2025 की बड़ी खबर ₹2,223 करोड़ की गोंडिया–डोंगरगढ़ रेल लाइन परियोजना को मिली स्वीकृति

छत्तीसगढ़ के विकास की दिशा में केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है। 17 अक्टूबर 2025 को गोंडिया–डोंगरगढ़ नई रेल लाइन परियोजना को आधिकारिक स्वीकृति दे दी गई है। यह परियोजना लगभग ₹2,223 करोड़ की लागत से तैयार की जाएगी और इससे न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र की कनेक्टिविटी को भी नया आयाम मिलेगा।
यह रेल लाइन क्षेत्र के औद्योगिक विकास, रोजगार सृजन और पर्यटन को गति देने वाली मानी जा रही है।
रेल लाइन परियोजना की स्वीकृति — गोंडिया-डोंगरगढ़ दूरी के लिए 2,223 करोड़ की नई रेल लाइन की मंजूरी। The Times of India
परियोजना का परिचय

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परियोजना का नाम: गोंडिया–डोंगरगढ़ नई रेल लाइन परियोजना
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कुल लंबाई: लगभग 106 किलोमीटर
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लागत: ₹2,223 करोड़
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राज्य: छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र
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प्रमुख स्टेशन: गोंडिया, अमgaon, दल्लीराजहरा, डोंगरगढ़
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अनुमोदन तिथि: अक्टूबर 2025
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प्रमुख एजेंसी: दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे (SECR)
यह परियोजना दो राज्यों के बीच बेहतर रेल संपर्क स्थापित करेगी और कोयला, लोहा, और इस्पात उद्योगों के लिए लॉजिस्टिक कॉरिडोर के रूप में काम करेगी।
परियोजना की आवश्यकता क्यों?

गोंडिया और डोंगरगढ़ दोनों ही क्षेत्र लंबे समय से एक सीधी रेल लाइन की मांग कर रहे थे। वर्तमान में, यात्रियों और माल ढुलाई को नागपुर या रायपुर मार्ग से होकर लंबा चक्कर लगाना पड़ता है।
प्रमुख कारण
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समय और ईंधन की बचत
नई रेल लाइन बनने से यात्रा समय में 2 घंटे तक की बचत होगी। -
औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ावा
डोंगरगढ़ और भिलाई के आसपास के स्टील उद्योगों को सीधा परिवहन मार्ग मिलेगा। -
पर्यटन और तीर्थस्थलों तक आसान पहुंच
डोंगरगढ़ का प्रसिद्ध माँ बम्लेश्वरी मंदिर हर साल लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है — रेल लाइन से यात्रा और सुगम होगी। -
ग्रामीण कनेक्टिविटी
मध्यवर्ती गाँवों को भी रेलवे स्टेशनों से जोड़ा जाएगा, जिससे स्थानीय व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
परियोजना का निर्माण ढांचा
1. फेज़ 1: गोंडिया से अमgaon (40 किमी)
पहले चरण में महाराष्ट्र के गोंडिया से अमgaon तक की रेल लाइन बिछाई जाएगी। यहाँ भूमि अधिग्रहण का कार्य लगभग पूरा हो चुका है।
2. फेज़ 2: अमgaon से दल्लीराजहरा (36 किमी)
इस चरण में अधिकांश ट्रैक घने जंगल क्षेत्रों से गुजरेगा, इसलिए पर्यावरणीय स्वीकृतियाँ ली जा रही हैं।
3. फेज़ 3: दल्लीराजहरा से डोंगरगढ़ (30 किमी)
यह हिस्सा छत्तीसगढ़ का औद्योगिक बेल्ट है, यहाँ माल ढुलाई का बड़ा हिस्सा केंद्रित रहेगा।
पर्यावरण और सामाजिक प्रभाव
परियोजना के तहत लगभग 550 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा, जिसमें से 30% हिस्सा वन भूमि है।
सरकार ने इसके लिए कई संतुलनकारी कदम उठाए हैं:
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प्रभावित क्षेत्रों में 5,000 पेड़ लगाने की योजना।
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स्थानीय विस्थापित परिवारों को पुनर्वास और मुआवजा पैकेज।
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ग्रीन रेलवे कॉरिडोर की अवधारणा – जहाँ सौर ऊर्जा आधारित लाइटिंग और वर्षा जल संचयन की सुविधा होगी।
आर्थिक और सामाजिक लाभ
यह परियोजना छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था में बड़ा परिवर्तन लाने की क्षमता रखती है।
1. रोजगार सृजन
निर्माण के दौरान लगभग 15,000 अस्थायी और 3,000 स्थायी रोजगार सृजित होंगे।
2. उद्योगों को लाभ
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भिलाई स्टील प्लांट, रायगढ़ के धातु उद्योग और कोरबा की कोयला खदानों को सस्ता ट्रांसपोर्ट मिलेगा।
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लॉजिस्टिक लागत में 20–25% की कमी आने की संभावना है।
3. कृषि क्षेत्र में सुधार
किसानों को अपने उत्पादों को दूरस्थ मंडियों तक पहुंचाने में आसानी होगी, जिससे कृषि आय में वृद्धि होगी।
4. पर्यटन और संस्कृति का विकास
डोंगरगढ़ और गोंडिया के मंदिर, झरने, और पहाड़ी स्थल अब पर्यटकों के लिए और अधिक सुलभ होंगे।
परियोजना में इस्तेमाल होने वाली आधुनिक तकनीक
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ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सिस्टम: ट्रेन संचालन में दक्षता बढ़ाने के लिए अत्याधुनिक नियंत्रण प्रणाली।
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इलेक्ट्रिफिकेशन: पूरी रेल लाइन 25KV एसी से विद्युतीकृत होगी, जिससे डीज़ल पर निर्भरता कम होगी।
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ग्रीन स्टेशन मॉडल: सौर ऊर्जा और बायो-वेस्ट रीसाइक्लिंग के साथ इको-फ्रेंडली स्टेशन बनाए जाएंगे।
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ड्रोन सर्वेक्षण: भूमि और ट्रैक की निगरानी ड्रोन से की जाएगी ताकि निर्माण की गुणवत्ता बनी रहे।
राजनीतिक और प्रशासनिक सहयोग
इस परियोजना को केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर समर्थन मिला है।
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रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस परियोजना को “पूर्वी भारत का विकास पथ” कहा।
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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि “यह रेल लाइन प्रदेश के उद्योगों के लिए नई जीवनरेखा बनेगी।”
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परियोजना के वित्तीय हिस्से में केंद्र सरकार 60% और राज्य सरकार 40% लागत का वहन करेगी।
परियोजना की वर्तमान स्थिति (अक्टूबर 2025 तक)
| चरण | कार्य | प्रगति |
|---|---|---|
| फेज़ 1 (गोंडिया–अमgaon) | भूमि अधिग्रहण और सर्वेक्षण | 90% पूरा |
| फेज़ 2 (अमgaon–दल्लीराजहरा) | पर्यावरण स्वीकृति और डिजाइन कार्य | 70% |
| फेज़ 3 (दल्लीराजहरा–डोंगरगढ़) | भू-तकनीकी सर्वे और बिडिंग प्रक्रिया | 60% |
अनुमानित पूर्णता तिथि: 2028
दीर्घकालिक प्रभाव
1. औद्योगिक गलियारा बनेगा
यह रेल लाइन भिलाई–रायगढ़–गोंडिया तक फैले औद्योगिक क्षेत्र को एक कॉरिडोर में जोड़ेगी।
2. विदेशी निवेश के अवसर
बेहतर परिवहन व्यवस्था से विदेशी कंपनियाँ भी छत्तीसगढ़ में लॉजिस्टिक हब स्थापित कर सकेंगी।
3. पर्यावरणीय संतुलन
इलेक्ट्रिफिकेशन और हरित स्टेशन मॉडल से कार्बन उत्सर्जन में 40% तक कमी होगी।
चुनौतियाँ और समाधान
प्रमुख चुनौतियाँ
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वन क्षेत्र में निर्माण से पर्यावरणीय अनुमति में देरी।
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कुछ स्थानों पर भूमि अधिग्रहण विवाद।
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लागत वृद्धि का खतरा।
समाधान
सरकार ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए “एकीकृत परियोजना निगरानी समिति” बनाई है, जिसमें रेलवे, वन विभाग और स्थानीय प्रशासन शामिल हैं।
विशेषज्ञों की राय
रेलवे विशेषज्ञों का मानना है कि यह परियोजना “पूर्व-मध्य भारत का आर्थिक इंजन” बन सकती है।
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डॉ. एस. पी. मिश्रा (रेलवे इंजीनियर):
“गोंडिया–डोंगरगढ़ रेल लाइन को कोरबा से जोड़ने का भविष्य विस्तार, छत्तीसगढ़ को पूर्वी मालवाहक गलियारे से जोड़ देगा।” -
स्थानीय व्यापारी संघ:
“इस रेल मार्ग से व्यापारिक गतिविधियों में तेज़ी आएगी और स्थानीय युवाओं के लिए व्यापारिक अवसर बढ़ेंगे।”
डोंगरगढ़ और गोंडिया क्षेत्र को मिलने वाले लाभ
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डोंगरगढ़
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माँ बम्लेश्वरी मंदिर तक रेल पर्यटन को बढ़ावा।
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रेलवे स्टेशन का पुनर्निर्माण और स्मार्ट टिकटिंग सुविधा।
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गोंडिया
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महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के औद्योगिक उत्पादों के परिवहन में सुविधा।
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विदर्भ और छत्तीसगढ़ के बीच व्यापारिक साझेदारी का नया अध्याय।
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भविष्य की विस्तार योजनाएँ
सरकार की योजना है कि इस नई रेल लाइन को भविष्य में
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रायगढ़–जांजगीर–कोरबा मार्ग से जोड़ा जाए।
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मालगाड़ी टर्मिनल और कंटेनर डिपो (ICD) डोंगरगढ़ के पास स्थापित किए जाएं।
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यात्रियों के लिए सेमी-हाई-स्पीड ट्रेन सेवा शुरू की जाए।
“गोंडिया–डोंगरगढ़ रेल लाइन परियोजना की स्वीकृति” केवल एक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि यह छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के संयुक्त विकास की आधारशिला है।
इससे न केवल यात्रा और व्यापार में आसानी होगी बल्कि हजारों युवाओं को रोजगार, ग्रामीण क्षेत्रों को नई पहचान और प्रदेश को आर्थिक गति मिलेगी।
आने वाले वर्षों में यह परियोजना पूर्व-मध्य भारत की आर्थिक धुरी (Economic Spine) के रूप में जानी जाएगी, जो प्रधानमंत्री के “विकसित भारत 2047” के विज़न को साकार करने में एक अहम कदम साबित होगी।
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