रायगढ़ में अवैध शराब बिकने पर 50,000 का जुर्माना – ग्रामीणों ने की सामूहिक कार्रवाई
घटना का विवरण
रायगढ़ जिले के एक ग्रामीण क्षेत्र में लंबे समय से अवैध शराब बिक्री की शिकायतें मिल रही थीं।
स्थानीय लोगों ने कई बार पुलिस और प्रशासन को सूचना दी, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
आख़िरकार जब हालात बेकाबू हो गए — और गाँव में नशे की वजह से झगड़े, हिंसा और पारिवारिक कलह बढ़ने लगी — तब ग्रामीणों ने खुद मोर्चा संभाला।
पिछले सप्ताह, ग्रामीणों ने एक साथ मिलकर अवैध शराब बेचने वाले ठिकानों पर धावा बोला और सूचना जिला प्रशासन को दी।
इसके बाद आबकारी विभाग ने छापा मारकर बड़ी मात्रा में देसी शराब जब्त की और शराब विक्रेताओं पर ₹50,000 का जुर्माना लगाया।
प्रशासन की कार्रवाई
सूचना मिलते ही आबकारी विभाग की टीम मौके पर पहुंची और जांच में पाया कि गांव के किनारे एक झोपड़ी में गैरकानूनी रूप से महुआ शराब का उत्पादन और बिक्री की जा रही थी।
इस दौरान लगभग 120 लीटर कच्ची शराब और 50 किलो महुआ लाहन (कच्चा पदार्थ) बरामद हुआ।
अधिकारियों ने मौके पर ही शराब बनाने के उपकरण जब्त किए और आरोपी पर छत्तीसगढ़ आबकारी अधिनियम की धारा 34(1)(क) के तहत मामला दर्ज कर ₹50,000 का जुर्माना लगाया।
साथ ही, दो लोगों को हिरासत में लिया गया है और आगे की जांच जारी है।
अवैध शराब बिकने पर जुर्माना और ग्रामीण इकठ्ठे होकर कार्रवाई
रायगढ़ के छिछोर-उमरिया इलाके में अवैध शराब के खिलाफ ग्रामीणों ने जुर्माना लगाने की पहल की। Dainik Bhaskar
ग्रामीणों की भूमिका – “अब हम खुद जागरूक हैं”
इस कार्रवाई में सबसे अहम भूमिका गांव के लोगों की रही।
गांव के युवाओं, महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों ने मिलकर एक “शराब मुक्त ग्राम समिति” बनाई और प्रशासन से सहयोग की अपील की।
महिला समूहों ने कहा
“हमारे पति और बेटे नशे में घर आकर झगड़ा करते थे। बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ रहा था। अब हमने ठान लिया है कि गांव में कोई शराब नहीं बिकेगी।”
ग्रामीणों ने एकजुट होकर शराब बेचने वालों के खिलाफ बहिष्कार और सामाजिक दबाव की रणनीति अपनाई।
उन्होंने तय किया कि कोई भी व्यक्ति अगर अवैध शराब की जानकारी देगा, तो उसे ग्राम पंचायत की ओर से सम्मानित किया जाएगा।
अवैध शराब का बढ़ता खतरा
अवैध शराब न केवल कानून के खिलाफ है, बल्कि मानव जीवन के लिए भी खतरनाक होती है।
कच्ची शराब में मेथनॉल (Methanol) जैसे जहरीले तत्व होते हैं जो कई बार अंधेपन, अंग विकार या मौत का कारण बन जाते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में रायगढ़ सहित छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों में भी अवैध शराब से हुई मौतों के मामले सामने आए हैं।
ऐसे में प्रशासन और जनता दोनों की जिम्मेदारी है कि इस पर रोक लगाई जाए।
जुर्माने और कानूनी प्रावधान
छत्तीसगढ़ आबकारी अधिनियम के अनुसार
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अवैध शराब बनाना या बेचना अपराध है।
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दोषी पाए जाने पर ₹50,000 तक जुर्माना और 6 महीने से 3 साल तक की सजा हो सकती है।
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शराब के उत्पादन में इस्तेमाल उपकरण भी जब्त कर नष्ट किए जा सकते हैं।
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पंचायत स्तर पर भी ग्राम सभा को यह अधिकार है कि वह शराब विक्रेताओं पर सामाजिक कार्रवाई करे।
इस प्रावधान का पालन करते हुए ही रायगढ़ प्रशासन ने त्वरित जुर्माना लगाया और मामले को न्यायिक प्रक्रिया में आगे बढ़ाया।
महिलाओं की आवाज – नशे के खिलाफ सबसे बड़ी ताकत
गांव की महिलाओं ने इस आंदोलन को जन-आंदोलन का रूप दे दिया।
उन्होंने कहा कि नशा न केवल परिवार तोड़ता है, बल्कि समाज की जड़ें भी कमजोर करता है।
महिला स्व-सहायता समूहों ने तय किया कि वे गांव में किसी भी व्यक्ति को अवैध शराब बेचने या पीने नहीं देंगी।
उन्होंने शराबबंदी के लिए घर-घर जाकर लोगों को समझाया, और शराब विक्रेताओं से खुलकर कहा —
“अब गांव में यह धंधा नहीं चलेगा, चाहे इसके लिए हमें धरना ही क्यों न देना पड़े।”
यह देखकर प्रशासन ने भी ग्रामीणों के हौसले की सराहना की और ग्राम स्तर पर निगरानी समितियाँ गठित करने की योजना बनाई।
अवैध शराब के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
| प्रभाव | विवरण |
|---|---|
| सामाजिक | नशे की वजह से झगड़े, हिंसा, घरेलू कलह और अपराध बढ़ते हैं। |
| आर्थिक | गरीब परिवारों की आय का बड़ा हिस्सा शराब पर खर्च होता है, जिससे गरीबी का चक्र बना रहता है। |
| स्वास्थ्य | कच्ची शराब से लीवर, किडनी और आंखों पर गंभीर असर पड़ता है। |
| शिक्षा पर असर | नशे की वजह से बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया जाता। |
प्रशासन और जनता के बीच नई साझेदारी
इस कार्रवाई ने प्रशासन और ग्रामीणों के बीच भरोसे का रिश्ता मजबूत किया है।
पहले जहां लोग शिकायत करने से डरते थे, अब वे खुलकर सूचना देने लगे हैं।
आबकारी विभाग ने कहा है कि भविष्य में ऐसी सूचना देने वालों की पहचान गुप्त रखी जाएगी।
ग्रामीणों की पहल से अब पास के कई गांवों में भी इसी तरह की “शराब मुक्त अभियान” शुरू किए जा रहे हैं।
विशेषज्ञों की राय
सामाजिक विश्लेषकों का कहना है कि केवल कानून से नहीं, बल्कि जनजागरूकता से ही शराबबंदी सफल हो सकती है।
अगर ग्रामीण स्वयं जागरूक होकर अवैध शराब के खिलाफ एकजुट हों, तो प्रशासनिक बोझ भी कम होगा और समाज स्वस्थ बनेगा।
डॉ. ए.के. मिश्रा (सामाजिक कार्यकर्ता) के अनुसार:
“अवैध शराब के खिलाफ आंदोलन तभी प्रभावी होता है जब जनता खुद आगे आती है। यह रायगढ़ की जनता के लिए एक सकारात्मक उदाहरण है।”
आम जनता की भावना
रायगढ़ के ग्रामीण अब इस कार्रवाई को जन-जागरूकता की जीत मान रहे हैं।
लोगों का कहना है कि अब गांव का माहौल पहले से शांत और सुरक्षित है।
बच्चे बिना डर के खेलते हैं, महिलाएँ खुश हैं, और लोग आपसी सहयोग से गांव को सुधार रहे हैं।
गांव के एक बुजुर्ग ने कहा —
“पहले लोग नशे में गाली-गलौज करते थे, अब वही लोग खुद दूसरों को समझा रहे हैं। यह असली बदलाव है।”
जागरूक समाज ही सशक्त समाज
रायगढ़ की यह घटना बताती है कि अगर जनता और प्रशासन मिलकर काम करें, तो किसी भी सामाजिक बुराई को खत्म किया जा सकता है।
अवैध शराब से केवल कानून नहीं, बल्कि समाज की आत्मा भी घायल होती है।
ग्रामीणों की एकजुटता ने साबित कर दिया कि जब लोग अपने अधिकार और जिम्मेदारी समझते हैं, तब कोई भी गलत काम टिक नहीं सकता।
अब यह सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के हर गांव के लिए प्रेरणा है —
“जहां जनता जागरूक होती है, वहां अपराध खुद मिट जाता है।”
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