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Kartik Purnima 2025 पवित्र नदी में स्नान, दान-पुण्य और दीपदान का महत्व

Kartik Purnima 2025  पवित्र नदी में स्नान से लेकर दान-पुण्य तक शुभ मुहूर्त

भारत में चन्द्र-कैलेंडर से जुड़े त्योहारों में से एक अत्यंत पवित्र माना जाने वाला पर्व है कार्तिक मास की पूर्णिमा, यानी Kartik Purnima। इस दिन न सिर्फ आध्यात्मिक अनुराग का वातावरण रहता है, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से भी यह एक महत्त्वपूर्ण दिवस है — जहाँ स्नान, दान-पुण्य, दीपदान, कीर्तन-भजन जैसी क्रियाएँ चलती हैं। वर्ष 2025 में यह पर्व विशेष रूप से 5 नवम्बर को मनाया जा रहा है।

नीचे इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे

  • इसकी तिथि-समय एवं शुभ मुहूर्त

  • इतिहास एवं पौराणिक-धार्मिक महत्व

  • प्रमुख आयोजन-परंपराएँ (विशेषकर पवित्र नदी में स्नान, दीपदान, दान-पुण्य)

  • कैसे मनाएँ इस दिन, पूजा-विधि, दान-काल आदि

  • आधुनिक समय में इसका सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

  • निष्कर्ष — हमारे लिए क्या सीख है


1. तिथि, शुभ समय और मुहूर्त

  • कार्तिक पूर्णिमा 2025 इस वर्ष बुधवार, 5 नवम्बर 2025 को मनाई जा रही है। The Times of

  • पंचांग के अनुसार पूर्णिमा-तिथि (पुर्णिमा तिथि) शुरू होती है 4 नवम्बर 2025 की रात्रि 10:36 PM से और समाप्त होती है 5 नवम्बर की शाम 6:48 PM तक।

  • स्नान (स्नान मुहूर्त) के लिए विशेष समय दिया गया है — वर्ष 2025 में सुबह करीब 4:52 AM से 5:44 AM तक यह स्नान-मुहूर्त शुभ माना गया है।

  • शाम-समय दीपदान (दीप प्रज्ज्वलन) व पूजा-विधि के लिए प्रातःकाल के बाद तथा प्रातद्रव्य-प्रदाय के पूर्व समय उपयुक्त है — जैसे 5:15 PM से 7:50 PM तक शाम-उत्सव का समय।

इन मुहूर्तों को ध्यान में रखकर यदि इस दिन स्नान-पूजा-दान किया जाए तो अत्यधिक पुण्य का लाभ माना जाता है।


2. पौराणिक और धार्मिक महत्व

  • कार्तिक मास को हिन्दू धार्मिक मान्यताओं में अत्यंत पवित्र माना जाता है — विशेषकर Vishnu तथा Shiva-विभाग में।

  • इस पूर्णिमा को अन्य नामों से भी जाना जाता है: Tripuri Purnima, Tripurari Purnima — कथा के अनुसार भगवान शिव ने असुर त्रिपुरासुर का संहार इस दिन किया था।

  • इसके अतिरिक्त, यह दिवस Dev Deepavali (देव-दीपावली) के रूप में भी मनाया जाता है — अर्थात् देवताओं द्वारा दीपदान एवं प्रकाश उत्सव का दिवस।

  • धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन स्नान, दीपदान, दान-पुण्य, व्रत आदि से अधिगत पुण्य बहुत अधिक होता है — “दीपदान करें तो अनेक यज्ञों जितना फल” जैसी मान्यताएँ हैं।

  • जैसा कि टाइम्स ऑफ इंडिया लिखता है: “यह दिन विष्णु को समर्पित है, साथ-ही-साथ यह पूरे कार्तिक मास के समापन का प्रतीक है”

इस प्रकार, सिर्फ एक दिन का पर्व नहीं — बल्कि यह समूचे मास की आध्यात्मिक यात्रा का समापन और पुनश्च शुरुआत है।


3. मुख्य परंपराएँ स्नान, दीप-दान, दान-पुण्य

3.1 पवित्र नदी में स्नान (कार्तिक स्नान)

  • इस दिन सुबह-सुबह पवित्र नदियों जैसे Ganga River के घाटों पर स्नान करने की परंपरा है — माना जाता है कि इससे पूर्व जन्मों के पापों का नाश होता है।

  • स्नान का मुहूर्त विशेष है — 4:52 AM से 5:44 AM तक का समय शुभ माना गया है।

  • यदि आत घाट पर नहीं जा सकते, तो घर पर गंगाजल लेकर स्नान अथवा जल चढ़ाने की परम्परा भी है।

  • स्नान के बाद भक्त कीर्तन-भजन, आरती या गुरुद्वारा-गृह पूजा में जाते हैं।

3.2 दीपदान (दीप प्रज्ज्वलन) व प्रकाश उत्सव

  • इस दिन शाम को दीपदान करना अत्यन्त शुभ माना जाता है — घर-घर, मंदिरों एवं नदी-घाटों पर कई-हजार दीपक जलाए जाते हैं।

  • उदाहरणस्वरूप, वाराणसी में लगनीस घाट और अन्य घाटों पर देव-दीपावली के रूप में विशाल दीप-प्रकाश व्यवस्था की जाती है।

  • दीपदान के समय को भी मुहूर्त दिया गया है — जैसे सूर्यास्त के बाद-बाद 5:15 PM से-उपरांत का समय।

3.3 दान-पुण्य एवं व्रत

  • इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है — खाद्य सामग्री, कपड़े, तेल-घी, दीपक, नदीनदी के जल आदि दान करना लाभकारी माना जाता है।

  • व्रत (उपवास) भी कई भक्त रखते हैं — इस तिथि में व्रत करके पूजा-अर्चना करना शुभ है।

  • सामाजिक दृष्टि से भी यह अवसर साझा-भोजन (लंगर-जैसे), सार्वजनिक दीपदान एवं नदी-घाटों की स्वच्छता व भक्त-समुदाय की सेवा का भी अवसर बनता है।


4. कैसे मनाएं-पूजा-विधि-संकेत

  1. भगवान विष्णु व भगवान शिव, चंद्रदेव की पूजा करें। पान-पुष्प-तिलक आदि से आरंभ करें।
  2. शाम को दीपक जलाएँ — घर के आंगन, नदी-घाट, मंदिरों में। मुहूर्त ध्यान में रखें।

  3. दान-पुण्य करें — जरूरतमंद को भोजन, कपड़े, दीपक-तेल दान करें।

  4. व्रत रखने वाले उदारहण को अपनाएं — उपवास के बाद कथा-कीर्तन आदि भी हो सकते हैं।

  5. यदि संभव हो सके, नदी-घाट पर जाएँ, नदी के जल में दीप-दाना करें, आर्ग्य-प्रदान करें।


5. आधुनिक समय में सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव

  • इस पर्व का महत्व अब सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि लोक-सांस्कृतिक रूप से भी बढ़ गया है — पर्यटन, तीर्थयात्रा, नदी-घाट सफाई अभियानों आदि के रूप में।

  • जैसेकि प्रशासन ने भयंकर भीड़ को देखते हुए घाटों, ट्रैफिक, पार्किंग व्यवस्थाओं का ध्यान रखा है।

  • समाज-सेवा, पर्यावरण-सुरक्षा जैसे पहल इस दिन अधिक दिखाई देती हैं — स्नान के बाद नदी-घाट स्वच्छता, दीपक जलाने के बाद जल-प्रदूषण को कम करने के प्रयास।

  • इसके अलावा, पर्यटन-उत्सव और मेलों (उदाहरण  Bali Jatra ओड़िशा में) इस दिन से जुड़े हुए हैं।

  • इस दिन हमें यह याद दिलाने का अवसर मिलता है कि स्नान से सिर्फ शारीरिक पवित्रता नहीं बल्कि मानसिक-आध्यात्मिक शुद्धि होती है।

  • दीपदान-दान-सेवा के माध्यम से हम अन्य-के कल्याण की भावना को बढ़ावा देते हैं — यह पुण्य-अर्जन मात्र नहीं, बल्कि समाज-बंधुत्व का प्रतीक है।

  • आधुनिक जीवन की भाग-दौड़ में इस प्रकार के पर्व हमें “रुककर सोचने”, “जगह-भक्ति”, “समय-दर्शन” करने का अवसर देते हैं।

  • इस वर्ष 2025 में जब हम कार्तिक पूर्णिमा मनाएँ — तो सिर्फ उत्सव न करें, बल्कि इसे सुधार-संभाषण, शुद्ध विचार और सामाजिक योगदान का अवसर बनाएं

  • 6. कैसे मनाएं-पूजा-विधि-संकेत

    1. सुबह जल्दी उठें, स्नान करें — ideally पवित्र नदी या जल-स्रोत में।

    2. घर-मंदिर को स्वच्छ करें, दीपक-माला सजाएँ।

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