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स्क्रैप से बस्तर कला-काम छात्रों की रचनात्मकता ने दिखाई 1 नई दिशा, “वेस्ट टू आर्ट” अभियान बना मिसाल

स्क्रैप से बस्तर कला-काम छत्तीसगढ़ के छात्र दिखा रहे हैं रचनात्मकता की नई मिसाल
  

“कचरे से कला”  बस्तर के युवाओं का अनोखा अभियान

छत्तीसगढ़ का बस्तर अपने परंपरागत हस्तशिल्प, धातु कला और जनजातीय संस्कृति के लिए जाना जाता है।
लेकिन अब बस्तर एक नए कारण से सुर्खियों में है — यहां के स्कूल और कॉलेज के छात्र स्क्रैप (फेंके हुए सामान) से अद्भुत कलाकृतियाँ तैयार कर रहे हैं।

यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक कदम है, बल्कि यह यह भी साबित करती है कि रचनात्मकता किसी सीमा की मोहताज नहीं होती
छात्रों ने बेकार पड़ी लोहे की चादरों, बोतलों, टायरों, इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स और प्लास्टिक के टुकड़ों से ऐसी कलाकृतियाँ बनाई हैं, जिन्हें देखकर हर कोई दंग रह गया।

स्क्रैप से बस्तर कला-काम: छात्र रचनात्मकता दिखा रहे हैं – दुर्ग के एक कॉलेज में छात्र स्क्रैप मेटल से बस्तर आयरन क्राफ्ट के माध्यम से कलाकृति बना रहे हैं, यह स्किल-आधारित शिक्षा के तहत है। India Today


कार्यक्रम की शुरुआत “वेस्ट टू आर्ट” प्रतियोगिता से उठी नई सोच

यह पूरी पहल बस्तर के जिला शिक्षा विभाग और बस्तर विश्वविद्यालय के संयुक्त सहयोग से शुरू हुई।
वेस्ट टू आर्ट” नामक इस कार्यक्रम का उद्देश्य था —

“कचरे को उपयोग में लाकर सुंदर और उपयोगी वस्तुएँ बनाना, ताकि छात्रों में पर्यावरणीय जागरूकता और सृजनात्मकता दोनों बढ़ें।”

इस अभियान में बस्तर, जगदलपुर, नारायणपुर और कोंडागांव के कई स्कूल और कॉलेजों के 300 से अधिक छात्रों ने भाग लिया।
कार्यक्रम का उद्घाटन स्थानीय प्रशासन और कला विभाग के सहयोग से किया गया।


स्क्रैप से बनी अद्भुत कलाकृतियाँ छात्रों की कला ने सबको चौंकाया

छात्रों ने अपने प्रोजेक्ट्स में तरह-तरह की चीजें शामिल कीं। कुछ प्रमुख कलाकृतियाँ थीं —

  1. लोहे के टुकड़ों से बनी ‘मां दंतेश्वरी’ की मूर्ति
    एक कॉलेज छात्र समूह ने पुराने बाइक पार्ट्स, स्क्रू, स्प्रिंग और लोहे की प्लेटों से देवी मां की प्रतिमा बनाई। यह प्रतिमा अब जिला मुख्यालय में प्रदर्शित की गई है।

  2. प्लास्टिक बोतलों से बना झरना दृश्य
    स्कूल के बच्चों ने पुरानी बोतलों और एलईडी लाइट्स की मदद से एक झरने जैसा लैंडस्केप बनाया जो देखने में बिल्कुल प्राकृतिक लगता है।

  3. पुराने टायरों से बनी बेंच और गार्डन शोपीस
    छात्रों ने रिसाइकल्ड टायरों को रंगकर आकर्षक बेंच और फूलदान बनाए, जिन्हें स्थानीय पार्कों में लगाया गया है।

  4. इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट से बना “बस्तर का भविष्य” मॉडल
    इंजीनियरिंग छात्रों ने पुराने मोबाइल, तार और कंप्यूटर पार्ट्स से एक “स्मार्ट बस्तर” का मॉडल तैयार किया जो तकनीक और परंपरा के मेल को दर्शाता है।


 पर्यावरण जागरूकता और आत्मनिर्भर सोच

इस अभियान के दो प्रमुख उद्देश्य रखे गए

  1. कचरे के पुनः उपयोग को बढ़ावा देना ताकि पर्यावरण पर बोझ कम हो।

  2. युवाओं में आत्मनिर्भरता और रचनात्मकता का विकास करना।

बस्तर के डिप्टी कलेक्टर ने कहा —

“हम चाहते हैं कि छात्र यह समझें कि कला केवल महंगे संसाधनों से नहीं बनती। कल्पना और मेहनत से बेकार चीजें भी सुंदर रूप ले सकती हैं।”


बस्तर की परंपरा और नई पीढ़ी का संगम

बस्तर की पहचान उसकी समृद्ध जनजातीय कला — जैसे ढोकरा कला, लकड़ी की नक्काशी, मिट्टी के बर्तन और बाँस उत्पादों से जुड़ी रही है।
इन पारंपरिक कलाओं में पीढ़ियों से ग्रामीण कारीगर अपनी रचनात्मकता दिखाते आए हैं।

अब यही परंपरा आधुनिक रूप में छात्रों द्वारा आगे बढ़ाई जा रही है।
छात्रों की कलाकृतियों में स्थानीय परंपराओं और आधुनिक डिज़ाइन का सुंदर मेल दिखाई दे रहा है।

एक कला शिक्षक ने कहा —

“हमारे बच्चे आज ढोकरा कला की सोच को ‘मॉडर्न वेस्ट मटेरियल’ के साथ जोड़ रहे हैं। यह परंपरा के प्रति सम्मान और नवाचार दोनों का प्रतीक है।”


रचनात्मकता के साथ सीख ‘आर्ट बाय एक्शन’ शिक्षा का हिस्सा बनी

यह प्रोजेक्ट केवल एक कला प्रदर्शन नहीं था, बल्कि यह छात्रों के लिए व्यावहारिक सीख (Learning by Doing) का अवसर भी बना।
कई स्कूलों ने इसे अपनी आर्ट और एनवायरनमेंटल स्टडीज की पाठ्यचर्या से जोड़ा है।

शिक्षकों का कहना है कि बच्चों में अब कचरे को देखने का नजरिया बदल गया है।
जहां पहले टूटी चीज़ें कूड़ेदान में जाती थीं, अब बच्चे सोचते हैं — “इसे हम किस रूप में बदल सकते हैं?”


कला और पर्यावरण सतत विकास की दिशा में एक कदम

बस्तर की यह पहल संयुक्त राष्ट्र के Sustainable Development Goals (SDGs) के साथ भी मेल खाती है, खासकर इन दो लक्ष्यों से

  • Goal 12 Responsible Consumption and Production

  • Goal 13 Climate Action

छात्रों की यह पहल न केवल “रिसाइकलिंग” को बढ़ावा देती है, बल्कि समाज में “कचरा नहीं, संसाधन” की सोच को भी प्रोत्साहित करती है।


समाज पर असर स्थानीय प्रशासन और लोगों की भागीदारी

कार्यक्रम की सफलता का श्रेय सिर्फ छात्रों को नहीं, बल्कि स्थानीय प्रशासन, शिक्षकों और अभिभावकों को भी जाता है।
जगदलपुर नगर निगम ने घोषणा की है कि शहर के सार्वजनिक स्थानों पर इन कलाकृतियों को स्थायी रूप से प्रदर्शित किया जाएगा।

इसके अलावा, ग्रामीण इलाकों में पंचायत स्तर पर भी ऐसे “वेस्ट टू आर्ट” कैंप लगाने की योजना बनाई जा रही है।


छात्रों की भावना “हमने सीखा कि कला हर चीज़ में होती है”

एक छात्रा, अंजलि नेताम, जो 12वीं कक्षा में पढ़ती हैं, कहती हैं

“हमने घर में पड़ी टूटी कुर्सी, पुराने तार और प्लास्टिक का इस्तेमाल कर एक सुंदर पेड़ का मॉडल बनाया।
अब हम समझ गए कि कला सिर्फ पेंटिंग या मूर्तियों तक सीमित नहीं है।”

दूसरे छात्र मनीष नेताम ने कहा —

“जब हमने अपने प्रोजेक्ट को तैयार किया, तो हमें गर्व हुआ कि हमने कचरे को उपयोगी बना दिया। अब हम दूसरों को भी यही सिखाना चाहते हैं।”


प्रदर्शनी और सम्मान छात्रों को मिला प्रोत्साहन

कार्यक्रम के अंत में जिला प्रशासन और विश्वविद्यालय द्वारा एक आर्ट प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।
इसमें छात्रों की 200 से अधिक कलाकृतियाँ प्रदर्शित की गईं।

पहला पुरस्कार ‘बस्तर की आत्मा’ शीर्षक वाली धातु मूर्ति को मिला, जो पूरी तरह स्क्रैप से बनी थी।
दूसरा पुरस्कार “ईको स्कूल” मॉडल को दिया गया, जिसमें छात्रों ने पुराने कार्डबोर्ड से एक पर्यावरण-सुलभ स्कूल का मॉडल बनाया था।

सभी विजेताओं को सम्मान पत्र और ₹10,000 तक का पुरस्कार दिया गया ताकि वे भविष्य में अपनी कला को और आगे बढ़ा सकें।


शैक्षणिक दृष्टिकोण से लाभ

  1. छात्रों में टीमवर्क और समस्या समाधान की क्षमता विकसित हुई।

  2. उन्होंने सीखा कि डिज़ाइन थिंकिंग और सस्टेनेबल डेवलपमेंट आपस में कैसे जुड़े हैं।

  3. विज्ञान, कला और पर्यावरण शिक्षा का व्यावहारिक मेल स्थापित हुआ।

शिक्षा विभाग का कहना है कि आने वाले वर्षों में इस मॉडल को राज्य के अन्य जिलों में भी लागू किया जाएगा।


भविष्य की दिशा बस्तर बनेगा “ग्रीन आर्ट ज़ोन”

बस्तर जिला प्रशासन ने घोषणा की है कि आने वाले समय में यहां ‘ग्रीन आर्ट ज़ोन’ की स्थापना की जाएगी।
यह एक ऐसा केंद्र होगा जहां कलाकार और छात्र मिलकर रिसाइकल मटेरियल से कला का प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे।

इसके साथ ही, “कचरा मुक्त बस्तर” मिशन के तहत हर स्कूल में “आर्ट फ्रॉम वेस्ट” सप्ताह आयोजित किया जाएगा।


विशेषज्ञों की राय

रायपुर के पर्यावरणविद् डॉ. हर्षिता झा कहती हैं —

“बस्तर के छात्रों की पहल दिखाती है कि नई पीढ़ी पर्यावरण को लेकर कितनी सजग है।
यह आंदोलन आने वाले वर्षों में पूरे छत्तीसगढ़ के लिए प्रेरणास्रोत बन सकता है।”

वहीं, बस्तर विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा —

“हम छात्रों में सृजनशील सोच को प्रोत्साहित करना चाहते हैं।
जब वे यह सीखते हैं कि ‘बेकार चीज़ों का भी मूल्य होता है’, तो यह शिक्षा का असली उद्देश्य पूरा होता है।”


“रचनात्मकता वही, जो समाज को बदल दे”

बस्तर के छात्रों ने यह साबित कर दिया है कि कला केवल प्रदर्शन नहीं, परिवर्तन का माध्यम है।
उन्होंने न केवल कचरे को नया रूप दिया, बल्कि समाज को यह संदेश भी दिया कि

“संसाधन सीमित हैं, लेकिन कल्पनाशक्ति असीमित।”

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