₹90 करोड़ के GST फ्रॉड का बड़ा खुलासा रायगढ़ के दो आरोपी गिरफ्तार — इंटर-स्टेट नेटवर्क का पर्दाफाश

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले से जुड़ा एक बड़ा कर-घोटाला इन दिनों सुर्खियों में है। लगभग ₹90 करोड़ के इंटर-स्टेट GST फ्रॉड के मामले में दो आरोपियों की गिरफ्तारी ने न केवल व्यापारिक जगत बल्कि प्रशासनिक तंत्र को भी हिला कर रख दिया है। राज्य के राजस्व विभाग और जांच एजेंसियों द्वारा की गई संयुक्त कार्रवाई के बाद सामने आया यह घोटाला इस बात का संकेत है कि फर्जी कंपनियाँ और फर्जी लेन-देन दिखाने वाले नेटवर्क किस तरह सरकारी राजस्व को भारी नुकसान पहुँचा रहे हैं।
इस पूरे मामले में रायगढ़ के दो युवक — Aman Singhania और Aavesh Agarwal — मुख्य भूमिका में सामने आए हैं। जांच एजेंसियों के अनुसार, दोनों पर कई राज्यों में फैले एक बड़े फर्जीवाड़ा गिरोह का हिस्सा होने का संदेह है, जो फर्जी बिलिंग, बिना माल के खरीद-फरोख्त और इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के गलत इस्तेमाल के जरिए आईजीएसटी और सीजीएसटी में भारी हेरफेर करते थे।
मामला क्या है? — घोटाले का शुरुआती खुलासा
यह मामला तब सामने आया जब अलग-अलग राज्यों के GST अधिकारियों ने इंटर-स्टेट टैक्स चोरी की शिकायतों और संदिग्ध लेन-देन की रिपोर्टों को एक साथ जोड़कर विश्लेषण शुरू किया। इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों और डेटा-ट्रैकिंग के जरिए पता चला कि कई कंपनियों ने भारी मात्रा में इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा किया है, जबकि असल में उनका कोई वास्तविक व्यापार नहीं था।
रायगढ़ के जिन दो युवकों को पकड़ा गया, उन पर आरोप है कि उन्होंने:
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फर्जी कंपनियों का निर्माण किया
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उन कंपनियों के नाम पर बिल तैयार किए
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बिना माल खरीदे-बेचे लेन-देन दिखाया
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और करोड़ों रुपए का ITC क्लेम कर लिया
इस तरह सरकारी खजाने को लगभग ₹90 करोड़ का नुकसान हुआ।
फर्जी कंपनियों का जाल — कैसे बिछाया गया यह नेटवर्क
जांच में सामने आया कि फ्रॉड में इस्तेमाल की गई कई कंपनियाँ केवल कागज़ों पर मौजूद थीं। उनके:
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कोई असली दफ्तर नहीं
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कोई वास्तविक कर्मचारी नहीं
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न माल का आगमन-निर्गमन
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न कोई टैक्स भुगतान
इसके बावजूद ये कंपनियाँ बड़ी मात्रा में खरीद और बिक्री का दावा करती थीं, जिसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ कर चोरी था।
अधिकतर मामलों में:
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पते फर्जी या किराए के कमरे
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दस्तावेज़ डिजिटल रूप से तैयार
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मोबाइल नंबर अलग-अलग राज्यों के
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और बैंक खातों में तुरंत लेन-देन कर पैसा निकाल लिया जाता था
इन फर्जी यूनिट्स के जरिए आरोपियों ने एक ऐसा “पेपर-सर्कल” तैयार किया जिसमें माल कभी चलता ही नहीं, केवल कागज़ पर हिसाब-किताब चलता रहा।
इंटर-स्टेट GST फ्रॉड: इसे बड़ा क्यों माना जा रहा है?
यह कोई साधारण कर चोरी का मामला नहीं है। इसमें कई वजहें हैं:
(1) घोटाला कई राज्यों में फैला हुआ था
फर्जी कंपनियाँ अलग-अलग राज्यों में खड़ी की गईं, जिससे टैक्स अधिकारियों के लिए पैटर्न पकड़ना मुश्किल हो गया।
(2) ITC सिस्टम का दुरुपयोग
इनपुट टैक्स क्रेडिट असल व्यापारियों को राहत देने के लिए बनाया गया सिस्टम है, जिसे इस नेटवर्क ने गलत साबित कर दिया।
(3) सरकारी खजाने को भारी नुकसान
₹90 करोड़ का मतलब सिर्फ आंकड़ा नहीं, बल्कि:
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राज्य विकास योजनाओं का बजट घटना
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बुनियादी ढांचे पर असर
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सामाजिक योजनाओं की वित्तीय कमी
(4) डिजिटल सिस्टम को चकमा देने की कोशिश
GSTN नेटवर्क काफी कठोर और तकनीकी रूप से मजबूत है, फिर भी आरोपी इससे बचते रहे — यह भी चिंता का विषय है।
आरोपियों की भूमिका — क्या था इनका जिम्मा?
जांच एजेंसियों ने दोनों युवकों की भूमिका को इस तरह सामने रखा:
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फर्जी कंपनियों का पंजीयन कराना
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गैर-कानूनी दस्तावेज तैयार करना
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ई-वे बिल और जीएसटी रिटर्न फाइल करना
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बिल्ट-अप लेन-देन दिखाकर ITC क्लेम करना
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कंपनियों के बैंक खातों पर नियंत्रण रखना
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कई राज्यों में फैले अन्य फर्जी कारोबारियों से नेटवर्क बनाए रखना
इन दोनों की गतिविधियों से यह भी अंदेशा है कि इनके पीछे बड़े मास्टरमाइंड या कारोबारी सिंडिकेट भी हो सकते हैं।
जांच एजेंसियों की कार्रवाई — ‘क्लासिक टीम-वर्क’ का उदाहरण
GST विभाग, राजस्व खुफिया निदेशालय और अन्य राज्यों के विभागों ने तुरंत संयुक्त कार्रवाई की। इस दौरान:
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आरोपियों को हिरासत में लिया गया
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उनसे डिजिटल रिकॉर्ड, मोबाइल डेटा, बैंकिंग लेन-देन की जांच की गई
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फर्जी कंपनियों के दस्तावेज़ बरामद हुए
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कई और संदिग्ध कारोबारियों पर नजरें टिकीं
इस मामले ने यह भी साबित किया कि अलग-अलग राज्यों की एजेंसियां जब एक साथ काम करती हैं, तो ऐसे बड़े घोटाले सामने आना आसान हो जाता है।
स्थानीय स्तर पर प्रतिक्रिया — रायगढ़ में चर्चा का विषय
रायगढ़ जैसे शांत औद्योगिक शहर में इस तरह का करोड़ों का फ्रॉड सामने आना लोगों के लिए चौंकाने वाला था। शहर के व्यापारी संगठनों और नागरिकों की प्रतिक्रियाएँ मिली-जुली थीं:
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कुछ लोग हैरान थे कि इतनी बड़ी रकम का फर्जी लेन-देन शहर में हो रहा था।
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कई व्यापारियों ने कहा कि ऐसे मामलों से genuine कारोबारियों की छवि को धक्का लगता है।
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स्थानीय व्यवसायिक संगठनों ने कहा कि सख्त जांच से ऐसे नेटवर्क खत्म हो जाएंगे।
सरकार और विभाग की चुनौतियाँ
GST सिस्टम पारदर्शिता की दिशा में एक बड़ा कदम है, लेकिन ऐसे घोटाले कई सवाल खड़े करते हैं:
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क्या राज्यों के बीच सूचना साझा करना अभी भी कमजोर कड़ी है?
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क्या ITC क्लेम को और मजबूत नियमों की जरूरत है?
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क्या फर्जी कंपनियों का पंजीयन बहुत आसान है?
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क्या डिजिटल रिकॉर्ड की निगरानी और कठोर होनी चाहिए?
इस मामले के बाद विशेषज्ञों का मानना है कि विभागीय सुधारों और जाँच तंत्र को और तकनीकी रूप से सशक्त करने की आवश्यकता है।
जांच और भी बड़े खुलासे कर सकती है
सूत्रों के अनुसार, यह सिर्फ शुरुआत है।
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कई राज्यों में स्थित 15 से अधिक फर्जी कंपनियों पर संदेह है
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कुछ बड़े व्यापारी या बिचौलिये भी शामिल हो सकते हैं
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कई दस्तावेज़ और डिजिटल ट्रेल अभी भी जांच के दायरे में हैं
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आने वाले दिनों में और गिरफ्तारियाँ संभव हैं
समाज और कारोबारी समुदाय के लिए सीख
यह मामला सिर्फ कर चोरी का नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का मुद्दा है। समाज और व्यापार जगत को समझना होगा कि:
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इस तरह के फ्रॉड से देश के विकास कार्य रुकते हैं
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अपराधी पैसे बचाते हैं, लेकिन ईमानदार व्यापारी मुश्किल में पड़ते हैं
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सरकारी योजनाओं पर भार पड़ता है
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व्यापारिक छवि खराब होती है
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टैक्स सिस्टम पर लोगों का भरोसा डगमगाता है
साथ ही, युवा वर्ग के लिए भी यह एक सीख है कि गलत रास्ते पर जल्दी पैसा भले मिले, लेकिन उसकी मंज़िल सिर्फ अपराध और गिरफ्तारी है।

बड़ा घोटाला, बड़ा सबक
रायगढ़ में सामने आया यह ₹90 करोड़ का GST फ्रॉड सिर्फ एक वित्तीय अपराध नहीं, बल्कि एक चेतावनी है। डिजिटल युग में भी फर्जीवाड़ा संभव है, लेकिन उससे बचने के लिए तकनीक, सतर्कता और विधि-पालन जरूरी है।
यह केस आने वाले महीनों में भारतीय कर-तंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकता है — और हमें यह दिखाता है कि प्रशासनिक सतर्कता से बड़े-से-बड़े फर्जी नेटवर्क का पर्दाफाश किया जा सकता है।
संदिग्ध लेन-देन ने खोला पूरा राज़
जांच एजेंसियों के अनुसार, GSTN पोर्टल पर लगातार कुछ कंपनियों द्वारा अत्यधिक ITC क्लेम किया जा रहा था।
डेटा एनालिटिक्स टीम ने पाया कि:
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कंपनियाँ लाखों-करोड़ों का खरीद-बिक्री लेन-देन दिखा रही थीं,
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लेकिन उनके पास न बिजली का बिल,
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न गोदाम की गतिविधियों के रिकॉर्ड,
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न ट्रांसपोर्ट बिल,
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न माल प्राप्ति का कोई लॉजिस्टिक प्रमाण।
यहीं से शक की शुरुआत हुई।
बैंक खातों में भी मिले ‘पैसे के गोले’
जांच में खुलासा हुआ कि आरोपियों के बैंक खातों में:
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एक ही दिन में कई राज्यों से पैसे आए
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तुरंत दूसरे खातों में भेज दिए गए
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और फिर जल्दी कैश में बदल दिए गए
ऐसा करने का उद्देश्य था — लेन-देन का डिजिटल ट्रेल छुपाना।
डिजिटल फर्जीवाड़ा — ई-वे बिल भी फर्जी
आरोपियों ने:
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ई-वे बिल बनाए
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लेकिन असल में कोई ट्रक चला ही नहीं
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कई ट्रांसपोर्टर्स के नाम और GST नंबर फर्जी इस्तेमाल किए गए
कई परिवहन कंपनियों ने बाद में कहा कि उन्हें इस लेन-देन की जानकारी तक नहीं थी।
फर्जी कंपनियों का ‘वर्चुअल बिज़नेस नेटवर्क’
जांच में यह भी पाया गया कि:
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कुल मिलाकर करीब 25–30 कंपनियाँ संदिग्ध हैं
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इनमें से कई सिर्फ आधार कार्ड और मोबाइल नंबर के आधार पर खोली गई थीं
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कई कंपनियों के नाम पर बिजली मीटर तक नहीं था
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एक-दो जगहों पर सिर्फ खाली कमरे मिले
यह दिखाता है कि पूरा ऑपरेशन “पेपर्स पर चलने वाला बिज़नेस” था।
आरोपियों के पीछे एक बड़ा रैकेट होने की आशंका
जांच अधिकारियों ने संकेत दिए हैं कि:
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इन दोनों युवकों के पीछे एक संगठित गिरोह है
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यह नेटवर्क चार–पांच राज्यों में फैला हुआ है
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इनके पास फर्जी दस्तावेज़ तैयार करने के विशेषज्ञ मौजूद हैं
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बैंक कर्मचारियों की सहायता की संभावना भी नकारा नहीं जा सकती
आने वाले समय में और गिरफ्तारी होने की संभावना काफी ज्यादा है।
कानूनी धाराएँ और संभावित सज़ा
आरोपियों पर मुख्य रूप से निम्न धाराएँ लगाई गई हैं:
CGST धारा 132 के अंतर्गत:
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फर्जी ITC क्लेम
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बिना माल के कागज़ी लेन-देन
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फर्जी दस्तावेज़ों का निर्माण
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कर चोरी का षड्यंत्र
यदि अपराध साबित होता है तो सज़ा:
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5 साल तक की जेल
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भारी जुर्माना
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जमानत मिलने में कठिनाई
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संपत्तियों की जब्ती भी संभव
यह एक गैर-जमानती और गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।
इंटर-स्टेट जांच — 3 राज्यों में टीम भेजी गई
जांच एजेंसियों ने:
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छत्तीसगढ़
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ओडिशा
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झारखंड
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और पश्चिम बंगाल
में टीमें भेजी हैं, क्योंकि कई कंपनियों के पते इन राज्यों में पाए गए हैं।
कुछ पतों पर गई टीमों ने बताया:
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पते पर ताले लगे थे
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पड़ोसियों को कंपनी के बारे में जानकारी ही नहीं थी
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कई कंपनियाँ एक ही फोन नंबर से रजिस्टर्ड थीं
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