रायगढ़ में महिलाओं द्वारा संचालित आंगनवाड़ी “रेडी-टू-ईट” कार्यक्रम – एक नई पहल
रायगढ़ जिला छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख औद्योगिक और सांस्कृतिक क्षेत्र है। यहाँ पर हाल ही में एक अनोखी और सराहनीय पहल की शुरुआत हुई है, जिसमें महिला स्व-सहायता समूहों (SHGs) को आंगनवाड़ी केन्द्रों के लिए रेडी-टू-ईट (RTE) भोजन तैयार करने और उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह पहल न केवल बच्चों के पोषण स्तर को बेहतर बनाने में मदद करेगी, बल्कि महिलाओं को आत्मनिर्भरता और रोजगार के अवसर भी प्रदान करेगी।
इस पहल में महिलाओं की स्वयं सहायता समूहों को भोजन निर्माण का ठेका दिया गया, ताकि बच्चों को पौष्टिक भोजन सुनिश्चित किया जा सके। The Times of India
इस पहल की पृष्ठभूमि
आंगनवाड़ी केन्द्रों की स्थापना 1975 में “एकीकृत बाल विकास योजना (ICDS)” के अंतर्गत की गई थी। इन केन्द्रों का मुख्य उद्देश्य 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों को
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पौष्टिक आहार
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स्वास्थ्य जांच
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टीकाकरण
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पूर्व-प्राथमिक शिक्षा
प्रदान करना है।
लेकिन लंबे समय से यह समस्या सामने आती रही है कि बच्चों तक समय पर गुणवत्तापूर्ण भोजन नहीं पहुंच पाता। इसी कड़ी में रायगढ़ प्रशासन ने महिला समूहों को जोड़कर इस काम को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाने की पहल की है।
✅ रेडी-टू-ईट (RTE) कार्यक्रम क्या है?
रेडी-टू-ईट (RTE) कार्यक्रम भारत सरकार की एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) और पोषण अभियान का हिस्सा है। इसका मुख्य उद्देश्य छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना है, ताकि कुपोषण और एनीमिया जैसी समस्याएँ कम की जा सकें।
इसमें ऐसा भोजन दिया जाता है जो पहले से तैयार होता है और जिसे बिना ज्यादा पकाए या आसानी से खाया जा सकता है।
✅ इसमें क्या-क्या दिया जाता है?
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दलिया और पोहा मिक्स – गेहूं, चावल और दाल से बना
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पौष्टिक खिचड़ी मिक्स – दाल, चावल और सब्जी मिक्स पाउडर
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सोया/मूंगफली आधारित एनर्जी मिक्स – प्रोटीन और फैट से भरपूर
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गुड़ और चना मिश्रण – बच्चों के लिए ऊर्जा का स्रोत
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माइक्रोन्यूट्रिएंट्स (विटामिन व मिनरल्स) से युक्त मिश्रण
✅ RTE कार्यक्रम के लाभ
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बच्चों को संतुलित आहार – जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास होता है।
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गर्भवती व स्तनपान कराने वाली माताओं को पोषण – ताकि मातृ मृत्यु दर कम हो और बच्चे स्वस्थ हों।
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कुपोषण में कमी – ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों में यह विशेष रूप से प्रभावी है।
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सुविधाजनक और सुरक्षित – भोजन पहले से पैक होता है और ज्यादा मेहनत के बिना खाया जा सकता है।
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महिलाओं को रोजगार – हाल ही में रायगढ़ जैसे जिलों में यह भोजन महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा तैयार किया जा रहा है।
रेडी-टू-ईट कार्यक्रम के तहत बच्चों को ऐसा पौष्टिक भोजन दिया जाता है जो आसानी से तैयार होकर आंगनवाड़ी केन्द्रों में उपलब्ध हो सके। इसमें शामिल होते हैं –
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दलिया
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पौष्टिक खिचड़ी मिक्स
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मूंगफली या सोया बेस्ड ऊर्जा युक्त मिक्स
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विटामिन और खनिजों से युक्त मिश्रण
इससे बच्चों को संतुलित आहार मिलता है और कुपोषण की समस्या कम करने में मदद मिलती है।
✅ रायगढ़ की पहल में नया क्या है?
1. महिलाओं की सीधी भागीदारी
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आंगनवाड़ी केन्द्रों के लिए RTE भोजन तैयार करने की जिम्मेदारी महिला स्व-सहायता समूहों (SHGs) को दी गई है।
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इससे महिलाओं को नियमित रोजगार और आर्थिक स्वतंत्रता मिली है।
2. स्थानीय स्तर पर उत्पादन
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भोजन अब बाहर से नहीं लाना पड़ता, बल्कि गाँव और ब्लॉक स्तर पर ही तैयार किया जा रहा है।
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इससे परिवहन लागत घटती है और ताज़ा व गुणवत्तापूर्ण आहार सुनिश्चित होता है।
3. पारदर्शिता और निगरानी
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बड़े कॉन्ट्रैक्टर्स के बजाय स्थानीय महिला समूहों को जिम्मेदारी मिलने से गुणवत्ता पर निगरानी आसान हो गई है।
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गाँव के लोग सीधे तौर पर इस प्रक्रिया की मॉनिटरिंग कर सकते हैं।
4. आत्मनिर्भरता की ओर कदम
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यह पहल महिलाओं को केवल कर्मचारी नहीं बल्कि उद्यमी बना रही है।
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वे भविष्य में अपने प्रॉडक्ट्स को “ब्रांडेड पैक” करके भी बेच सकती हैं।
5. सामुदायिक भागीदारी
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यह कार्यक्रम सिर्फ पोषण नहीं, बल्कि सामाजिक विकास से भी जुड़ा है।
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स्थानीय महिलाएँ, प्रशासन और आंगनवाड़ी मिलकर बच्चों की सेहत सुधार रहे हैं।
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महिलाओं की भागीदारी – भोजन निर्माण का ठेका केवल महिला स्व-सहायता समूहों को दिया गया है।
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स्थानीय स्तर पर उत्पादन – यह भोजन स्थानीय स्तर पर तैयार किया जा रहा है, जिससे परिवहन लागत कम होगी।
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पारदर्शिता और गुणवत्ता – स्थानीय समूहों पर निगरानी आसानी से हो पाएगी और भोजन की गुणवत्ता बनाए रखना सरल होगा।
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आत्मनिर्भरता की ओर कदम – महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाकर आत्मनिर्भरता और उद्यमशीलता की दिशा में बढ़ाया जा रहा है।
✅ महिलाओं के लिए लाभ
1. नियमित रोजगार और आय
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महिला स्व-सहायता समूहों को भोजन उत्पादन का ठेका मिलने से स्थायी आय का स्रोत मिला।
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इससे परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई।
2. आर्थिक स्वतंत्रता
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महिलाएँ अब अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं और घर के फैसलों में उनकी भूमिका बढ़ी है।
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पहले जहाँ वे केवल परिवार पर निर्भर थीं, अब वे खुद कमाने लगी हैं।
3. कौशल विकास और प्रशिक्षण
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इस कार्यक्रम के तहत महिलाओं को खाद्य सुरक्षा, पोषण और स्वच्छता पर प्रशिक्षण दिया जाता है।
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इससे उनका आत्मविश्वास और कार्यकुशलता बढ़ती है।
4. सामाजिक पहचान और नेतृत्व
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जब महिलाएँ गाँव और समुदाय के सामने सक्रिय रूप से काम करती हैं, तो उन्हें सम्मान और पहचान मिलती है।
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कई महिलाएँ अपने समूहों की नेता बनकर नेतृत्व क्षमता विकसित कर रही हैं।
5. आत्मनिर्भरता और उद्यमशीलता
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यह पहल महिलाओं को सिर्फ कर्मचारी नहीं, बल्कि उद्यमी (Entrepreneur) बनने की राह दिखा रही है।
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भविष्य में वे अपने उत्पादों को स्थानीय बाजार और सरकारी योजनाओं के तहत बेच सकती हैं।
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नियमित रोजगार और आय का साधन
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आर्थिक स्वतंत्रता और परिवार की स्थिति में सुधार
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कौशल विकास और नेतृत्व क्षमता का विस्तार
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समाज में आत्मसम्मान और पहचान
✅ बच्चों और समाज के लिए लाभ
1. बच्चों को पौष्टिक आहार
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आंगनवाड़ी में आने वाले छोटे बच्चों को समय पर संतुलित भोजन मिल रहा है।
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इससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास बेहतर हो रहा है।
2. कुपोषण और बीमारियों में कमी
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प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और मिनरल से भरपूर आहार मिलने से कुपोषण और एनीमिया की समस्या घट रही है।
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बच्चे अधिक स्वस्थ और सक्रिय रह रहे हैं।
3. शिक्षा पर सकारात्मक प्रभाव
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पौष्टिक भोजन मिलने से बच्चों की ध्यान लगाने की क्षमता और स्कूल उपस्थिति में सुधार होता है।
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भूख और कुपोषण से जूझ रहे बच्चे पढ़ाई पर सही से ध्यान नहीं दे पाते थे, अब यह समस्या कम हो रही है।
4. समाज में स्वास्थ्य जागरूकता
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जब माताएँ और परिवार देखते हैं कि बच्चों के लिए पौष्टिक आहार कितना जरूरी है, तो समाज में भी पोषण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ती है।
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इससे भविष्य में परिवार खुद भी घर पर पौष्टिक आहार देने पर ध्यान देंगे।
5. सामुदायिक भागीदारी और एकजुटता
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स्थानीय महिला समूह, प्रशासन और आंगनवाड़ी मिलकर काम कर रहे हैं।
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इससे समाज में सहयोग और एकजुटता की भावना बढ़ रही है।
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बच्चों को समय पर पौष्टिक भोजन मिलेगा
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कुपोषण और बीमारियों की दर घटेगी
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बच्चों की शिक्षा और शारीरिक विकास में सुधार
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स्थानीय स्तर पर सामुदायिक भागीदारी बढ़ेगी
✅ चुनौतियाँ और समाधान
1. भोजन की गुणवत्ता बनाए रखना
चुनौती
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बड़े पैमाने पर उत्पादन करते समय भोजन की गुणवत्ता और पोषण स्तर पर असर पड़ सकता है।
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कभी-कभी पैकिंग और भंडारण सही न होने से भोजन खराब हो सकता है।
समाधान
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समय-समय पर लैब टेस्ट और निरीक्षण।
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फूड सेफ्टी ट्रेनिंग देकर महिला समूहों को जागरूक करना।
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पैकिंग और स्टोरेज के लिए मानक (Standard Guidelines) लागू करना।
2. वित्तीय पारदर्शिता
चुनौती
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सरकारी फंड और महिला समूहों के बीच वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता बनाए रखना कठिन हो सकता है।
समाधान
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सभी लेन-देन डिजिटल भुगतान और बैंकिंग चैनल से करना।
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नियमित ऑडिट और सोशल ऑडिट की व्यवस्था।
3. प्रशिक्षण और कौशल की कमी
चुनौती
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कई महिलाएँ पहले कभी इस तरह के उत्पादन और प्रबंधन से जुड़ी नहीं रही हैं।
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उन्हें गुणवत्ता नियंत्रण, पोषण विज्ञान और हाइजीन की जानकारी सीमित है।
समाधान
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समय-समय पर प्रशिक्षण वर्कशॉप आयोजित करना।
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विशेषज्ञों और स्वास्थ्य अधिकारियों की मदद से महिलाओं को व्यावहारिक मार्गदर्शन देना।
4. वितरण व्यवस्था और लॉजिस्टिक्स
चुनौती
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भोजन को समय पर सभी आंगनवाड़ी केन्द्रों तक पहुँचाना हमेशा आसान नहीं होता।
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दूर-दराज़ के गाँवों तक सप्लाई में देरी हो सकती है।
समाधान
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स्थानीय स्तर पर मिनी यूनिट्स बनाना ताकि भोजन पास के केन्द्रों में ही तैयार हो।
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परिवहन के लिए ब्लॉक स्तर पर ट्रांसपोर्ट प्लान तैयार करना।
✅ भविष्य की संभावनाएँ
1. अन्य जिलों के लिए मॉडल
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रायगढ़ का यह प्रयोग सफल होता है तो इसे अन्य जिलों और राज्यों में भी लागू किया जा सकता है।
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इससे पूरे प्रदेश में महिलाओं को रोजगार और बच्चों को पोषण मिलेगा।
2. ब्रांडेड प्रोडक्ट्स और मार्केटिंग
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महिला स्व-सहायता समूह भविष्य में अपने RTE उत्पादों को ब्रांडेड पैकिंग में बाजार और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बेच सकते हैं।
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इससे उन्हें अतिरिक्त आय के स्रोत मिलेंगे।
3. स्थानीय कृषि उत्पादों का इस्तेमाल
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भविष्य में इस कार्यक्रम से किसानों को भी जोड़ा जा सकता है।
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स्थानीय रूप से उपलब्ध चावल, दाल, सोया और सब्जियों का उपयोग कर फार्म टू फूड मॉडल तैयार किया जा सकता है।
4. आत्मनिर्भर भारत और पोषण अभियान से जुड़ाव
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यह पहल सीधे-सीधे आत्मनिर्भर भारत और पोषण अभियान जैसी राष्ट्रीय योजनाओं को मजबूत कर सकती है।
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महिलाओं को उद्यमी बनाकर और बच्चों को पोषण देकर यह दोनों लक्ष्यों को एक साथ साधेगी।।
रायगढ़ में शुरू किया गया महिला-नेतृत्व वाला आंगनवाड़ी रेडी-टू-ईट कार्यक्रम केवल एक पोषण योजना नहीं है, बल्कि यह महिला सशक्तिकरण, आत्मनिर्भरता और सामुदायिक विकास की दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम है। इससे न सिर्फ बच्चों का स्वास्थ्य सुधरेगा, बल्कि महिलाएँ भी आर्थिक रूप से मजबूत होकर समाज में अपनी सक्रिय भूमिका निभा पाएंगी। यह पहल आने वाले समय में अन्य जिलों के लिए एक सफल मॉडल साबित हो सकती है।
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