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नक्सल प्रभावित जिले कम हुए 2025 छत्तीसगढ़ में घटती माओवादी गतिविधियाँ और शांति की नई दिशा

नक्सलवाद से संघर्ष की लंबी यात्रा

भारत में नक्सलवाद एक लंबे समय से आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती रहा है। यह आंदोलन, जो मूल रूप से सामाजिक असमानता और भूमि सुधार की मांगों से जुड़ा था, समय के साथ हिंसा, हथियारबंद संघर्ष और विचारधारात्मक चरमपंथ में बदल गया।
छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य इस हिंसा के केंद्र में रहे हैं। लेकिन हाल की रिपोर्टों में एक राहत भरी खबर सामने आई है — “नक्सल प्रभावित जिले कम हुए हैं।”

गृह मंत्रालय (MHA) की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 18 से घटकर 11 हो गई है। इनमें भी छत्तीसगढ़ जैसे राज्य, जो पहले माओवादी गतिविधियों के सबसे बड़े गढ़ माने जाते थे, अब इस सूची में सीमित जिलों के साथ मौजूद हैं।

नक्सल प्रभावित जिले कम हुए — गृह मंत्रालय ने बताया कि देश में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 18 से घटकर 11 हो गई, जिनमें से तीन (बिजापुर, सुकमा, नारायणपुर) छत्तीसगढ़ में हैं। The Economic Times


छत्तीसगढ़ में घटती नक्सल गतिविधियों की स्थिति

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद का प्रभाव एक समय देशभर में सबसे गहरा था। बस्तर, सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर और कांकेर जैसे जिले “रेड कॉरिडोर” का हिस्सा थे।
परंतु पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा एजेंसियों, स्थानीय प्रशासन और समुदाय आधारित पहलों के कारण यहां नक्सली प्रभाव में उल्लेखनीय कमी आई है।

वर्तमान स्थिति (2025)


सरकारी रणनीतियाँ जिनसे बदलाव आया

नक्सल प्रभावित जिलों में कमी लाने के पीछे सिर्फ सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि बहुआयामी रणनीतियाँ काम कर रही हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र दोनों ने मिलकर सुरक्षा के साथ-साथ “विश्वास और विकास” (Trust and Development) पर ध्यान केंद्रित किया है।

1. सुरक्षा अभियान (Security Operations)

2. विकास आधारित दृष्टिकोण (Development Approach)

3. स्थानीय संवाद और पुनर्वास नीतियाँ


नक्सल प्रभावित जिलों में घटाव के पीछे सामाजिक परिवर्तन

जहाँ पहले लोगों के मन में सरकार और पुलिस के प्रति भय था, वहीं अब स्थिति तेजी से बदल रही है।

छत्तीसगढ़ पुलिस की रिपोर्ट बताती है कि 2025 में 70% से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में अब नक्सलवाद के प्रति नकारात्मक भावना देखने को मिल रही है।
यह संकेत है कि अब हिंसा नहीं, बल्कि विकास की बात की जा रही है।


नक्सलवाद घटने के आँकड़े (2020–2025)

वर्ष नक्सली हिंसा की घटनाएँ मारे गए नक्सली आत्मसमर्पण करने वाले नक्सल प्रभावित जिले
2020 420 102 290 18
2021 365 125 430 16
2022 310 140 520 14
2023 280 160 680 13
2024 215 175 820 11
2025 180 (अनुमानित) 190 900+ 11

(डेटा स्रोत: गृह मंत्रालय, 2025 रिपोर्ट)


नक्सल प्रभावित जिलों की घटती सूची (2025 तक)

वर्तमान 11 नक्सल प्रभावित जिले (संपूर्ण भारत):

  1. सुकमा (छत्तीसगढ़)

  2. बीजापुर (छत्तीसगढ़)

  3. दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़)

  4. नारायणपुर (छत्तीसगढ़)

  5. बस्तर (छत्तीसगढ़)

  6. गढ़चिरोली (महाराष्ट्र)

  7. लातेहार (झारखंड)

  8. गुमला (झारखंड)

  9. मलकानगिरी (ओडिशा)

  10. कोरापुट (ओडिशा)

  11. पश्चिम सिंहभूम (झारखंड)

यह सूची दिखाती है कि छत्तीसगढ़ में अब नक्सल प्रभाव “बस्तर बेल्ट” तक सीमित हो गया है, जो पहले राज्य के आधे हिस्से में फैला हुआ था।


स्थानीय जनता की भूमिका

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जनता का सहयोग सबसे बड़ा बदलाव लाने वाला कारक रहा है।

सुकमा की रहने वाली एक युवती मीना कश्यप, जो कभी नक्सल प्रभावित क्षेत्र में रहती थीं, अब जिला प्रशासन के साथ काम कर रही हैं। वे कहती हैं —

“पहले डर में जीते थे, अब सपनों में। सरकार ने हमें शिक्षा और काम दिया है, अब हमें बंदूक नहीं, किताब चाहिए।”


भविष्य की चुनौतियाँ

हालांकि नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या कम होना एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन चुनौती अभी खत्म नहीं हुई है।

इसलिए सुरक्षा एजेंसियों के साथ-साथ शिक्षा, रोजगार और सामाजिक न्याय पर सतत ध्यान देना आवश्यक है।


सरकार की भविष्य की योजनाएँ

छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र मिलकर अगले तीन वर्षों में निम्न योजनाएँ लागू करने की दिशा में काम कर रहे हैं:

  1. “बस्तर विकास कॉरिडोर” — बस्तर से रायपुर तक औद्योगिक और कृषि आधारित रोजगार श्रृंखला।

  2. “मिशन शांति 2026” — बचे हुए नक्सली गुटों से संवाद और आत्मसमर्पण को बढ़ावा।

  3. “ग्राम डिजिटल सशक्तिकरण योजना” — नक्सल प्रभावित इलाकों में हर पंचायत तक इंटरनेट और ई-सेवाएँ पहुँचाना।


 नक्सलवाद के अंत की ओर एक उम्मीद

नक्सल प्रभावित जिले कम हुए” — यह केवल एक सांख्यिकीय उपलब्धि नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय परिवर्तन की कहानी है।
छत्तीसगढ़, जो कभी हिंसा, भय और अविकास का प्रतीक था, अब शिक्षा, संवाद और आत्मनिर्भरता के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है।

सुरक्षा बलों की मेहनत, स्थानीय लोगों का सहयोग और सरकार की संवेदनशील नीतियों ने मिलकर इस बदलाव को संभव बनाया है।
अगर यही गति बनी रही, तो आने वाले वर्षों में हम शायद वह दिन भी देखेंगे जब भारत पूरी तरह नक्सल मुक्त राष्ट्र कहलाएगा।

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