रायगढ़ में जिन्दल पावर कोयला ब्लॉक पर जन सुनवाई — 14 अक्टूबर 2025
14 अक्टूबर 2025 को रायगढ़ जिले के ग्राम धौराभांठा में जिन्दल पावर लिमिटेड (JPL) द्वारा प्रस्तावित गारे पलमा सेक्टर-1 कोयला खदान परियोजना पर जन सुनवाई आयोजित की गई। यह परियोजना रायगढ़ जिले के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण, पर्यावरणीय प्रभाव और स्थानीय समुदायों की आजीविका पर संभावित प्रभावों को लेकर गंभीर चिंताओं का विषय बनी हुई है।
रायगढ़ / छत्तीसगढ़ में Jindal Power कोयला ब्लॉक पर जन सुनवाई 14 अक्टूबर को आयोजित की जाएगी — Dhourabhatha में पर्यावरण बोर्ड की सुनवाई। India CSR
परियोजना का विवरण
गारे पलमा सेक्टर-1 कोयला ब्लॉक, मंद्रा-रायगढ़ कोलफील्ड में स्थित है, जिसमें कुल 1,149 मिलियन टन कोयला भंडार है। इसमें से 426.03 मिलियन टन कोयला निष्कर्षण के लिए उपलब्ध है। जिन्दल पावर ने इस खदान के लिए ओपनकास्ट (15 मिलियन टन प्रति वर्ष) और अंडरग्राउंड (2 मिलियन टन प्रति वर्ष) खनन विधियों का प्रस्ताव किया है। यह परियोजना 3,020 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई है, जिसमें 120 हेक्टेयर वन भूमि भी शामिल है, और यह 14 गांवों को प्रभावित करेगी।
ग्राम सभा की आपत्ति और जन सुनवाई
ग्राम पंचायत झरना की ग्राम सभा ने 19 सितंबर 2025 को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर पर्यावरण कार्यालय को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में ग्रामवासियों ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उन्हें अपने खेत, जल-जंगल-जमीन किसी भी कीमत पर खोना स्वीकार नहीं है। ग्रामवासियों ने यह भी मांग की है कि जिन्दल कंपनी की प्रस्तावित जन सुनवाई को तत्काल रद्द किया जाए।
स्थानीय समुदायों की चिंताएँ
स्थानीय समुदायों की प्रमुख चिंताएँ निम्नलिखित हैं:
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भूमि अधिग्रहण और मुआवजा: ग्रामवासियों का कहना है कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है और उन्हें उचित मुआवजा नहीं दिया जा रहा है।
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रोजगार के अवसर: स्थानीय लोगों को रोजगार देने के बजाय बाहरी श्रमिकों की नियुक्ति की जा रही है, जिससे बेरोजगारी की समस्या बढ़ रही है।
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पर्यावरणीय प्रभाव: खनन गतिविधियों से जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है।
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सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव: खनन से स्थानीय संस्कृति, परंपराएँ और सामाजिक संरचना पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
पर्यावरणीय चिंताएँ
परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) रिपोर्ट के अनुसार, प्रस्तावित खदान क्षेत्र में 9 स्कूल स्थित हैं, जिन्हें पुनः स्थापित करने की योजना है। इसके अलावा, 11 अन्य स्कूल भी प्रभावित होंगे। परियोजना के तहत वन भूमि की भी आवश्यकता होगी, जिससे वन्यजीवों और जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि परियोजना से जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण की समस्या और बढ़ सकती है।
कानूनी और संवैधानिक पहलू
पेसा अधिनियम, 1996 के तहत, अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी विकासात्मक परियोजना को लागू करने से पहले ग्राम सभा की स्वीकृति अनिवार्य है। हालांकि, स्थानीय समुदायों का कहना है कि उनकी सहमति के बिना ही परियोजना को आगे बढ़ाया जा रहा है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या परियोजना संवैधानिक और कानूनी मानदंडों का पालन कर रही है।
प्रशासन और पुलिस की भूमिका
स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने जन सुनवाई के दौरान सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की थी। हालांकि, ग्रामवासियों का आरोप है कि प्रशासन ने उनकी चिंताओं को नजरअंदाज किया और जन सुनवाई को निर्धारित तिथि पर ही आयोजित किया। इससे यह सवाल उठता है कि क्या प्रशासन ने स्थानीय समुदायों की आवाज़ को उचित महत्व दिया।
आगे की राह
स्थानीय समुदायों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने परियोजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी रखने का संकल्प लिया है। उनका कहना है कि वे अपनी भूमि, संसाधनों और पर्यावरण की रक्षा के लिए संघर्ष करेंगे। इसके अलावा, उन्होंने राज्य और केंद्र सरकार से अपील की है कि वे परियोजना की समीक्षा करें और स्थानीय समुदायों की सहमति के बिना इसे लागू न करें।
गारे पलमा सेक्टर-1 कोयला खदान परियोजना रायगढ़ जिले के आदिवासी समुदायों के लिए एक संवेदनशील मुद्दा बन गई है। भूमि अधिकार, पर्यावरणीय प्रभाव और कानूनी मानदंडों के उल्लंघन के आरोपों के बीच, यह सवाल उठता है कि क्या विकासात्मक परियोजनाओं को स्थानीय समुदायों की सहमति के बिना लागू किया जा सकता है। इस मुद्दे पर आगे की कार्रवाई और निर्णय स्थानीय समुदायों, सरकार और अन्य हितधारकों के बीच सामंजस्यपूर्ण संवाद और सहमति पर निर्भर करेगा।
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