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“अबूझमाड़ और उत्तरी बस्तर नक्सल मुक्त घोषित — छत्तीसगढ़ में शांति की नई सुबह 2025”

एक ऐतिहासिक मोड़

छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में नक्सलवाद (Left Wing Extremism, LWE) दशकों से एक बड़ी समस्या रही है। जंगलों, विस्थापित आदिवासी समुदायों, सीमित पहुंच, गरीबी और शासन की पहुंच की कमी ने नक्सलवाद को बढ़ने का मौका दिया।

16 अक्टूबर 2025 को, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की कि अबूझमाड़ (Abujhmarh) और उत्तरी बस्तर (North Bastar) अब नक्सलवाद से मुक्त क्षेत्रों के रूप में घोषित किए गए हैं।

इस घोषणा का आधार है कि हाल ही में 170 से अधिक नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं, और पिछले कुछ समय में सरकार की सुरक्षा और पुनर्वास नीतियों से विश्वास बढ़ा है।

यह लेख इस घटना के विभिन्न पहलुओं को समझेगा: इतिहास, हालिया घटनाएँ, सरकार की रणनीति, सामाजिक-आर्थिक प्रभाव, चुनौतियाँ और आगे की राह।


नक्सलवाद का इतिहास और अबूझमाड़-उत्तरी बस्तर

  1. नक्सलवाद का उद्भव

    • नक्सलवाद, जिसका नाम “नक्सलबाड़ी” आंदोलन से है, 1960-70 के दशक में भारत के कुछ ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में सामाजिक-आर्थिक असमानता, भूमि विवाद और शासन की अनुपस्थिति के कारण फैला।

    • छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र को आरंभ से ही नक्सलवाद प्रभावित रहा है क्योंकि जंगल, आदिवासी बहुल क्षेत्र, सीमित सड़क और सरकारी सुविधाएँ यहाँ कम थीं।

  2. अबूझमाड़ की भूमिका

    • अबूझमाड़ एक पठारी-जंगल इलाका है जो भूगोल और कठिन सड़क पहुँच के चलते सुरक्षा बलों के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है।

    • इस क्षेत्र ने नक्सलियों के लिए ‘सुरक्षित ठिकाने’ का काम किया क्योंकि इलाके के बाहर तथा अंदर नियंत्रित प्रयत्नों की कमी थी।

  3. भारत एवं छत्तीसगढ़ सरकार की कोशिशें

    • पिछले कुछ वर्षों में केंद्रीय और राज्य सरकारों ने LWE (Left Wing Extremism) के खिलाफ मिलकर काम किया है।

    • सुरक्षा अभियानों, आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति, विकास कार्यों एवं स्थानीय प्रशासन की पहुँच बढ़ाने की पहल, इन्हीं सब के समावेश से अबूझमाड़ और उत्तरी बस्तर की नक्सल-स्थिति में बदलाव आया है।


हाल की घटनाएँ आत्मसमर्पण एवं नक्सल मुक्त घोषित करना

  1. आत्मसमर्पणों की लहर

    • उसी दिन, जब घोषणा हुई, 170 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया।

    • इसके पहले एक दिन पहले ही, अन्य जिलों में 27 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था, और महाराष्ट्र में भी 61 नक्सलियों ने हथियार डाल दिए।

  2. सरकार की घोषणाएँ

    • केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट और सार्वजनिक वक्तव्यों में कहा कि अबूझमाड़ और उत्तरी बस्तर “एक समय के आतंक के केंद्र” थे, लेकिन अब नक्सलवाद से मुक्त घोषित किए गए हैं।

    • उन्होंने कहा कि केवल दक्षिण बस्तर में नक्सलवाद के कुछ निशान बाकी हैं, उन्हें भी शीघ्र समाप्त किया जाएगा।  सांख्यिकी और डेटा

    • जनवरी 2024 से अब तक करीब 2,100 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, 1,785 गिरफ्तार हुए, और 477 नक्सलियों का सफाया (neutralisation) किया गया है।

    • साथ ही, 258 नक्सलियों ने सिर्फ दो दिनों में हथियार डाल दिए।


सरकार की रणनीति सुरक्षा + विकास + पुनर्वास

इस बड़े बदलाव के पीछे एक समेकित रणनीति काम कर रही है, जिसमें निम्न प्रमुख बातें शामिल हैं:

  1. सिक्योरिटी ऑपरेशन्स (सुरक्षा अभियानों) को तीव्र करना

    • सुरक्षा बलों की अभियान ताकत, खुफिया जानकारी, इलाके में सक्रिय कैंपों की संख्या बढ़ाना।

    • अबूझमाड़ और उत्तरी बस्तर में नए सुरक्षा कैंप स्थापित किए गए हैं — अब तक 64 सुरक्षा कैंपों की संख्या बताई जा रही है

  2. आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति

    • जो नक्सली हथियार डालते हैं उन्हें कानूनी शमन, पुनर्वास तथा सामाजिक समावेशन की सुविधा।

    • पुनर्वास योजना के तहत, सश्रम कौशल प्रशिक्षण, निवास, नगद सहायता और स्थानीय विकास परियोजनाओं में अवसर।

  3. जन्म-स्थान को विकास की ओर मोड़ना

    • सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधा पहुँचाना ताकि जंगल-पार क्षेत्र के लोग शासन और विकास का अनुभव कर सकें।

    • यह “विकास ही सुरक्षा” की नीति है — जब लोगों को मूलभूत सुविधा मिलेगी, नक्सलवाद की पैठ कम होगी।

  4. संवाद और विश्वास निर्माण

    • सरकार ने स्थानीय जन आवाज़ सुनने की पहल की है।

    • आदिवासी नेताओं, पंचायतों और ग्राम प्रधानों के साथ मिलने की नीति।

    • नक्सल-आश्रित इलाकों में सरकारी योजनाएँ दिखायी देने से ग्रामीणों में विश्वास बढ़ने लगा है।


सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

अबूझमाड़ और उत्तरी बस्तर के नक्सल मुक्त होने से ये प्रभाव दिख सकते हैं:

  1. शांति और सुरक्षा की वापसी

    • जंगलों में भय का माहौल कम हुआ है।

    • जीविका की गतिविधियाँ सामान्य हो सकेंगी, स्कूल-कॉलेज खुलेंगे, बाजारों में लोग सुरक्षित आने-जाने लगेंगे।

  2. विकास और बुनियादी ढाँचे में सुधार

    • सड़क, संचार, स्वास्थ्य केंद्र, विद्युत् आपूर्ति जैसी सुविधाएँ तेजी से पहुँचेंगी।

    • निवेश की संभावनाएँ बढ़ेंगी — पर्यटन, छोटे उद्योग, कृषि प्रसंस्करण आदि क्षेत्रों में।

  3. रोजगार और सामाजिक समावेशन

    • आत्मसमर्पण करने वालों के पुनर्वास कार्यक्रमों से रोजगार के अवसर मिलेंगे।

    • ग्राम स्तर समस्याएँ जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण आदि पर अधिक ध्यान होगा।

  4. मानवाधिकारों और मानसिक शांति

    • हिंसा की घटनाएँ घटेंगी, लोग हिंसा की स्थिति में ना रहते हुए अपने दैनिक जीवन जी सकेंगे।

    • भय, शंका और प्रताड़ना से मुक्ति मिलेगी।


चुनौतियाँ और जोखिम

हालांकि यह एक सकारात्मक समाचार है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं:

  1. दाई-मुँह की शक्ति (residual militant presence)

    • दक्षिणी बस्तर में अभी भी नक्सलवाद के कुछ बचे-खुचे हिस्से हैं। यहाँ सुरक्षा उपायों को लगातार बनाए रखना होगा। The Economic Times+1

  2. आत्मसमर्पण करने वालों को पुनर्वास में टिकना

    • हथियार डालने वाले को समाज में स्वीकार्यता और आर्थिक-आधार मिलना चाहिए। जिन लोगों ने हिंसा में भाग लिया हो, उनके लिए सामाजिक कलंक को कम करना होगा।

  3. भौगोलिक एवं पर्यावरणीय बाधाएँ

    • अबूझमाड़ जैसे कठिन जंगल इलाकों में सड़क, संचार, बिजली आदि सुविधाएँ पहुँचाने में बड़ा खर्च और समय लगेगा।

  4. स्थिर नीति और प्रशासन की निरंतरता

    • विकास कार्यों और सुरक्षा नीतियों में राजनीतिक हस्तक्षेप, भ्रष्टाचार या स्थानीय प्रशासन में कमी न हो — सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि नीति लगातार लागू हो।


क्या अबूझमाड़ व उत्तरी बस्तर वास्तव में नक्सल-मुक्त हैं?

इस घोषणा का अर्थ है कि अबूझमाड़ और उत्तरी बस्तर में संघर्षशील नक्सल संगठन, हथियारबंद उपद्रवियों की संगठित गतिविधियाँ**, आतंकवादी ठिकानों की खुली उपस्थिति**, और बुनियादी भय का वातावरण अब कम-से-कम बहुत हद तक समाप्त हुआ है। यह शांति, सुरक्षा और विकास की दिशा में एक बड़ा कदम है।

लेकिन “मुक्त” का अर्थ यह नहीं कि हर समस्या समाप्त हो गई हो। अभी भी:

सरकार ने मार्च 2026 का लक्ष्य रखा है कि पूरी छत्तीसगढ़ को नक्सल-मुक्त किया जाए। अबूझमाड़ और उत्तरी बस्तर की स्थिति इस लक्ष्य की दिशा में एक बड़ी सफलता प्रतीत होती है।


आगे की संभावनाएँ

  1. नक्सल मुक्त क्षेत्र मॉडल का विस्तार

    • अन्य प्रभावित इलाकों (दक्षिण बस्तर, नारायणपुर, सुक़मा आदि) में भी समान मॉडल लागू करना।

  2. विकास की नई योजनाएँ

    • शिक्षा, स्वास्थ्य, आरक्षण सहित कृषि परिवर्तन, पर्यटन, कृषि-प्रसंस्करण जैसे क्षेत्र में निवेश बढ़ाना।

  3. स्थानीय प्रशासन एवं पंचायतों की भागीदारी

    • स्थानीय लोगों को निर्णय-प्रक्रिया में शामिल करना ताकि विकास उनकी ज़रूरतों के अनुसार हो।

  4. स्थिर सुरक्षा व्यवस्था

    • समय-समय पर जांच-परख, खुफिया नेटवर्क, महिला सुरक्षा, वन सुरक्षा आदि को मजबूत करना।

“अबूझमाड़ और उत्तरी बस्तर को नक्सल मुक्त घोषित करना” सिर्फ एक घोषणात्मक कदम नहीं है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की सरकार, सुरक्षा संस्थाओं और स्थानीय जनभागीदारी की संयुक्त मेहनत का प्रतिफल है। यह बदलाव उन वर्षों की चुनौतियों, संघर्षों और उन्मूलन नीतियों का परिमाण है जो विकास, सुरक्षा और विश्वास निर्माण में आधारित हैं।

यह महज शुरुआत है। अब असली काम है इस मुक्ति को टिकाउ बनाना — उन लोगों की ज़िंदगी में स्थायी सुधार लाना, भय मिटाना, विकास की नींव रखना, ताकि बस्तर का हर गांव, हर जंगल, हर आदिवासी समुदाय नक्सल-मुक्त जीवन जी सके।

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