भारत-यूके (india -uk) संबंधों में मजबूती: व्यापार, रक्षा और डिजिटल साझेदारी का नया अध्याय (2025)
भारत और यूनाइटेड किंगडम (यूके) के बीच संबंध सदियों पुराने हैं, लेकिन बीते कुछ वर्षों में दोनों देशों ने इन रिश्तों को नई ऊर्जा दी है। वर्ष 2025 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीयर स्टारमर (Keir Starmer) की भारत यात्रा ने इन संबंधों में एक नया आयाम जोड़ा है। इस यात्रा का उद्देश्य सिर्फ कूटनीतिक संवाद नहीं बल्कि व्यापार, शिक्षा, रक्षा, जलवायु और तकनीकी क्षेत्रों में साझेदारी को और गहरा बनाना है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री स्टारमर के बीच हुई मुलाकात ने यह संदेश दिया कि भारत-यूके संबंध अब “औपनिवेशिक अतीत” से आगे बढ़कर “समानता और परस्पर विकास” की दिशा में बढ़ चुके हैं।

🌍 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत और ब्रिटेन (india -uk) का रिश्ता 200 से अधिक वर्षों पुराना है। 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भी दोनों देशों के बीच आर्थिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक संबंध लगातार बने रहे।
हालांकि, पिछले एक दशक में इन संबंधों में नया मोड़ आया है — जब भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा और ब्रिटेन ने ब्रेक्जिट के बाद एशिया पर अपने व्यापारिक फोकस को बढ़ाया।
प्रमुख ऐतिहासिक पड़ाव
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2004: भारत-यूके “स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप” की शुरुआत।
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2015: प्रधानमंत्री मोदी की ऐतिहासिक ब्रिटेन यात्रा, जहां दोनों देशों ने रक्षा और निवेश समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
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2021: “रोडमैप 2030” की घोषणा — जिसका लक्ष्य अगले 10 वर्षों में व्यापार, स्वास्थ्य, विज्ञान, जलवायु और शिक्षा में सहयोग बढ़ाना है।
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2025: कीयर स्टारमर की भारत यात्रा — एक नए युग की शुरुआत मानी जा रही है।
भारत-यूके व्यापारिक संबंधों की दिशा
भारत-यूके व्यापारिक साझेदारी आज दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण स्तंभ बन चुकी है।
दोनों देशों के बीच साल 2024-25 में कुल ₹1.23 लाख करोड़ से अधिक का द्विपक्षीय व्यापार हुआ, जिसमें भारत ने ऑटो पार्ट्स, फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल्स और सॉफ्टवेयर सेवाओं का निर्यात किया। वहीं ब्रिटेन से भारत में मशीनरी, शिक्षा सेवाएं और रक्षा उपकरणों का आयात हुआ।
मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर प्रगति
दोनों देशों के बीच पिछले दो वर्षों से “मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement)” पर चर्चा जारी थी।
स्टारमर की इस यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने इस FTA को “लगभग अंतिम चरण” में बताया।
इस समझौते से भारतीय उत्पादों पर ब्रिटेन में लगने वाले शुल्क घटेंगे और ब्रिटिश कंपनियों को भारत के विशाल बाजार में प्रवेश आसान होगा।
मुख्य लाभ:
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भारतीय IT और फार्मा कंपनियों को यूके में विस्तार के अवसर।
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ब्रिटिश विश्वविद्यालयों के लिए भारत में शिक्षा निवेश का मार्ग प्रशस्त।
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पर्यटन और विमानन क्षेत्र में सहयोग।
रक्षा और सुरक्षा सहयोग
भारत और ब्रिटेन (india -uk) अब रक्षा क्षेत्र में सिर्फ आयात-निर्यात तक सीमित नहीं हैं, बल्कि संयुक्त अनुसंधान और तकनीकी विकास की दिशा में भी आगे बढ़ रहे हैं।
दोनों देशों ने “Defence Industrial Cooperation” नामक नई पहल शुरू की है, जिसके तहत नौसेना के जहाजों, साइबर सुरक्षा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित सैन्य तकनीकों पर सहयोग किया जाएगा।
ब्रिटेन ने भारत को “विश्वसनीय रक्षा साझेदार” बताया है और रक्षा उपकरण निर्माण में “मेक इन इंडिया” परियोजनाओं में निवेश की इच्छा जताई है।
डिजिटल और फिनटेक साझेदारी
भारत के डिजिटल इंडिया मिशन और ब्रिटेन के FinTech Vision 2030 के बीच स्वाभाविक तालमेल है।
स्टारमर ने अपने भाषण में कहा —
“हम भारतीय फिनटेक कंपनियों के लिए यूके में रेड कार्पेट बिछा रहे हैं।”
ब्रिटेन भारत की डिजिटल पेमेंट टेक्नोलॉजी, जैसे UPI और आधार आधारित प्रणालियों से प्रभावित है।
दोनों देशों के बीच डेटा सुरक्षा, ब्लॉकचेन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में नया टेक्नोलॉजी एक्सचेंज प्रोग्राम लॉन्च किया गया है।
शिक्षा और प्रतिभा का आदान-प्रदान
यूके भारत के छात्रों के लिए लंबे समय से पसंदीदा शिक्षा केंद्र रहा है।
वर्तमान में करीब 1,40,000 से अधिक भारतीय छात्र ब्रिटेन में पढ़ाई कर रहे हैं।
नई साझेदारी के तहत —
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दोनों देशों ने “टैलेंट ब्रिज प्रोग्राम” शुरू किया है, जिसके तहत भारतीय छात्रों को 2 वर्ष तक का पोस्ट-स्टडी वर्क वीज़ा मिलेगा।
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भारतीय विश्वविद्यालयों और ब्रिटिश संस्थानों के बीच संयुक्त डिग्री प्रोग्राम शुरू होंगे।
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भारत में ब्रिटिश काउंसिल के सहयोग से वोकशनल स्किल हब्स खोले जाएंगे।
जलवायु और हरित ऊर्जा में सहयोग
दोनों देशों ने 2030 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन की दिशा में काम करने का वादा किया है।
ब्रिटेन भारत की “ग्रीन हाइड्रोजन मिशन” में सहयोग करेगा, जबकि भारत ब्रिटिश “Offshore Wind Energy Projects” में निवेश करेगा।
इससे न केवल पर्यावरणीय लाभ मिलेगा बल्कि दोनों देशों में हरित नौकरियों के अवसर भी बढ़ेंगे।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का समर्थन
स्टारमर ने भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का समर्थन करते हुए कहा —
“भारत को दुनिया के नेतृत्व में स्थायी स्थान मिलना चाहिए, क्योंकि वह 21वीं सदी के वैश्विक समाधान का केंद्र है।”
यह बयान ब्रिटेन की ओर से भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव की औपचारिक मान्यता के रूप में देखा जा रहा है।
सांस्कृतिक और मानवीय संबंध
यूके में लगभग 18 लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं। यह समुदाय ब्रिटिश राजनीति, व्यवसाय, फिल्म, और शिक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
दोनों देशों ने मिलकर “इंडिया-यूके कल्चरल फेस्टिवल 2026” की घोषणा की है, जो दोनों देशों की साझा सांस्कृतिक धरोहर को उजागर करेगा।
आर्थिक दृष्टिकोण: भविष्य की संभावनाएँ
भारत 2028 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, जबकि ब्रिटेन ब्रेक्जिट के बाद नए बाजारों की तलाश में है।
दोनों देशों के हित एक-दूसरे के पूरक हैं —
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भारत को तकनीक, निवेश और उच्च शिक्षा की आवश्यकता है।
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ब्रिटेन को तेजी से बढ़ते उपभोक्ता बाजार और डिजिटल नवाचार की ज़रूरत है।
इसलिए भारत-यूके संबंध आने वाले दशक में वैश्विक विकास के नई धुरी बन सकते हैं।
भारत-यूके संबंधों में मजबूती सिर्फ एक कूटनीतिक घटना नहीं, बल्कि यह दो आधुनिक लोकतंत्रों की साझा दृष्टि का प्रतीक है।
व्यापार, रक्षा, शिक्षा, डिजिटल और हरित ऊर्जा — इन पाँच स्तंभों पर टिका यह सहयोग 21वीं सदी के लिए “विन-विन साझेदारी” साबित हो सकता है।
स्टारमर की भारत यात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दोनों देशों का लक्ष्य अतीत को याद करते हुए नहीं, बल्कि भविष्य को आकार देने की दिशा में है।
अगर रोडमैप 2030 सफलतापूर्वक लागू होता है, तो भारत-यूके संबंध न केवल द्विपक्षीय सहयोग का उदाहरण होंगे बल्कि वैश्विक स्थिरता और विकास के लिए भी प्रेरणा बनेंगे।
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