क्षितिज पर बस्तर युवाओं की सफलता राष्ट्रीय स्तर पर बस्तर के खिलाड़ियों ने बजाया डंका

छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र अक्सर अपनी प्राकृतिक सुंदरता, जनजातीय संस्कृति और ऐतिहासिक परंपराओं के लिए जाना जाता है। लेकिन अब इस भूमि की पहचान केवल अपने जंगलों और हस्तशिल्प तक सीमित नहीं रही — बल्कि यहाँ के युवा अब राष्ट्रीय खेल मंचों पर अपनी मेहनत, हौसले और जुनून से पूरे देश में बस्तर का नाम रोशन कर रहे हैं।
हाल ही में आयोजित पहली राष्ट्रीय जनजातीय कायाकिंग और कैनोइंग चैंपियनशिप में बस्तर के युवाओं ने अपनी प्रतिभा का ऐसा प्रदर्शन किया कि पूरा राज्य गर्व से झूम उठा।
यह प्रतियोगिता राष्ट्रीय जनजातीय खेल प्राधिकरण (National Tribal Sports Authority) और भारतीय कायाकिंग एवं कैनोइंग संघ (IKCA) द्वारा आयोजित की गई थी।
आयोजन स्थल मध्य प्रदेश के भोपाल स्थित अपर लेक (Bhojtal) था, जहाँ देशभर से 18 राज्यों के 300 से अधिक आदिवासी खिलाड़ी शामिल हुए।
बस्तर के युवाओं ने पहले राष्ट्रीय जनजातीय कायाकिंग एवं कैनोइंग चैंपियनशिप में 10 पदक हासिल किए हैं — यह राज्य की खेल-प्रतिभा का उज्ज्वल उदाहरण है। The Times of India
इस चैंपियनशिप का उद्देश्य जनजातीय क्षेत्रों के युवाओं को खेलों में अवसर देना और उन्हें राष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धाओं से जोड़ना था।
बस्तर के खिलाड़ियों की ऐतिहासिक उपलब्धि

छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले से आए खिलाड़ियों ने इस प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन करते हुए 10 पदक अपने नाम किए —
जिसमें 4 स्वर्ण, 3 रजत और 3 कांस्य पदक शामिल हैं।
यह उपलब्धि इसलिए और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अधिकांश खिलाड़ी ऐसे क्षेत्रों से आते हैं जहाँ खेल सुविधाएँ बेहद सीमित हैं।
फिर भी, इन युवाओं ने अपने जुनून और मेहनत से यह साबित कर दिया कि प्रतिभा को संसाधनों की नहीं, संकल्प की आवश्यकता होती है।
प्रमुख विजेता खिलाड़ी

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ललिता नाग (जगदलपुर) – महिलाओं की K-1 500 मीटर रेस में स्वर्ण पदक।
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राजू कश्यप (बस्तर) – पुरुषों की C-2 1000 मीटर रेस में स्वर्ण पदक।
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सोनम मंडावी (दंतेवाड़ा) – K-2 मिश्रित 200 मीटर रेस में रजत पदक।
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मनोज कुंजाम (कोंडागांव) – C-1 500 मीटर में कांस्य पदक।
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टीम छत्तीसगढ़ – कुल टीम स्कोर में तीसरे स्थान पर रही।
इन खिलाड़ियों ने कठिन परिस्थितियों के बावजूद अथक अभ्यास किया और अब उनके नाम राज्य के खेल इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो चुके हैं।
प्रशिक्षण और तैयारी
इन खिलाड़ियों का प्रशिक्षण इंद्रावती नदी और दलपत सागर जैसे प्राकृतिक जलाशयों पर कराया गया था।
प्रशिक्षक कोच मनोज ठाकुर ने बताया कि बस्तर के युवाओं में जल क्रीड़ा के लिए स्वाभाविक कौशल है, क्योंकि वे बचपन से ही नदियों के किनारे बड़े होते हैं।
“यह जीत केवल पदक की नहीं, बल्कि उन युवाओं की कहानी है जिन्होंने अपनी सीमाओं को पार किया,” — कोच मनोज ठाकुर।
राज्य सरकार का योगदान
छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल के वर्षों में जनजातीय खेल विकास कार्यक्रम (Tribal Sports Development Mission) शुरू किया है।
इस मिशन के तहत बस्तर, सरगुजा, कांकेर और रायगढ़ में विशेष प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं।
खेल मंत्री डॉ. लक्ष्मण तिवारी ने कहा
“बस्तर के युवाओं की यह सफलता यह साबित करती है कि सही दिशा और संसाधन मिलें तो हमारे आदिवासी खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी छा सकते हैं।”
राज्य सरकार ने विजेता खिलाड़ियों को सम्मानित करने की घोषणा की है और उन्हें आगामी राष्ट्रीय खेल अकादमी, नवा रायपुर में विशेष प्रशिक्षण देने का प्रस्ताव दिया है।
जनजातीय खेल संस्कृति का पुनर्जागरण
बस्तर क्षेत्र हमेशा से खेलों का केंद्र रहा है — पारंपरिक खेल जैसे गेंड़ी दौड़, कुस्ती, बेंत दौड़, और तीरंदाजी यहाँ के लोकजीवन का हिस्सा हैं।
लेकिन कायाकिंग और कैनोइंग जैसे आधुनिक खेलों में उनकी भागीदारी यह दिखाती है कि जनजातीय समाज भी अब नई दिशाओं की ओर अग्रसर है।
ये खेल न केवल शारीरिक बल का प्रतीक हैं बल्कि टीमवर्क, अनुशासन और मानसिक संतुलन का भी सशक्त माध्यम हैं।
महिलाओं की बढ़ती भागीदारी
इस बार की प्रतियोगिता की सबसे खास बात यह रही कि बस्तर की लड़कियों ने पुरुष खिलाड़ियों से भी बेहतर प्रदर्शन किया।
ललिता नाग और सोनम मंडावी जैसी महिला खिलाड़ियों ने यह दिखाया कि ग्रामीण और जनजातीय समाज की बेटियाँ अब किसी भी मंच पर पीछे नहीं हैं।
“मैं चाहती हूँ कि बस्तर की हर बेटी नदी में नाव चलाने से न डरे, बल्कि देश का नाम रोशन करे।” — ललिता नाग, स्वर्ण पदक विजेता।
स्थानीय समुदाय का समर्थन
इन खिलाड़ियों की सफलता के पीछे स्थानीय लोगों की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही।
गाँवों के बुज़ुर्गों और शिक्षकों ने बच्चों को प्रोत्साहित किया, उनके अभ्यास के दौरान खाना-पानी की व्यवस्था की, और उनके सफर का खर्चा जुटाया।
बस्तर के लोगों ने सामूहिक रूप से यह दिखाया कि एकजुटता और सहयोग से बड़े लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं।
मीडिया और सोशल मीडिया में सराहना
बस्तर के खिलाड़ियों की इस सफलता की खबर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुई।
#BastarPride और #ChhattisgarhSports जैसे हैशटैग ट्विटर और इंस्टाग्राम पर ट्रेंड करने लगे।
लोगों ने इन युवाओं को “नए बस्तर के ब्रांड एंबेसडर” बताया।
चुनौतियाँ अब भी बनी हैं
हालाँकि यह सफलता प्रेरणादायक है, लेकिन अभी भी कई चुनौतियाँ बाकी हैं —
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खेल उपकरणों और बोटिंग गियर की कमी।
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प्रशिक्षण केंद्रों तक पहुँचने में कठिनाई।
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खिलाड़ियों के लिए नियमित पोषण और फिटनेस सुविधा का अभाव।
सरकार और निजी संस्थाएँ मिलकर अगर इन समस्याओं पर ध्यान दें, तो बस्तर की प्रतिभा आने वाले समय में ओलंपिक स्तर तक पहुँच सकती है।
भविष्य की संभावनाएँ
अब राज्य सरकार की योजना है कि अगले वर्ष बस्तर में ही “Tribal Water Sports Academy” की स्थापना की जाए।
इसके लिए दलपत सागर (जगदलपुर) को विकसित किया जा रहा है, जहाँ स्थायी जल क्रीड़ा प्रशिक्षण केंद्र बनेगा।
इसके माध्यम से हर साल लगभग 200 खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य है।
बस्तर के युवाओं की यह सफलता केवल खेल की नहीं, बल्कि आत्मविश्वास की जीत है।
इन युवाओं ने यह साबित किया है कि अगर अवसर और दिशा मिले तो छत्तीसगढ़ के जनजातीय इलाकों से भी विश्वस्तरीय खिलाड़ी निकल सकते हैं।
यह जीत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है —
कि चाहे संसाधन सीमित हों, पर सपनों की उड़ान कभी सीमित नहीं होती।
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