‘मौत की सड़क’ पर ग्रामीणों ने खुद उठाया जिम्मा प्रशासन की लापरवाही उजागर, लोगों ने कहा “अब अपने दम पर सुधारेंगे हालात”

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले से एक प्रेरणादायक लेकिन कड़वी सच्चाई सामने आई है।
जहाँ प्रशासन वर्षों से सड़क निर्माण और मरम्मत के वादे करता रहा, वहीं ग्रामीणों ने अब खुद कुदाल, फावड़ा और गिट्टी उठाकर सड़क सुधारने का जिम्मा ले लिया।
यह सड़क स्थानीय लोगों के बीच ‘मौत की सड़क’ के नाम से मशहूर हो चुकी है, क्योंकि हर कुछ दिनों में यहाँ दुर्घटनाएँ, घायल और कभी-कभी मौतें तक होती हैं।
‘मौत की सड़क’ पर ग्रामीणों ने खुद ही सड़क मरम्मत का ज़िम्मा लिया, प्रशासन की लापरवाही उजागर। https://mpcg.ndtv.in/
घटना कहाँ की है

यह मामला रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ विकासखंड के अंतर्गत आने वाले सोनाझरिया–बरमकेला मार्ग का है।
यह सड़क करीब 12 किलोमीटर लंबी है और आसपास के कई गांवों को जोड़ती है।
यह मार्ग स्थानीय किसानों, छात्रों, मजदूरों और व्यापारियों की जीवनरेखा है, क्योंकि इसी रास्ते से बाजार, स्कूल और स्वास्थ्य केंद्र तक पहुँचना संभव है।
लेकिन बीते दो वर्षों से यह सड़क गड्ढों और दलदल में तब्दील हो चुकी है।
मानसून के दौरान तो यह सड़क नाले जैसी हालत में आ जाती है।
“सड़क नहीं, मौत का जाल है ये” ग्रामीणों का आक्रोश

गांव के निवासी रमेश साहू कहते हैं —
“सरकारी अफसर केवल निरीक्षण के नाम पर आते हैं, फोटो खिंचवाते हैं और चले जाते हैं। लेकिन हमारी सड़क की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। बच्चों को स्कूल पहुँचाना मुश्किल हो गया है, और बीमार व्यक्ति को अस्पताल ले जाना तो जैसे मौत से जंग लड़ने जैसा है।”
इस सड़क पर पिछले छह महीनों में 8 से अधिक दुर्घटनाएँ हो चुकी हैं, जिनमें 3 लोगों की मौत हो चुकी है।
इसी वजह से अब लोग इसे ‘मौत की सड़क’ कहने लगे हैं।
ग्रामीणों ने खुद बनाई योजना
जब बार-बार शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो गांव के लोगों ने खुद सड़क मरम्मत की जिम्मेदारी लेने का निर्णय लिया।
उन्होंने पंचायत भवन में बैठक बुलाकर यह तय किया कि –
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हर परिवार से ₹100 से ₹200 तक चंदा लिया जाएगा।
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पुरुष, महिला, बुजुर्ग और युवा – सभी सप्ताह में दो घंटे श्रमदान करेंगे।
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गिट्टी, मिट्टी और रेत स्थानीय स्तर पर इकट्ठी की जाएगी।
इसके बाद ग्रामीणों ने “हमारी सड़क, हमारी जिम्मेदारी” नाम से अभियान शुरू किया।
श्रमदान का अद्भुत दृश्य
रविवार की सुबह जैसे ही सूरज निकला, गाँव के दर्जनों लोग फावड़ा, बेलचा, ट्रॉली और टोकरी लेकर सड़क पर उतर आए।
महिलाएँ गड्ढों में मिट्टी भरने में जुटीं, बच्चे पानी लाने में मदद कर रहे थे और बुजुर्ग मार्गदर्शन दे रहे थे।
यह नज़ारा किसी सरकारी कार्यक्रम से ज्यादा जन-सहभागिता का उत्सव लग रहा था।
ग्रामीणों ने सड़क की 5 किलोमीटर लंबाई तक गड्ढों को भर दिया, पानी निकासी के लिए छोटे नाले बनाए और जहाँ संभव हुआ, वहाँ पत्थर बिछाए।
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो
किसी ग्रामीण ने इस श्रमदान का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर साझा किया, जो तेज़ी से वायरल हो गया।
वीडियो में लोग प्रशासन को लापरवाह और असंवेदनशील बताते हुए कह रहे हैं –
“अगर सरकार हमें सुविधाएँ नहीं दे सकती, तो हमें अपने दम पर बनाना होगा रास्ता।”
यह वीडियो जिले के अधिकारियों और मीडिया तक पहुँचा, जिसके बाद मामला चर्चा में आ गया।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
जब यह मामला सुर्खियों में आया, तब जनपद पंचायत और PWD विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे।
उन्होंने कहा कि सड़क का टेंडर पहले ही स्वीकृत हो चुका है, लेकिन तकनीकी कारणों और बारिश के चलते काम रुका हुआ था।
अधिकारियों ने भरोसा दिलाया कि “अगले माह से मरम्मत कार्य शुरू किया जाएगा।”
हालाँकि ग्रामीणों का कहना है कि यह वही पुराना वादा है, जो हर साल सुनने को मिलता है, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं होता।
स्थानीय जनप्रतिनिधियों पर भी सवाल
गांव के लोगों का गुस्सा केवल प्रशासन पर नहीं, बल्कि जनप्रतिनिधियों पर भी है।
गांव की एक महिला, सुनीता देवी, कहती हैं —
“हमारे विधायक और सरपंच चुनाव के वक्त हर घर आते हैं, लेकिन अब किसी को हमारी सड़क दिखाई नहीं देती। जब हमने खुद मरम्मत शुरू की, तब सबको शर्म आनी चाहिए।”
इस मुद्दे पर स्थानीय युवाओं ने #FixOurRoadRaigarh नाम से सोशल मीडिया अभियान भी शुरू किया है।
सड़क की तकनीकी स्थिति
PWD इंजीनियरों के मुताबिक, यह सड़क 2016 में बनाई गई थी और तब से अब तक इसकी कोई बड़ी मरम्मत नहीं हुई।
सड़क पर डामर पूरी तरह उखड़ चुका है, और जगह-जगह 1–2 फीट गहरे गड्ढे बन गए हैं।
वर्षा ऋतु में गाड़ियों के फिसलने और पलटने की घटनाएँ आम हो चुकी हैं।
कुछ जगहों पर तो स्कूल बसें और एंबुलेंस तक नहीं पहुँच पा रहीं।
दुर्घटनाओं का काला रिकॉर्ड
पिछले दो वर्षों में इस सड़क पर कई बड़ी दुर्घटनाएँ दर्ज हुई हैं:
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एक बाइक सवार युवक की मौके पर मौत (जनवरी 2024)
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ऑटो पलटने से महिला गंभीर रूप से घायल (अप्रैल 2025)
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स्कूल से लौट रहे बच्चों का वाहन कीचड़ में फंसा, ड्राइवर को करंट लगा (जुलाई 2025)
इन घटनाओं ने इस सड़क को ‘मौत की सड़क’ का नाम दे दिया।
गांव वालों की मांग
ग्रामीणों ने प्रशासन से कुछ ठोस माँगें रखी हैं –
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सड़क की पूरी मरम्मत और ऊँचाईकरण।
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वर्षा जल निकासी की उचित व्यवस्था।
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हर 500 मीटर पर सड़क सुरक्षा संकेतक।
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खराब सड़कों पर ठेकेदारों की जवाबदेही तय करने का नियम।
प्रदेश में ऐसी सड़कों की संख्या चिंताजनक
छत्तीसगढ़ में वर्तमान में 5,000 किमी से अधिक ग्रामीण सड़कों की हालत खराब बताई जाती है।
रायगढ़, कोरबा, बलरामपुर और कांकेर जिलों में सबसे अधिक शिकायतें दर्ज हैं।
विकास कार्यों की समीक्षा बैठकों में भी सड़क मरम्मत की धीमी रफ्तार पर सवाल उठाए जाते रहे हैं।
यह घटना दर्शाती है कि नीचे तक जवाबदेही की कमी और प्रशासनिक सुस्ती किस तरह आम नागरिकों को खुद ही समाधान खोजने पर मजबूर कर रही है।
विशेषज्ञों की राय
विकास विशेषज्ञ डॉ. एस.के. पांडे कहते हैं —
“यह घटना केवल प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि सामुदायिक चेतना का उदाहरण भी है।
जब जनता खुद आगे आती है, तो यह सरकार के लिए संकेत है कि अब भरोसा टूट चुका है।”
वे आगे कहते हैं कि यदि ऐसे श्रमदान प्रयासों को सरकारी योजना से जोड़ा जाए, तो यह ग्रामीण विकास का नया मॉडल बन सकता है।
“हमारे बच्चे अब स्कूल समय पर पहुँचते हैं” — ग्रामीणों की खुशी
सड़क की मरम्मत के बाद ग्रामीणों ने राहत की सांस ली है।
अब बाइक, साइकिल और छोटी गाड़ियाँ आराम से गुजर सकती हैं।
गांव की एक छात्रा पूजा यादव ने मुस्कुराते हुए कहा —
“पहले हमें स्कूल जाने में 40 मिनट लगते थे, अब सिर्फ 15 मिनट में पहुँच जाते हैं।”
यह बदलाव ग्रामीणों के सामूहिक प्रयास और एकजुटता की मिसाल है।
सीख और संदेश
यह घटना हमें दो महत्वपूर्ण संदेश देती है —
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जनता की एकता से असंभव भी संभव है।
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प्रशासन की लापरवाही हमेशा नहीं चल सकती।
ग्रामीणों ने यह साबित कर दिया कि अगर सरकार सो रही है, तो जनता जाग सकती है।
लेकिन यह भी सच है कि उन्हें ऐसा करने पर मजबूर नहीं होना चाहिए — क्योंकि सड़क बनाना सरकार का कर्तव्य है, जनता का नहीं।
रायगढ़ की ‘मौत की सड़क’ की कहानी दो चेहरों को उजागर करती है —
एक तरफ प्रशासनिक लापरवाही और राजनीतिक उदासीनता,
तो दूसरी तरफ जनता की जागरूकता और आत्मनिर्भरता।
यह घटना सरकार के लिए चेतावनी है, और समाज के लिए प्रेरणा।
जब तक जिम्मेदार अधिकारी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाएँगे, तब तक ग्रामीणों का “श्रमदान” भारत के विकास की मजबूरी बनकर रहेगा।
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