रायगढ़ की बेटी सुलक्षणा यहां की गलियों में बीता बचपन, यहीं से शुरू हुई सुरों की तालीम
रायगढ़ की धरती से उठी एक स्वर की देवी
रायगढ़, जिसे छत्तीसगढ़ का “संस्कृति नगरी” कहा जाता है, ने देश को कई महान कलाकार, साहित्यकार और संगीतज्ञ दिए हैं। इन्हीं में से एक नाम है सुलक्षणा पंडित, जिनकी मधुर आवाज़ ने 70 और 80 के दशक के हिंदी सिनेमा को सुरों की दुनिया में नया आयाम दिया।
बहुत कम लोगों को यह पता है कि सुलक्षणा का जन्म और बचपन रायगढ़ की गलियों में बीता था। यहीं से उनकी संगीत यात्रा की शुरुआत हुई, जिसने उन्हें बॉलीवुड की जानी-मानी पार्श्वगायिका (Playback Singer) और अभिनेत्री बना दिया।
रायगढ़ में बीता सुलक्षणा का बचपन
सुलक्षणा का जन्म एक संगीतमय परिवार में हुआ था। उनका बचपन रायगढ़ की शांत, कलात्मक और संस्कारों से भरी गलियों में बीता।
रायगढ़ उस समय से ही शास्त्रीय संगीत और नृत्य का केंद्र रहा है — यहां के “रायगढ़ घराने” की ख्याति देशभर में है।
सुलक्षणा के पिता भी संगीत प्रेमी थे, और घर में हमेशा रियाज और सुरों की गूंज रहती थी। इन्हीं गलियों से सुलक्षणा ने संगीत की पहली स्वर-लहरियां सीखीं।http://सुलक्षणा
बचपन से ही वे मधुर आवाज़ और संगीत की गहरी समझ के लिए पहचानी जाने लगीं। कहा जाता है कि जब वे 6–7 वर्ष की थीं, तब से ही उनकी गायकी से आस-पास के लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे।
रायगढ़ की संगीत परंपरा ने दी प्रेरणा
रायगढ़ का नाम हमेशा से ही संगीत, नृत्य और कला के लिए प्रसिद्ध रहा है। यहां के दरबारों में कभी राजा चक्रधर सिंह जैसे संगीतज्ञों ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को नई ऊँचाइयाँ दी थीं।
इसी माहौल में पलकर सुलक्षणा के अंदर संगीत के प्रति गहरा लगाव पैदा हुआ।
स्थानीय गुरुओं से उन्होंने सुरों की प्राथमिक शिक्षा ली और धीरे-धीरे अपनी अलग पहचान बनाना शुरू किया।
उनका परिवार भी पंडित परिवार से संबंध रखता था, जो खुद संगीत में गहरी रुचि रखता था।
कहा जाता है कि सुलक्षणा के पिता ने ही उन्हें “सुरों की साधना” के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
बॉलीवुड तक का सफर रायगढ़ से मुंबई तक की यात्रा
रायगढ़ से मुंबई तक का सफर आसान नहीं था। परंतु सुलक्षणा के भीतर की लगन और समर्पण ने उन्हें सफलता के शिखर तक पहुंचाया।
संगीत की शुरुआती शिक्षा के बाद वे मुंबई पहुंचीं, जहां उन्होंने संगीत के महान गुरुओं से शास्त्रीय गायन की विधिवत शिक्षा ली।
उनकी मुलाकात संगीत निर्देशक खय्याम, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी जैसे दिग्गजों से हुई, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचाना।
सुलक्षणा की आवाज़ में एक मिठास, भावनात्मक गहराई और नज़ाकत थी — जो उन्हें बाकी गायिकाओं से अलग बनाती थी।
फिल्मी सफर जब सुरों ने पहचान दिलाई
सुलक्षणा पंडित ने 1970 और 1980 के दशक में कई सुपरहिट गीत गाए।
उनका पहला बड़ा ब्रेक फिल्म “उलझन” (1975) से मिला, जिसके गीत “तू इस तरह से मेरी ज़िंदगी में शामिल है” आज भी लोगों के दिलों में बसता है।
यह गाना उन्होंने किशोर कुमार के साथ गाया था और यह गीत आज भी बॉलीवुड के रोमांटिक गीतों में एक क्लासिक माने जाते हैं।
उन्होंने लता मंगेशकर और आशा भोंसले जैसी महान गायिकाओं की परंपरा को आगे बढ़ाया।
सुलक्षणा की आवाज़ में शुद्धता, भावनाओं का संतुलन और मधुरता थी जो श्रोताओं को सीधे हृदय तक छू जाती थी।
उनके कुछ प्रसिद्ध गीत इस प्रकार हैं —
“ये मौसम है आशिकाना” – साजन बिना सुहागन (1978)
“तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा नहीं” – फिल्म: आंधी (डुएट वर्जन)
“दिल की गलियों में” – फिल्म: मोमेंट्स ऑफ़ लव
सुलक्षणना एक अभिनेत्री के रूप में
सुलक्षणा ने केवल गायकी तक खुद को सीमित नहीं रखा। उन्होंने अभिनय में भी हाथ आजमाया।
वे 1970 के दशक में कई फिल्मों में नायिका के रूप में नजर आईं — जिनमें उलझन (1975), आप बीती (1976) और राज तिलक (1984) जैसी फिल्में शामिल हैं।
उनकी अभिनय शैली सादगी और भावना से भरपूर थी।
परंतु संगीत ही उनका पहला प्यार था, इसलिए बाद में उन्होंने अभिनय की बजाय गायन को ही अपनी पहचान बना लिया।
संगीत में भावनाओं की गहराई
सुलक्षणा की गायकी की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि वे हर गीत को अपनी आत्मा से गाती थीं।
उनकी आवाज़ में भावनाओं का ऐसा जादू था कि श्रोता गीत के साथ-साथ उनकी संवेदना को भी महसूस कर लेते थे।
उनके गीतों में शास्त्रीय संगीत की नींव और फिल्मी संगीत की आत्मा दोनों का सुंदर मेल दिखाई देता था।
रायगढ़ की धरती को गर्व
आज जब हम रायगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर की बात करते हैं, तो सुलक्षणा पंडित का नाम गर्व से लिया जाता है।
रायगढ़ की मिट्टी में जन्मी इस बेटी ने न केवल हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बनाई, बल्कि अपने सुरों से रायगढ़ का नाम भी रोशन किया।
यहां के लोग आज भी गर्व से कहते हैं — “सुलक्षणा हमारी रायगढ़ की बेटी हैं।”
परिवार और विरासत
सुलक्षणा संगीत परिवार से थीं — उनके भाई मंगेश, जीवन, और विजय पंडित सभी संगीत से जुड़े रहे।
वहीं उनकी बहनें विजया पंडित और मीताली पंडित ने भी संगीत की राह चुनी।
बाद में यह परिवार शर्मिला टैगोर और राजेश खन्ना जैसे कलाकारों के परिवारों से भी जुड़ा, जिससे यह परिवार बॉलीवुड का एक प्रतिष्ठित परिवार बन गया।
सुलक्षणा की विनम्रता और जीवन दर्शन
सफलता के बावजूद सुलक्षणा हमेशा जमीन से जुड़ी रहीं।
वे अक्सर कहा करती थीं —
“संगीत भगवान का दिया वरदान है, इसे साधना से निखारना ही सच्ची पूजा है।”
उनका यह वाक्य आज भी हर उभरते कलाकार के लिए प्रेरणास्रोत है।
रायगढ़ की संस्कृति में गूंजते रहेंगे सुलक्षणा के सुर
सुलक्षणा पंडित का जीवन एक प्रेरक कहानी है —
एक छोटे शहर की बेटी, जिसने अपनी मेहनत और सुरों के बल पर पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाई।
रायगढ़ की मिट्टी में पले-बढ़े इस स्वर ने यह साबित किया कि अगर लगन और समर्पण हो, तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रह सकता।
उनकी मधुर आवाज़ आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में गूंजती है, और रायगढ़ हमेशा गर्व से कहेगा —
“ये सुर, ये सादगी, और ये मिठास — हमारी सुलक्षणा की पहचान है।”
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