बस्तर की झाँकी राष्ट्रीय एकता परेड के लिए चयनित परंपरा, संस्कृति और एकता का प्रतीक
छत्तीसगढ़ के गौरवशाली क्षेत्र बस्तर ने एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सांस्कृतिक पहचान दर्ज की है।
2025 में आयोजित होने वाली राष्ट्रीय एकता परेड (National Unity Parade) में बस्तर की झाँकी का चयन हुआ है।
यह झाँकी न केवल छत्तीसगढ़ की लोक-संस्कृति और परंपरा का प्रतिनिधित्व करेगी, बल्कि ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को भी जीवंत रूप में प्रस्तुत करेगी।
बस्तर की झाँकी राष्ट्रीय एकता परेड के लिए चयनित — “बदलाव की राह संघर्ष से विकास” विषय पर आधारित बस्तर का राज्य-प्रदर्शन 31 अक्टूबर को गुजरात में होने वाली एकता परेड में शामिल होगा। The Times of India
परेड का आयोजन कब और कहाँ होगा?
राष्ट्रीय एकता परेड 2025 का आयोजन 31 अक्टूबर को नई दिल्ली के कर्तव्य पथ (Kartavya Path) पर किया जाएगा।
यह परेड ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ (National Unity Day) के उपलक्ष्य में आयोजित होती है, जो भारत के लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
इस वर्ष परेड का विषय है —
“विविधता में एकता – संस्कृति के संग भारत” (Unity in Diversity – Culture Unites India)
बस्तर झाँकी की विशेष थीम
बस्तर की झाँकी का शीर्षक है —
“माटी, महुआ और मां दंतेश्वरी बस्तर की आत्मा”
इस थीम में बस्तर की आदिवासी संस्कृति, देवी पूजा, लोकनृत्य और जंगल से जुड़े जीवन को कलात्मक रूप में दिखाया जाएगा।
झाँकी की मुख्य झलकियाँ
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मां दंतेश्वरी मंदिर (दंतेवाड़ा) — श्रद्धा और शक्ति का प्रतीक।
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ढोल-नगाड़ों की गूंज और गोंडी नृत्य — उत्सव और एकता की झलक।
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महुआ वृक्ष और बस्तर का जंगल — प्रकृति से जुड़ी जीवनशैली।
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लोहंडीगुड़ा के कारीगर और बांस कला — स्वदेशी शिल्प का उदाहरण।
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झूमर और ककसार नृत्य रूप — महिला शक्ति और आनंद की अभिव्यक्ति।
चयन प्रक्रिया कैसे हुई?
राष्ट्रीय एकता परेड में भाग लेने के लिए देशभर से 35 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की झाँकियाँ प्रस्तावित की गई थीं।
इनमें से सिर्फ 15 झाँकियाँ को अंतिम रूप दिया गया, जिनमें छत्तीसगढ़ के बस्तर को शामिल किया गया।
चयन प्रक्रिया के चरण
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राज्य स्तरीय प्रस्ताव: संस्कृति विभाग, रायपुर ने बस्तर की झाँकी का प्रस्ताव भेजा।
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प्रारंभिक स्क्रीनिंग: केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की टीम ने वीडियो और मॉडल देखा।
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अंतिम चयन: 12 सदस्यीय जूरी ने कला, मौलिकता और संदेश के आधार पर झाँकियों को चुना।
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साइट विजिट: दिल्ली में झाँकी का रिहर्सल प्रदर्शन हुआ, जिसके बाद इसे स्वीकृति मिली।
झाँकी निर्माण में कौन शामिल हैं?
इस झाँकी का डिज़ाइन और निर्माण कार्य छत्तीसगढ़ संस्कृति विभाग की देखरेख में हो रहा है।
मुख्य कलाकार और निर्देशक हैं —
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श्री सुनील यादव (मुख्य डिज़ाइनर)
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सुषमा नेताम (लोककला सलाहकार)
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लखमा कश्यप (बस्तर नर्तक दल के प्रमुख)
करीब 45 लोक कलाकार, 15 पारंपरिक संगीतकार, और 10 शिल्पकार इस झाँकी के निर्माण में प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं।
झाँकी में क्या दिखेगा?
प्रारंभिक भाग
झाँकी के आगे के हिस्से में मां दंतेश्वरी मंदिर की कलात्मक प्रतिकृति होगी। मंदिर के चारों ओर दीपमालाएँ और पीत वस्त्रधारी महिलाएँ “जय मां दंतेश्वरी” के गीत गाएँगी।
मध्य भाग
यह हिस्सा बस्तर की लोक-संस्कृति और दैनिक जीवन को प्रदर्शित करेगा। महिलाएँ महुआ फूल चुनती दिखाई देंगी, बच्चे पारंपरिक खेल खेलते नज़र आएँगे, और पुरुष नर्तक गोंडी नृत्य करते दिखेंगे।
अंतिम भाग
झाँकी के अंतिम हिस्से में “एकता का वृक्ष” बनाया गया है, जिसकी शाखाएँ भारत के विभिन्न राज्यों की लोक कलाओं से सजी हैं — यह संकेत देता है कि भारत की विविधता ही उसकी ताकत है।
संगीत और नृत्य की भूमिका
झाँकी के दौरान “बस्तर महुआ गीत” और “जंगल गाथा” जैसे लोकगीतों की धुन बजेगी।
मुरीया और गोंड जनजातियों के कलाकार पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत करेंगे।
ढोल, मंदर, टिमकी और बांसुरी जैसे लोक वाद्य इस झाँकी की आत्मा होंगे।
संगीत निर्देशन प्रसिद्ध लोक संगीतकार सुदर्शन बघेल ने किया है।
बस्तर की झाँकी क्यों खास है?
बस्तर की झाँकी सिर्फ एक सांस्कृतिक प्रदर्शन नहीं, बल्कि प्रकृति, परंपरा और एकता का दर्शन है।
विशेषताएँ
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पर्यावरण संदेश: जंगल और जनजातियों का संतुलन।
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धार्मिक भावना: मां दंतेश्वरी की आराधना।
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सामाजिक एकता: सभी जनजातियों का सामूहिक योगदान।
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स्वदेशी कला: बांस, मिट्टी और लकड़ी से बनी सामग्री।
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जीवंतता: झाँकी में हर कलाकार असली वेशभूषा और रीति-रिवाज के साथ प्रस्तुत होगा।
सरकार और समाज की प्रतिक्रिया
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा:
“यह छत्तीसगढ़ के लिए गर्व का क्षण है। बस्तर की झाँकी पूरे देश को यह संदेश देगी कि हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान है।”
संस्कृति मंत्री अमितेश शर्मा ने बताया कि झाँकी में ‘हर घर संस्कृति’ अभियान का संदेश भी जोड़ा गया है, ताकि देशभर में छत्तीसगढ़ी लोककला को पहचान मिले।
बस्तर के स्थानीय कलाकारों ने इसे “हमारी आत्मा की प्रस्तुति” बताया।
झाँकी की तैयारी की झलक
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जगदलपुर के चित्रकूट मैदान में झाँकी की रिहर्सल चल रही है।
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महिला कलाकार पारंपरिक पोशाकों में नृत्य अभ्यास कर रही हैं।
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12 फीट ऊँचा “एकता वृक्ष” तैयार हो चुका है।
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झाँकी के पीछे LED पैनल लगाया गया है जो “बस्तर का विकास और जनजीवन” दर्शाएगा।
राष्ट्रीय पहचान और बस्तर की भूमिका
बस्तर की झाँकी को चयनित किया जाना इस बात का प्रमाण है कि भारत की विविध संस्कृति में आदिवासी समाज की परंपराएँ भी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।
बस्तर ने हमेशा अपने लोकनृत्य, हस्तशिल्प और पर्यावरण-संरक्षण के माध्यम से सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा दिया है।
राष्ट्रीय मंच पर यह झाँकी भारत के हर नागरिक को यह संदेश देगी —
“हम अलग-अलग हैं, पर एक हैं।”
बस्तर की संस्कृति का महत्व
बस्तर की परंपराएँ सदियों पुरानी हैं। यहाँ के त्योहार, जैसे —
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बस्तर दशहरा,
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गोंडी नृत्य उत्सव,
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मुरिया मेला,
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छिंदिया पर्व
— इन सबमें सामूहिकता और साझेपन की भावना झलकती है।
इन परंपराओं को झाँकी में सम्मिलित करना, आदिवासी समाज को राष्ट्रीय पहचान दिलाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
बस्तर झाँकी का राष्ट्रीय प्रभाव
इस झाँकी से न केवल बस्तर को पहचान मिलेगी बल्कि —
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स्थानीय कलाकारों को राष्ट्रीय स्तर पर मंच मिलेगा,
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पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा,
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और छत्तीसगढ़ की कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलने का मार्ग खुलेगा।
कई कला समीक्षकों ने इसे “साल की सबसे जीवंत और भावनात्मक झाँकी” बताया है।
भविष्य की योजनाएँ
राज्य सरकार ने घोषणा की है कि झाँकी के बाद बस्तर की कला और नृत्य को लेकर एक स्थायी “संस्कृति संग्रहालय” बनाया जाएगा।
इसके अलावा, झाँकी में भाग लेने वाले कलाकारों को राज्य सांस्कृतिक सम्मान दिया जाएगा।
बस्तर की झाँकी का चयन केवल एक राज्य की जीत नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता का उत्सव है।
यह झाँकी हमें यह याद दिलाती है कि भारत की आत्मा उसकी विविधता में बसती है — और जब बस्तर की मिट्टी, संगीत और संस्कृति राष्ट्रीय मंच पर गूँजती है, तो पूरा देश एकता के रंग में रंग जाता है।
“बस्तर की झाँकी, भारत की झांकी — जहां हर रंग में एकता की चमक है।”
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