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“ छत्तीसगढ़ में सरकारी और जीवनोपयोगी कलाओं की नई शुरुआत 2025”


 “सरकारी और जीवनोपयोगी कलाओं की शुरुआत” योजना क्या है?

इस योजना का मुख्य उद्देश्य है —

छत्तीसगढ़ की पारंपरिक कलाओं को तकनीक, प्रशिक्षण और विपणन के माध्यम से आत्मनिर्भरता का साधन बनाना।

यह योजना छत्तीसगढ़ राज्य हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास निगम के सहयोग से लागू की जा रही है।

सरकारी और जीवनोपयोगी कलाओं की शुरुआत — छत्तीसगढ़ में कोसा रेशम बुनाई को पुनर्जीवित करने के लिए कार्यक्रम और अनुदान योजनाएं। The Times of India+1

योजना की प्रमुख बातें

  1. कला प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना
    रायगढ़, बस्तर, बिलासपुर और रायपुर जैसे जिलों में कला प्रशिक्षण केंद्र खोले जा रहे हैं।

  2. महिला समूहों को प्राथमिकता
    ग्रामीण महिलाओं को कोसा बुनाई और सिलाई कार्यों में प्रशिक्षित किया जा रहा है।

  3. युवाओं के लिए रोजगार सृजन
    बेरोजगार युवाओं को ढोकरा कला, बांस शिल्प, और धातु कला में प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार के अवसर दिए जा रहे हैं।

  4. सरकारी खरीद नीति
    राज्य सरकार ने इन कलाओं से बने उत्पादों को सरकारी उपहार, कार्यालय सजावट, और पर्यटन केंद्रों में इस्तेमाल करने की नीति अपनाई है।

  5. ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफ़ॉर्म
    CG Art Connect” नामक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म तैयार किया गया है, जहां से कलाकार सीधे अपने उत्पाद बेच सकेंगे।


 कोसा रेशम – छत्तीसगढ़ की पहचान

कोसा रेशम छत्तीसगढ़ की आत्मा कही जाती है। रायगढ़, कोरबा, जांजगीर-चांपा और बिलासपुर क्षेत्र में इसकी बुनाई का लंबा इतिहास है।
सरकार अब इस पारंपरिक कला को फिर से जीवंत करने के लिए

इससे न केवल महिलाओं को रोजगार मिलेगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था दोनों को मजबूती मिलेगी।


 ढोकरा कला और बस्तर की शिल्प परंपरा

बस्तर क्षेत्र की ढोकरा कला अपनी सुंदरता और पारंपरिक तकनीक के लिए जानी जाती है। यह कला लॉस्ट वैक्स तकनीक से की जाती है, जिसमें पीतल और धातु से मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।

सरकार ने अब “ढोकरा हब परियोजना” की शुरुआत की है —

इस पहल से लगभग 2500 से अधिक पारंपरिक कलाकारों को रोजगार और पहचान मिलेगी।


 बांस, टेराकोटा और मिट्टी कला का पुनरुद्धार

छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में बांस की वस्तुएँ, मिट्टी के बर्तन, दीये और सजावटी मूर्तियाँ पारंपरिक जीवन का हिस्सा रहे हैं।

अब “ग्राम कला मिशन” के अंतर्गत सरकार ने तय किया है कि:


 आधुनिक तकनीक से जुड़ाव

राज्य सरकार अब पारंपरिक कलाओं को डिजिटल युग से जोड़ने में जुटी है।


 महिलाओं और युवाओं के लिए अवसर

इस योजना में महिलाओं और युवाओं को प्राथमिक लाभार्थी बनाया गया है।


 आर्थिक प्रभाव और आत्मनिर्भरता

छत्तीसगढ़ सरकार का अनुमान है कि इन योजनाओं से:

इन पहलों से न केवल रोजगार सृजन होगा, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी “स्थायी और आत्मनिर्भर” बन पाएगी।


 पर्यावरण और सतत विकास से जुड़ाव

यह पहल पर्यावरण संरक्षण से भी गहराई से जुड़ी है।


 भविष्य की योजनाएं

राज्य सरकार ने अगले पाँच वर्षों के लिए कुछ बड़े लक्ष्य तय किए हैं:

  1. हर जिले में एक “कला ग्राम” की स्थापना।

  2. राज्य स्तर पर “छत्तीसगढ़ कला महोत्सव” का वार्षिक आयोजन।

  3. अंतरराष्ट्रीय बाजार में “Chhattisgarh Handloom Brand” को प्रमोट करना।

  4. विद्यालयों और कॉलेजों में लोककला प्रशिक्षण पाठ्यक्रम शुरू करना।

  5. कारीगरों के लिए पेंशन और बीमा योजना लागू करना।

सरकारी और जीवनोपयोगी कलाओं की शुरुआत” न केवल एक योजना है, बल्कि यह संस्कृति और अर्थव्यवस्था के पुनर्जागरण का प्रतीक है।
इस पहल से जहां पारंपरिक कलाओं को नया जीवन मिल रहा है, वहीं कलाकारों को आत्मसम्मान और आर्थिक सुरक्षा भी प्राप्त हो रही है।

यह पहल दर्शाती है कि विकास केवल औद्योगिकीकरण से नहीं, बल्कि स्थानीय कला, परंपरा और लोगों की सहभागिता से भी संभव है।

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