“मंड-रायगढ़ कोयला क्षेत्र की 5 प्रमुख नीलामियाँ: छत्तीसगढ़ में खनन गतिविधियों का नया दौर
राज्य के मंड-रायगढ़ कोयला क्षेत्र में कोयला ब्लॉकों की नीलामी रायगढ़ में खनन गतिविधियों की नई लहर

छत्तीसगढ़ के औद्योगिक परिदृश्य में एक बार फिर हलचल बढ़ गई है। केंद्र सरकार के कोल मंत्रालय द्वारा आयोजित 12वें वाणिज्यिक कोयला खदान नीलामी चरण (12th Commercial Coal Auction) के तहत मंड-रायगढ़ कोयला क्षेत्र के कई ब्लॉक निजी कंपनियों को आवंटित किए गए हैं। इस नीलामी से राज्य की खनन-गतिविधियों को नया आयाम मिला है, पर इसके साथ पर्यावरण और स्थानीय समुदायों की चिंताएँ भी तेज हुई हैं।
नीलामी की पृष्ठभूमि
भारत सरकार ने वर्ष 2020 से निजी क्षेत्र को वाणिज्यिक कोयला खनन की अनुमति दी थी, ताकि देश की ऊर्जा-आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ आत्मनिर्भर भारत मिशन को भी बढ़ावा मिल सके।
2025 की इस नवीनतम नीलामी में छत्तीसगढ़ के मंड-रायगढ़ कोलफील्ड्स को विशेष महत्व मिला, क्योंकि यहाँ उच्च-गुणवत्ता वाले थर्मल कोल (बिजली उत्पादन हेतु) का विशाल भंडार मौजूद है।
नीलामी में देश-भर से कई कंपनियों ने भाग लिया — जिनमें Adani Enterprises, Hindalco, Vedanta Resources, Jindal Power, और NLC India जैसी प्रमुख कंपनियाँ शामिल थीं।
इस चरण में लगभग 12 ब्लॉकों की पेशकश की गई, जिनमें से 3 ब्लॉक रायगढ़ क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
भारत में कोयला नीलामी की शुरुआत
भारत में लंबे समय तक कोयला खदानों पर केवल सरकारी नियंत्रण रहा।
1973 में “कोयला राष्ट्रीयकरण अधिनियम (Coal Nationalisation Act)” लागू हुआ था, जिसके बाद खनन अधिकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (PSUs) — जैसे Coal India Limited (CIL) और SCCL — के पास रहे।
लेकिन वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने निजी कंपनियों को पूर्व में आवंटित 214 कोयला ब्लॉक रद्द कर दिए।
इससे सरकार को नई पारदर्शी नीलामी नीति बनानी पड़ी।
प्रमुख नीलाम कोयला ब्लॉक (रायगढ़ क्षेत्र)
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मंड कोल ब्लॉक
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अनुमानित कोयला भंडार: 320 मिलियन टन
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उपयोग: थर्मल पावर एवं सीमेंट उद्योग
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नीलामी विजेता कंपनी: Adani Power Limited (संभावित)
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अपेक्षित उत्पादन: 5–6 मिलियन टन/वर्ष
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धरमजयगढ़ कोल ब्लॉक
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भंडार: लगभग 210 मिलियन टन
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स्थान: धरमजयगढ़ तहसील, रायगढ़
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नीलामी विजेता: Hindalco Industries
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उपयोग: एल्युमिनियम उत्पादन हेतु ऊर्जा आपूर्ति
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गारे-पेलमा-3 ब्लॉक (विस्तारित क्षेत्र)
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पूर्व में सरकारी PSU के पास था, अब वाणिज्यिक बोली के लिए पुनः खुला
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अनुमानित भंडार: 450 मिलियन टन
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अपेक्षित उत्पादन: 8–10 मिलियन टन प्रतिवर्ष
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आर्थिक दृष्टि से लाभ
इस नीलामी से राज्य को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक लाभ मिलने की उम्मीद है।
छत्तीसगढ़ सरकार के ऊर्जा विभाग के अनुसार, नीलामी से:
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रॉयल्टी एवं प्रीमियम राजस्व: लगभग ₹1,500–2,000 करोड़ वार्षिक की संभावना
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स्थानीय रोजगार सृजन: 8,000 से अधिक सीधी व 15,000 अप्रत्यक्ष नौकरियाँ
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इंफ्रास्ट्रक्चर विकास: नए सड़क, रेल-लिंक और टाउनशिप निर्माण
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उद्योगिक निवेश वृद्धि: स्टील, पावर, सीमेंट व परिवहन क्षेत्रों में नए निवेशक आकर्षित
रायगढ़ जिला पहले से ही औद्योगिक दृष्टि से सक्रिय रहा है। Jindal Steel & Power Plant, NTPC Lara, और कई मिड-साइज इंडस्ट्रीज़ पहले से कार्यरत हैं।
नई नीलामी से इन परियोजनाओं को सस्ती और नजदीकी ईंधन आपूर्ति मिल सकेगी।
खनन-गतिविधियों में वृद्धि — स्थानीय प्रभाव
खनन क्षेत्र के विस्तार से रायगढ़, धरमजयगढ़, तमनार, और घरघोड़ा तहसीलों में नई गतिविधियाँ शुरू होने जा रही हैं।
कई जगह भूमि अधिग्रहण और जंगल-अधिकार से जुड़े मुद्दे दोबारा चर्चा में हैं।
स्थानीय समुदाय पर प्रभाव
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ग्रामीणों की भूमि व आजीविका को खतरा — कृषि भूमि का औद्योगिक उपयोग बढ़ रहा है।
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जंगलों पर निर्भर आदिवासी समुदायों को मुआवजा और पुनर्वास की चिंता है।
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पर्यावरणीय स्वीकृति प्रक्रिया के लंबित रहने से असंतोष की संभावना।
प्रशासन की तैयारी
जिला प्रशासन ने बताया कि:
“सभी परियोजनाओं में पर्यावरणीय मंजूरी, सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA), और ग्राम-सभा की सहमति अनिवार्य रूप से ली जाएगी।”
हालांकि, स्थानीय सामाजिक संगठनों का कहना है कि कई बार ये प्रक्रियाएँ औपचारिक रूप में पूरी कर दी जाती हैं, वास्तविक सहभागिता नहीं होती।
पर्यावरणीय पहलू
रायगढ़ जिला पहले से ही खनन और औद्योगिक प्रदूषण से जूझ रहा है।
वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) कई बार “खराब” (Poor) श्रेणी में पहुँच चुका है।
नई खदानों के खुलने से:
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धूल, शोर और जल-प्रदूषण की आशंका बढ़ेगी।
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कोयला-ढुलाई के लिए ट्रकों की संख्या में बढ़ोतरी होगी, जिससे सड़कें व पर्यावरण दोनों प्रभावित होंगे।
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जंगल-कटाई और जैव-विविधता पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि खनन को सतत विकास के सिद्धांतों के साथ आगे बढ़ाया जाए, तो नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए — माइन क्लोजर प्लान, वॉटर टेबल रीचार्ज सिस्टम, और हरित पट्टियाँ अनिवार्य रूप से लागू करनी चाहिए।

सरकार और कंपनियों की जिम्मेदारी
छत्तीसगढ़ सरकार ने स्पष्ट किया है कि राज्य के किसी भी खनन-प्रोजेक्ट में CSR (Corporate Social Responsibility) के तहत स्थानीय विकास कार्य अनिवार्य होंगे।
कंपनियों को अपने बजट का कम से कम 2% सामाजिक कल्याण में खर्च करना होगा।
संभावित CSR कार्य:
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स्कूल और स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण
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पीने योग्य पानी की व्यवस्था
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वन-संरक्षण और वृक्षारोपण अभियान
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स्थानीय युवाओं को कौशल-प्रशिक्षण
ऊर्जा-नीति और राष्ट्रीय दृष्टिकोण
भारत की कुल बिजली-उत्पादन का लगभग 55% हिस्सा कोयले पर आधारित है।
जबकि भारत धीरे-धीरे नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ रहा है, फिर भी अगले 20 वर्षों तक कोयले की भूमिका महत्वपूर्ण बनी रहेगी।
केंद्र सरकार का उद्देश्य है कि:
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देश में कोयले का आयात घटाया जाए
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घरेलू उत्पादन बढ़े
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खनन क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और पारदर्शिता लाई जाए
रायगढ़ जैसे जिलों में नीलामी-प्रक्रिया इस राष्ट्रीय लक्ष्य की दिशा में बड़ा कदम मानी जा रही है।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रियाएँ
ग्राम-सभा प्रतिनिधि, धरमजयगढ़:
“हम विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन पहले हमारी भूमि और जीवन का स्थायी समाधान चाहिए।”
रायगढ़ उद्योग संघ के सदस्य:
“नई खदानों से उद्योग को ऊर्जा-सुरक्षा मिलेगी, जो रोजगार और राज्य-राजस्व दोनों के लिए शुभ संकेत है।”
पर्यावरण कार्यकर्ता:
“खनन के साथ-साथ हरियाली और जल स्रोतों का संरक्षण समान प्राथमिकता पर होना चाहिए।”
संतुलन की आवश्यकता
विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाना इस पूरी प्रक्रिया की सबसे बड़ी चुनौती है।
रायगढ़ के पिछले अनुभव बताते हैं कि तेज औद्योगिकरण से रोजगार तो बढ़ा, लेकिन प्रदूषण, जल-संकट और विस्थापन की समस्याएँ भी बढ़ीं।
अब आवश्यकता है एक साझा नीति दृष्टिकोण की —
जहाँ कंपनी, सरकार, और जनता तीनों की सहभागिता हो।
संतुलन की आवश्यकता — विकास और पर्यावरण के बीच सामंजस्य की कहानी
रायगढ़ जिला आज विकास और पर्यावरण — इन दो ध्रुवों के बीच खड़ा है।
एक ओर, कोयला खनन और औद्योगिक परियोजनाएँ रोजगार, राजस्व और ऊर्जा-सुरक्षा ला रही हैं;
दूसरी ओर, इन गतिविधियों से प्रकृति, खेती और स्थानीय जीवन पर गहरा असर पड़ रहा है।
ऐसे में “संतुलन की आवश्यकता” सिर्फ एक विचार नहीं, बल्कि भविष्य की स्थिरता का आधार है।
विकास की अनिवार्यता
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छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा खनिज आधारित उद्योगों पर निर्भर है।
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रायगढ़ जैसे जिलों में कोयला, लोहा और बिजली संयंत्र राज्य के GDP में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
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नए खनन प्रोजेक्ट से स्थानीय युवाओं को रोजगार, सड़क व रेल नेटवर्क, और स्थानीय बाजारों में निवेश बढ़ता है।
इसलिए आर्थिक विकास को रोकना व्यावहारिक नहीं है — लेकिन इसे नियंत्रित और संतुलित बनाना जरूरी है।
पर्यावरण की सुरक्षा
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कोयला खनन से जंगलों की कटाई, भू-जल स्तर में गिरावट, और वायु प्रदूषण जैसी समस्याएँ बढ़ती हैं।
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रायगढ़ के कई हिस्सों में पहले से ही AQI (Air Quality Index) “Poor” श्रेणी में है।
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प्रदूषण का सीधा असर स्थानीय स्वास्थ्य, खेती, और पेयजल स्रोतों पर पड़ता है।
इसलिए खनन के साथ-साथ री-प्लांटेशन, वाटर रीचार्ज, और ग्रीन टेक्नोलॉजी माइनिंग को लागू करना संतुलन का मुख्य आधार है।

स्थानीय समुदायों की भागीदारी
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रायगढ़ के आदिवासी और ग्रामीण समुदाय जंगल और भूमि पर ही निर्भर हैं।
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खनन से विस्थापन और जीविकोपार्जन संकट उत्पन्न होता है।
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संतुलन के लिए जरूरी है कि:
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ग्राम सभाओं की सहमति वास्तविक रूप से ली जाए, केवल कागजी नहीं।
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पुनर्वास नीति (R&R) पारदर्शी और मानवीय हो।
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स्थानीय युवाओं को खनन कंपनियों में प्राथमिक रोजगार अवसर दिए जाएँ।
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इससे विकास “लोगों के लिए” और “लोगों के साथ” दोनों बन सकेगा।
तकनीकी और नीतिगत सुधार
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सतत खनन (Sustainable Mining) के सिद्धांत को अपनाना आवश्यक है।
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नई तकनीकें जैसे:
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Dust Suppression Systems
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Eco-friendly Conveyor Transport
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Mine Closure Planning
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Real-time Pollution Monitoring
इनसे पर्यावरणीय असर कम किया जा सकता है।
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सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर नई खदान में ESG (Environmental, Social, Governance) मानकों का पालन हो।
पारदर्शिता और जवाबदेही
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संतुलन तभी संभव है जब नीति निर्माण से लेकर अमल तक पारदर्शिता बनी रहे।
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खनन कंपनियों के CSR फंड और पर्यावरणीय दायित्व की सार्वजनिक रिपोर्टिंग जरूरी हो।
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स्थानीय पंचायतों और मीडिया को निगरानी की भूमिका में सशक्त किया जाना चाहिए।
दीर्घकालिक दृष्टिकोण
संतुलन केवल “आज” का नहीं बल्कि “भविष्य” का भी प्रश्न है।
यदि आज हम संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करें, तो आने वाली पीढ़ियाँ भी उसी प्रकृति से लाभ उठा सकेंगी।
रायगढ़ जैसे खनिज-समृद्ध जिले को “सिर्फ खनन केंद्र” नहीं बल्कि हरित ऊर्जा और सतत उद्योगों का मॉडल जिला बनाने का लक्ष्य होना चाहिए।

भविष्य की संभावनाएँ
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यदि नीलामी से जुड़े प्रोजेक्ट पारदर्शी और पर्यावरण-अनुकूल ढंग से लागू होते हैं, तो रायगढ़ अगले दशक में “छत्तीसगढ़ का ऊर्जा-केंद्र” बन सकता है।
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राज्य की GDP वृद्धि दर में 0.8–1% की अतिरिक्त वृद्धि संभावित है।
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ग्रीन टेक्नोलॉजी आधारित खनन मॉडल अपनाने से राज्य को राष्ट्रीय स्तर पर उदाहरण बनाया जा सकता है।
मंड-रायगढ़ क्षेत्र में कोयला ब्लॉकों की नीलामी आर्थिक विकास की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
यह प्रदेश की ऊर्जा-सुरक्षा और औद्योगिक प्रगति को मजबूत करेगा, परंतु इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार और कंपनियाँ स्थानीय जनहित, पर्यावरण संरक्षण और पारदर्शिता को किस हद तक प्राथमिकता देती हैं।
रायगढ़ का भविष्य अब सिर्फ कोयले के नीचे नहीं, बल्कि जनसहभागिता, हरित विकास और जिम्मेदार औद्योगिक नीति के ऊपर भी टिका है।
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