छत्तीसगढ़ के दो अहम मोर्चे “जनजातीय गौरव दिवस” कार्यशाला एवं Special Intensive Revision (SIR) को लेकर चल रही राजनीतिक बहस

छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहाँ जनजातीय समुदाय की संख्या काफी है, उनकी सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर ध्यान देना बेहद महत्वपूर्ण है। इसी संदर्भ में राज्य सरकार द्वारा विष्णु देव साय (मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़) द्वारा आयोजित “जनजातीय गौरव दिवस” की कार्यशाला एक महत्वपूर्ण पहल है। दूसरी तरफ, राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में एक दूसरा बहुत बड़ा विषय यह है कि राज्य में मतदाता-सूची की समीक्षा-प्रक्रिया यानी SIR को लेकर विपक्ष द्वारा उठाए गए सवाल और उस पर चल रही बहस। इस ब्लॉग में हम इन दोनों पहलुओं को क्रमबद्ध तरीके से देखेंगे — क्या है कार्यशाला का उद्देश्य, किस पृष्ठभूमि में यह हो रही है, सरकार क्या कहना चाहती है, और साथ ही SIR प्रक्रिया, उसके कारण और कांग्रेस द्वारा उठाए गए मुद्दे।
1. “जनजातीय गौरव दिवस” कार्यशाला पृष्ठभूमि एवं उद्देश्

1.1 पृष्ठभूमि
“जनजातीय गौरव दिवस” की अवधारणा भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर केंद्रीय सरकार ने पेश की थी। इस दिन का उद्देश्य आदिवासी समुदायों के संघर्ष, पहचान और योगदान को सम्मान देना है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी आबादी का हिस्सा काफी महत्वपूर्ण है, इसलिए इस तरह की पहल यहाँ विशेष रूप से प्रासंगिक है।
1.2 कार्यशाला का आयोजन
ओबी न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार, राज्य मुख्यालय रायपुर में सिविल लाइन्स के कॉन्वेंशन हॉल में यह कार्यशाला आयोजित हुई जिसमें मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने मुख्य रूप से संबोधित किया।
उन्होंने कहा कि यह दिवस “हमारी आदिवासी धरती, हमारी संस्कृति, हमारी आत्म-पहचान” का प्रतीक है। उन्होंने यह भी कहा कि आज हम आदिवासी समाज की समृद्ध परंपरा और गौरवशाली इतिहास को याद कर रहे हैं।
1.3 मुख्य संदेश एवं घोषणाएँ
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मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासी समाज की स्व-निर्भरता ही भारत की असल शक्ति है।
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छत्तीसगढ़ में एक ऐसा आदिवासी संग्रहालय (Tribal Museum) “नवाँ रायपुर” में स्थापित किया गया है जिसमें राज्य के 14 प्रमुख आदिवासी विद्रोहों एवं वीर नारायण सिंह के जीवन पर केंद्रित सामग्री रखी गई है।
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आगामी योजनाओं में आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार एवं आधारभूत सुविधाओं के विस्तार पर जोर दिया गया है। कार्यशाला में उच्च शिक्षा मंत्री तथा आदिवासी विकास मंत्री ने इन बिंदुओं पर चर्चा की है।
1.4 महत्व एवं चुनौतियाँ
यह कार्यशाला अनेक स्तरों पर महत्वपूर्ण है
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सामाजिक-सांस्कृतिक यह आदिवासी समुदाय को उनकी पहचान व गौरव का मंच देती है।
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विकास-परिप्रेक्ष्य केवल प्रतीकात्मक कार्यक्रम ना होकर, इसे विकास की दिशा में कदम के रूप में देखा गया है।
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शिक्षा एवं जागरूकता: बच्चों व युवाओं में अपनी संस्कृति व इतिहास को जानने की प्रवृत्ति बढ़ती है, जैसे कि आदिवासी गौरव को पाठ्यक्रम में शामिल करने का सुझाव दिया गया है। OBNews
हालाँकि चुनौतियाँ भी स्पष्ट हैं — जैसे आदिवासी इलाकों में आज भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव, रोजगार-प्रशिक्षण की कमी, तथा विकास को प्रभावी रूप से पहुँचाने में व्यवस्थित ढांचे की कमी। इस तरह कार्यशाला के बाद अब कार्य में वास्तविक परिवर्तन दिखना जरुरी होगा।
2. Special Intensive Revision (SIR) (मतदाता-सूची पुनरीक्षण) — क्या है, क्यों और कैसे
2.1 SIR क्या है?
SIR यानि “Special Intensive Revision” एक ऐसा अभियान है जिसे Election Commission of India ने विभिन्न राज्यों में मतदाता सूचियों (voter-lists) की गहरी समीक्षा तथा पुनरीक्षण के लिए लागू किया है। छत्तीसगढ़ में भी यह प्रक्रिया शुरू हो गई है।
इसमें मुख्य रूप से निम्न-लिखित बिंदुओं पर काम किया जाता है
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मृत, डुप्लीकेट या फर्जी नामों को सूची से हटाना।
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नए योग्य मतदाताओं (18 वर्ष से ऊपर) को जोड़ना।
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स्थान परिवर्तन, पहचान-दस्तावेज आदि में त्रुटियों को सुधारना।
2.2 छत्तीसगढ़ में SIR का क्रम-चक्र
राज्य निर्वाचन आयोग, रायपुर द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार
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28 अक्टूबर 2025 से – 3 नवंबर 2025: फॉर्म-प्रिंटिंग एवं BLO (बूथ-लेवल अधिकारी) प्रशिक्षण।
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4 नवंबर 2025 से 4 दिसंबर 2025: घर-घर जाकर BLO द्वारा न्यूमेशन-फॉर्म के माध्यम से पुनरीक्षण।
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9 दिसंबर 2025: ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी
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9 दिसंबर 2025 से 8 जनवरी 2026: दावा-आपत्ति की प्रक्रिया।
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7 फरवरी 2026: अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन।
2.3 छत्तीसगढ़ में SIR क्यों जरूरी?
इस प्रक्रिया के पीछे निर्वाचन आयोग का उद्देश्य है: सूची में त्रुटियों को कम करना, मतदाता-पंजीकरण को अधिक पारदर्शी बनाना, और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुचारू बनाना।
छत्तीसगढ़ में यह जरूरत इसलिए भी पड़ी है क्योंकि राज्य में आदिवासी और वन-क्षेत्रों के कारण मतदाता संवाद की चुनौतियाँ ज्यादा हैं। SIR की मदद से ऐसे इलाकों में पहुंच बढ़ाना एवं सूची को अद्यतन करना महत्वपूर्ण माना गया।
3. कांग्रेस द्वारा SIR को लेकर उठाए गए सवाल
1 विषय की जटिलता
जहाँ SIR एक प्रशासकीय प्रक्रिया है, वहीं राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में इसे व्यापक रूप में देखा गया है। विपक्षीय दलों ने इस प्रक्रिया को संभावित रूप से राजनीतिक फायदे के लिए उपयोग किये जाने की संभावना पर ध्यान आकर्षित किया है।
3.2 छत्तीसगढ़ में उठे सवाल
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एक समाचार के अनुसार छत्तीसगढ़ में SIR की घोषणा पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आयोग से पूछा कि बिहार में कितने बांग्लादेशी और छत्तीसगढ़ में कितने पाकिस्तानी नागरिक अब तक चिन्हित किए गए हैं।
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छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने यह आरोप लगाया है कि SIR प्रक्रिया के माध्यम से “नाम कटने” की संभावना है और यह विशेष रूप से पिछड़े, आदिवासी या दलित मतदाताओं को निशाना बना सकती है — जैसा कि अन्य राज्यों में मामलों की चर्चा में आई है।
3.3 संघर्ष-संदर्भ
चूंकि मतदान-प्रक्रिया और मतदाता-सूची लोकतंत्र की बुनियादी नींव हैं, इसलिए SIR जैसी प्रक्रिया पर राजनीतिक दलों का ध्यान स्वाभाविक है। यदि लोगों का नाम अनजाने में हट जाएँ या योग्य मतदाता को पंजीकरण नहीं मिल पाए, तो इसका प्रभाव निष्पक्ष चुनाव पर पड़ सकता है।
4. कार्यशाला और SIR प्रक्रिया के बीच सम्बन्ध
दो seemingly अलग विषय — जनजातीय गौरव व मतदाता-सूची सुधार — वास्तव में एक दूसरे से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं।
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आदिवासी समुदायों को सक्षम करना, उनकी सामाजिक-आर्थिक भागीदारी बढ़ाना और उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अधिक सक्रिय बनाना सरकार का लक्ष्य रहा है। जनजातीय गौरव दिवस कार्यशाला इसी दिशा में एक सांस्कृतिक व जागरूकता-मंच है।
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दूसरी ओर, SIR प्रक्रिया का उद्देश्य अधिक सही व समावेशी मतदाता-सूची तैयार करना है — जिसमें विशेष रूप से पिछड़े, आदिवासी, वन-क्षेत्र निवासी आदि शामिल हो सकें। यदि यह प्रक्रिया निष्पक्ष और प्रभावी ढंग से लागू हो, तो आदिवासी समुदाय का मतदान-हिस्सा बढ़ सकता है।
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लेकिन ऐसी प्रक्रिया तभी सफल होगी जब उसे पारदर्शी रूप से लागू किया जाए, और समुदायों में विश्वास बना रहे कि उनकी जनसंख्या व भागीदारी को अनदेखा नहीं किया गया है। इस बिंदु पर विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों का महत्व पैदा होता है।
इस प्रकार, छत्तीसगढ़ में आज चल रही ये दो पहल — एक सांस्कृतिक-गौरव परक, दूसरी प्रशासकीय-लोकतांत्रिक — मिलकर उस राज्य-दृष्टि को प्रदर्शित करती हैं जहाँ आदिवासी पहचान को बळ मिलता है और लोकतांत्रिक भागीदारी को भी नए आयाम मिलते हैं।
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