कहना है कि सुनील पढ़ाई में अच्छा था और हमेशा खुश रहता था, लेकिन पिछले कुछ दिनों से वह थोड़ा चुप था।

परिवार अब प्रशासन से निष्पक्ष जांच की मांग कर रहा है ताकि सच सामने आ सके।


 मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता जरूरी

आज सबसे बड़ी जरूरत है कि स्कूलों और हॉस्टलों में मेंटल हेल्थ अवेयरनेस प्रोग्राम चलाए जाएं।


 मदद की ज़रूरत हो तो कहाँ संपर्क करें?

अगर आप या आपका कोई परिचित मानसिक परेशानी या आत्महत्या के विचार से जूझ रहा है, तो तुरंत इन नंबरों पर मदद लें

मदद मौजूद है — बात करें, चुप न रहें।

सुनील की दुखद मौत सिर्फ एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है — यह सिस्टम, समुदाय और हमारी समझ पर भी सवाल खड़े करती है। बच्चों की नाजुक उम्र में हमें सुरक्षा के अतिरिक्त — संवेदना, सुनने की क्षमता, निरंतर निगरानी और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता देनी होगी। मीडिया और प्रशासन को पारदर्शी जांच के साथ-साथ परिवार के प्रति संवेदनशील व्यवहार बनाये रखना चाहिए। हमारे समाज का असफल होना यह नहीं कि गलती हुई — असफलता तब है जब हम उससे नहीं सीखते और बदलाव नहीं करते। Amar Ujala+1

सुनील की मौत हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि
हम अपने बच्चों की भावनात्मक सुरक्षा के लिए कितने सतर्क हैं?

केवल किताबें और परीक्षा पास कर लेना शिक्षा नहीं है —
बच्चों को संवेदना, समझ और सुनने का माहौल देना भी उतना ही जरूरी है।

इस घटना से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि
प्रत्येक हॉस्टल, स्कूल और परिवार में मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाए,
ताकि भविष्य में कोई और “सुनील” ऐसी दर्दनाक राह न चुने।

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