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“ हॉस्पिटल में HIV प्राइवेसी उल्लंघन पर हाई कोर्ट का बड़ा फैसला 2025 और ₹2 लाख का मुआवजा ”

 हॉस्पिटल में HIV प्राइवेसी उल्लंघन का मामला – छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का बड़ा फैसला 2025

स्वास्थ्य सेवा केवल उपचार देने तक सीमित नहीं है; इसमें मरीज की निजता (privacy) और गरिमा (dignity) की रक्षा भी उतनी ही जरूरी होती है। लेकिन हाल ही में छत्तीसगढ़ के रायपुर से एक ऐसा मामला सामने आया जिसने पूरे चिकित्सा तंत्र की मानवता और गोपनीयता की परिभाषा पर सवाल खड़े कर दिए

एक सरकारी अस्पताल में HIV संक्रमित नवजात शिशु की स्थिति को सार्वजनिक कर दिया गया, जिससे उसके परिवार को समाज में भेदभाव और अपमान का सामना करना पड़ा।
इस मामले पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए राज्य सरकार को ₹2 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया और मरीज की गोपनीयता की सुरक्षा के लिए कड़े दिशा-निर्देश जारी किए।

हॉस्पिटल में HIV प्राइवसी उल्लंघन का मामला — एक नवजात की देखभाल के दौरान HIV स्थिति सार्वजनिक करने पर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को 2 लाख रुपए हर्जाना देने का आदेश दिया। The Times of India


मामला क्या था?

यह घटना रायपुर के एक सरकारी अस्पताल (डॉ. भीमराव अंबेडकर स्मृति अस्पताल) की है, जहाँ एक HIV संक्रमित महिला ने बच्चे को जन्म दिया।
डिलीवरी के बाद अस्पताल प्रशासन की ओर से नवजात की HIV स्थिति को न केवल रिकॉर्ड में दर्ज किया गया, बल्कि कुछ कर्मचारियों द्वारा यह जानकारी अन्य मरीजों और मीडिया तक लीक कर दी गई।

इसके परिणामस्वरूप परिवार को:

परिवार ने इसे लेकर राज्य सरकार और अस्पताल प्रशासन के खिलाफ याचिका दायर की।


 हाई कोर्ट का फैसला (अक्टूबर 2025)

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा

“HIV से संक्रमित व्यक्ति या बच्चे की पहचान सार्वजनिक करना मानवाधिकारों और संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन है।”

अदालत के प्रमुख आदेश

  1. राज्य सरकार को पीड़ित परिवार को ₹2 लाख का मुआवजा देना होगा।

  2. अस्पताल प्रशासन को चेतावनी दी गई कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

  3. राज्य के सभी सरकारी व निजी अस्पतालों को निर्देश दिया गया कि:

    • HIV मरीजों की पहचान गोपनीय रखी जाए।

    • सभी चिकित्सा कर्मियों को HIV गोपनीयता प्रशिक्षण दिया जाए।

  4. राज्य स्वास्थ्य विभाग को 30 दिनों के भीतर नई प्राइवेसी गाइडलाइन तैयार करने का निर्देश।


 कानूनी पृष्ठभूमि

भारत में HIV/AIDS (Prevention and Control) Act, 2017 लागू है, जो इस प्रकार की घटनाओं से निपटने के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है।

इस कानून की प्रमुख धाराएँ

इस कानून के बावजूद, अगर सरकारी अस्पताल में ऐसा उल्लंघन होता है, तो यह कानूनी और नैतिक दोनों स्तरों पर गंभीर अपराध है।


 HIV और सामाजिक भेदभाव – एक पृष्ठभूमि

HIV (Human Immunodeficiency Virus) केवल एक संक्रमण नहीं, बल्कि यह समाज के नजरिए की परीक्षा भी है।
आज भी भारत में लाखों लोग HIV के कारण न केवल स्वास्थ्य समस्याओं से बल्कि सामाजिक बहिष्कार और कलंक (stigma) से भी जूझ रहे हैं।

आंकड़े बताते हैं

यह मामला इस बात का प्रमाण है कि जागरूकता और संवेदनशीलता की कमी आज भी हमारे स्वास्थ्य तंत्र में मौजूद है।


अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति संजय अग्रवाल की एकल पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा:

“स्वास्थ्यकर्मियों का दायित्व केवल इलाज देना नहीं, बल्कि मरीज की गरिमा बनाए रखना भी है। HIV संक्रमित व्यक्ति की पहचान उजागर करना उसके जीवन के अधिकार का सीधा हनन है।”

“राज्य सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि अस्पतालों में प्राइवेसी नियमों का पालन न करने पर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।”


 सरकार की प्रतिक्रिया

फैसले के बाद छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य विभाग ने इसे “जागरूकता के लिए एक महत्वपूर्ण सीख” बताया।


 विशेषज्ञों की राय

1. डॉ. मीनाक्षी वर्मा (HIV विशेषज्ञ)

“HIV मरीजों को मेडिकल और मानसिक दोनों स्तरों पर सुरक्षा की जरूरत होती है। किसी भी स्थिति में उनकी पहचान सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए।”

2. अधिवक्ता आर.के. शर्मा

“यह फैसला स्वास्थ्य संस्थानों के लिए एक चेतावनी है कि गोपनीयता उल्लंघन केवल नैतिक नहीं, बल्कि दंडनीय अपराध भी है।”

3. सामाजिक कार्यकर्ता सीमा मिश्रा

“HIV मरीजों के प्रति सहानुभूति और समझ की कमी है। इस तरह के मामलों से समाज में नकारात्मक संदेश जाता है। सरकार को शिक्षा और संवेदना कार्यक्रम बढ़ाने चाहिए।”


 अन्य समान मामले

यह पहली बार नहीं है जब भारत में HIV गोपनीयता का उल्लंघन हुआ हो।

इन घटनाओं ने साबित किया कि अभी भी मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए सतर्कता और प्रशिक्षण की जरूरत है।


 इस मामले से मिलने वाले सबक

  1. मरीज की गोपनीयता सर्वोपरि है
    चाहे सरकारी या निजी अस्पताल — किसी की स्वास्थ्य जानकारी उसकी अनुमति के बिना साझा नहीं की जा सकती।

  2. स्वास्थ्यकर्मियों का पुनःप्रशिक्षण जरूरी
    डॉक्टरों, नर्सों और वार्डबॉय को HIV जागरूकता और गोपनीयता नियमों का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

  3. डिजिटल रिकॉर्ड सुरक्षा
    मरीज की रिपोर्ट्स और डेटा को एन्क्रिप्शन के साथ सुरक्षित किया जाना चाहिए।

  4. जन-जागरूकता अभियान
    समाज को यह समझना जरूरी है कि HIV संक्रमित व्यक्ति भी सामान्य जीवन जी सकता है — उसके प्रति भेदभाव अन्याय है।


 अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण

संयुक्त राष्ट्र के UNAIDS प्रोग्राम के अनुसार

“HIV मरीजों की निजता की रक्षा उनके उपचार और समाज में स्वीकृति दोनों के लिए अनिवार्य है।”

अमेरिका, ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में

भारत भी अब उसी दिशा में कदम बढ़ा रहा है।


आगे की राह

छत्तीसगढ़ सरकार ने घोषणा की है कि आने वाले महीनों में

हॉस्पिटल में HIV प्राइवेसी उल्लंघन का मामला” केवल एक कानूनी प्रकरण नहीं, बल्कि यह समाज की संवेदनशीलता और चिकित्सा नैतिकता की परीक्षा है।
यह घटना बताती है कि तकनीक, कानून और चिकित्सा व्यवस्था के बावजूद यदि मानवता और सम्मान की भावना कमजोर पड़ जाए, तो कोई भी व्यवस्था पूर्ण नहीं है।

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का यह फैसला उन सभी स्वास्थ्य संस्थानों के लिए एक मील का पत्थर (Landmark Judgment) है जो मरीजों के अधिकारों की अनदेखी करते हैं।
अगर इसे सही तरीके से लागू किया गया, तो यह न केवल HIV मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा बल्कि मानव गरिमा के अधिकार को मजबूत करेगा।

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